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छिंग मींग त्योहार
2011-04-13 09:54:23

चंद्रिमाः यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। बहुत खुशी के साथ आज हम फिर मिलते हैं आप का पत्र मिला कार्यक्रम में। मैं हूं आप की दोस्त, चंद्रिमा।

विकासः और मैं हूं आप का दोस्त विकास। नमस्कार।

चंद्रिमाः विकास जी, क्या आप जानते हैं कि पिछले हफ्ते चीन में कौन सा त्योहार मनाया गया है?

विकासः जी, मैं बिल्कुल जानता हूं । वह छिंग मींग त्योहार है। क्योंकि इस अवसर पर सभी चीनियों को तीन दिन की छुट्ठी मिलती है। सुना है कि बहुत लोग इस त्योहार को उपनगर जाकर मनाते हैं। लेकिन मुझे मालूम नहीं है कि क्यों इस त्योहार पर हमारे यहां इतनी भीड़-भाड़ है कि यातायात का प्रबंध करने के लिये ज्यादा पुलिस भी यहां आए हैं। मेरे ख्याल से पूरे साल में केवल इस वक्त पर हमारे यहां सब से भीड़-भाड़ है। ऐसा क्यों?

चंद्रिमाः हाहाहा, आप शायद यह नहीं जानते कि चीन में छिंग मींग त्योहार को मनाने के लिए लोग पूर्वजों के मकबरों पर जाते हैं और पूजा करते हैं। यह एक बहुत पुराना रीति-रिवाज़ है। और हमारे रेडियो स्टेशन के पास तो एक बड़ा व मशहूर मकबरा स्थित है। अब समझे आप?

विकासः समझ गया। देखने में छिंग मींग त्योहार के पीछे चीन की पुरानी सभ्यता भी छिपी हुई है। चंद्रिमा जी, क्या आप मुझे और हमारे श्रोताओं को इस के बारे में कुछ जानकारी दे सकेंगी?

चंद्रिमाः जी, ज़रूर। हर वर्ष वसंत के आगमन के साथ ही चीनी जनता परम्परागत छिंग मींग त्योहार का स्वागत करती है। छिंग मींग चीनी पंचांग के अनुसार, 24 प्रमुख दिनों में से एक है, जो आम तौर पर अप्रैल के उत्तरार्द्ध में पड़ता है। कहा जाता है कि छिंग मींग त्योहार चीन के हान राजवंश से शुरु हुआ। चीन के मींग राजवंश में लोग न केवल पूर्वजों के मकबरे के सामने कागज़ के पैसे जलाते थे, बल्कि मकबरों पर खाने पीने के खाद्य पदार्थ भी चढ़ाते थे। यह रीति-रिवाज आज भी प्रचलित है। और छिंग मींग त्योहार पर बहुत स्कूल ऐसी गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं कि अध्यापक विद्यार्थियों को लेकर वीरों के मकबरों के सामने जाकर वीरों के सम्मान में फूल चढ़ाते हैं। चीन में छिंग मिंग त्योहार के अवसर पर पतंग उड़ाने और झूला झूलने का रीति रिवाज़ भी है।

विकासः अच्छा, लेकिन, इस त्योहार का नाम छिंग मिंग कैसे पड़ा ?

चंद्रिमाः चुंकि उसी दिन से वसंत आरम्भ होता है, घास मैदान में हरी-हरी घास नजर आने लगती है और मौसम बहुत सुहावना होने लगता है। शायद यही छिंग मिंग का अर्थ है। विकास जी, क्या भारत में भी ऐसा त्योहार होता है, जिस दिन में लोग खास तौर पर स्वर्ग में रह रहे अपने पूर्वजों की याद करते हैं, और उन से पूजा करते हैं?

विकासः जी हाँ। चंद्रिमा जी भारत में भी एक त्यौहार है जो चीन के छिंग-मिंग त्यौहार से मिलता जुलता है। भारत में इसे पिंडदान कहते हैं। खासतौर पर बिहार प्रांत के गया जिला में एक नदी है जिसका नाम फल्गु है। हरेक साल लाखों लोग अलग-अलग जगहों से इस जगह पहुँचते हैं और अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। इस अवसर पर वहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

चंद्रिमाः अच्छा, छिंग मिंग त्योहार के सुअवसर पर हम ने इस से जुड़ा एक गीत भी चुना है। गीत के बोल हैं छतरी प्रेम का उपहार है। इस गीत के पिछे एक ऐसी कहानी है:छिंग मिंग त्योहार पर एक लड़की को एक लड़का मिला। उसी समय अचानक बारीश आ गई। पर लड़के के पास छतरी नहीं थी। तो लड़की ने प्रेम के उपहार के रूप में लड़के को एक छतरी दे दी। इस के बाद वे दोनों में प्रेम हो गया। लेकिन बाद में किसी कारण से लड़का विवश होकर लड़की से अलग हो गया। लड़की इतनी दुखी होती है कि हर बार जब उस छतरी को देखती है, तो आंखों से आंसू बहने लगते हैं । और उसे बड़ी आशा है कि किसी दिन वह लड़के को फिर मिलेगी।

विकासः अच्छा, मधुर गीत सुनने के बाद अब हम कुछ पत्र पढ़ेंगे। पहला है छत्तीसगढ़ के ग्रीन पीस डी-एक्स क्लब के अध्यक्ष चुन्नीलाल कैवर्त द्वारा लिखा गया एक पत्र। उन्होंने लिखा है कि सी.आर.आई.से प्रसारित कार्यक्रम 'चीन का तिब्बत',तिब्बत के विषय में ज्ञान का कोष है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के चतुर्मुखी विकास और यहाँ की बहुमूल्य संस्कृति, कला, रीति रिवाज, परम्परा आदि के सम्बन्ध में वास्तविक और सटीक जानकारी इसी कार्यक्रम में मिलती है। तिब्बती किसानों व चरवाहों का जीवन दिनोदिन खुशहाल और उन्नत होता जा रहा है। चीन की केन्द्रीय सरकार के नेतृत्व में तिब्बती भाई बहन अपनी और अपनी मातृभूमि की खुशियाली के लिये जो प्रयास कर रहे हैं, वह सचमुच प्रशंसनीय है।

चंद्रिमाः उन्होंने यह भी लिखा है कि 21 मार्च को प्रसारित 'चीन का तिब्बत' कार्यक्रम में 'बर्फीले पठार पर खिले गेसांग फूल की तरह' एक आलेख सुनने को मिला,जो मुझे बहुत ही दिलचस्प और सूचनाप्रद लगा। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में पशु पालन संसाधन बहुत प्रचुर है और उसके विकास की असीम संभावना है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के कृषि वैज्ञानिक अकादमी के अधीनस्थ चरवाहा व पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र की उप-अनुसंधानकर्ता छान मूयो, वास्तव में गेसांग फूल की तरह है, जो अपने तकनीकी ज्ञान का प्रयोग जन्मभूमि के लोगों के जीवन स्तर सुधारने में लगी हैं, ताकि तिब्बती किसान व चरवाहे वैज्ञानिक तकनीक से पशु पालन करके अपने जीवन को समृद्ध बना सके। कार्यक्रम में तिब्बती चरवाहा तकनीक कार्यकर्ता सुश्री छान मूयो का परिचय और उनके विचार बहुत ही सुन्दर व सार्थक लगे।

विकासः साथ ही चुन्नीलाल जी ने यह भी लिखा है कि कार्यक्रम के दूसरे भाग में तिब्बती जाति की चाय परम्परा के बारे में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी सुनने को मिली। तिब्बती चाय की विशेषता, चाय की संस्कृति और इतिहास की जानकारी से पता चलता है कि चाय हान और तिब्बती जाति के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अहम् कड़ी थी और थांग राजकुमारी वनछंग मध्य चीन और तिब्बत के मध्य मैत्री दूत थी। इस ऐतहासिक तथ्य से यह भी सिद्ध होता है कि तिब्बत, चीन का एक अभिन्न हिस्सा है।

चंद्रिमाः चुनिलाल साहब, आप ने बिल्कुल ठीक कहा। तिब्बत पुरातन समय से ही चीन की एक अविभाजित भूमि था, और आज भी है।

विकासः चंद्रिमा जी, इस पत्र में चुनिलाल साहब ने यह भी कहा है कि शार्ट वेव प्रसारण का रिसेप्शन उत्तम है, लेकिन वेब रेडियो ठीक से नहीं चलने के कारण नेट पर सुनने में दिक्कत होती है, कृपया इसमें सुधार करें। रेडियो प्रसारण के बाद यथाशीघ्र इन आलेखों को नेट पर डाल दिया करें, ताकि नेटीजन इनको तुरंत पढ़ भी सके। युगल स्वरों में प्रस्तुति से रोचकता और बढ़ जाती है।

चंद्रिमाः चुनिलाल जी, आप की राय बहुत अच्छी है। हम ज़रूर इसे पूरा करने के लिये कोशिश करेंगे। हम यह भी जानते हैं कि हमारे कार्यक्रम इन्टरनेट पर अच्छी तरह से नहीं सुनाये जा सकते, और इस मामले पर हमने सी.आर.आई. के तकनीकी विभाग के साथ कई बार चर्चा की है। लेकिन अभी तक उन के पास इस का समाधान करने का स्पष्ट उपाय नहीं है। पर वे कोशिश कर रहे हैं। विश्वास है कि भविष्य में यह समस्या ज़रूर हल होगी।

विकासः चंद्रिमा जी, हमारे श्रोता चुन्नीलाल को तिब्बती गीत का बड़ा शौक है। क्या हम उन के लिये एक मधुर तिब्बती गीत सुना सकते हैं?

चंद्रिमाः जी, बिल्कुल। हमारे बहुत सारे दूसरे श्रोताओं को भी तिब्बती गीत पसंद है। तो अब हम एक साथ सुनें ल्हासा वापस लौंटे नामक यह गीत।

विकासः अब पढेंगे मोरांग, विराटनगर नेपाल के फ़्रेन्डशीप रेडियो क्लब के श्रोता उमेश रेगमी का एक पत्र। पत्र में उन्होंने लिखा है कि इस समय मैं आप का हिन्दी सेवा का कार्यक्रम नियमित रुप से सुनता आ रहा हूं। आपका प्रसारण अच्छा है। समय समय पर आप की वेबसाइट देखता हूं, और पढ़ता हूं। वेबसाइट में रखी गई समाचार, रिपोर्ट, जानकारी, सुन्दर तस्वीर बहुत अच्छा, ज्ञानवर्द्धक लगता है। सी.आर.आई. हिन्दी सेवा द्वारा सम्मोहक च्यांगसी शिर्षक विश्वव्यापी ज्ञान प्रतियोगिता संबंधित लेख, जानकारी तथा प्रश्न प्रसारित कर रहे हैं। मैं सभी लेख सुनूंगा और प्रतियोगिता में भाग लेने का प्रयास करूंगा। सी.आर.आई. हिन्दी सेवा द्वारा श्रोता सम्मेलन नई दिल्ली, भारत में कब होगा?मैं इस सम्मेलन में भाग लेना चाहूंगा।

चंद्रिमाः हालांकि उमेश जी एक नेपाली श्रोता हैं, पर वे सक्रिय रूप से हमारे हिन्दी कार्यक्रम सुनते हैं, और हमारी ज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। इस के लिये आप का बहुत बहुत धन्यवाद। और यहां हम आप को यह सूचना देना चाहते हैं कि आजकल नयी दिल्ली में श्रोता सम्मेलन का आयोजन नहीं होगा। पर अगर इस के बारे में कोई योजना होती है, तो हम ज़रूर हमारे श्रोताओं को बताएंगे।

विकासः अच्छा, समय के अभाव के कारण अब हम आज का अंतिम पत्र पढ़ेंगे। वह है नवांगाँव बांग्लादेश के नोलेज क्लब के अध्यक्ष खोंदाकर रफीक इस्लाम का पत्र।

चंद्रिमाः इस में उन्होंने लिखा है कि सी.आर.आई. हिन्दी विभाग के सभी उदघोषिक व उदघोषिका को मेरा प्यार भरा नमस्कार। हमारा कल्ब बहुत बड़ा है, जिस में कुल 325 सदस्य हैं। और सभी सदस्य नियमित रूप से आप लोगों के हर कार्यक्रम सुनते हैं। अधिकतर कार्यक्रम हमें अच्छे लगते हैं। यह पहली बार है कि मैंने अपना नोकिया 5310 फोन द्वारा इंटरनेट पर यह पत्र आप लोगों को भेजा है। आशा है आप मेरे पत्र को कार्यक्रम में शामिल कर सकेंगे।

विकासः जी, ज़रूर इस्लाम जी ।आशा है आप ज्यादा से ज्यादा पत्र भेंजे। क्योंकि डाक पत्र की अपेक्षा इंटरनेट से भेजे गये पत्र जल्द हमारे पास पहुंच जाते हैं। तो हम आप लोगों के सुझाव या राय ठीक समय पर देख सकते हैं, और इस के आधार पर हमारे कार्यक्रमों में सुधार कर सकते हैं।

चंद्रिमाः अच्छा, इस पत्र के साथ आज का आप का पत्र मिला कार्यक्रम का पहला भाग समाप्त होता है। अब लीजिये सुनिये इस का दूसरा भाग आप की आवाज़ आन लाइन। विकास जी, आज के कार्यक्रम में आप ने किस से बातचीत की?

विकासः वे हैं दीपक जी, जो चीन में कई साल रह चुके हैं। हम पहले भी उनसे हुई बातचीत का पहला भाग प्रसारित कर चुके हैं। आज हम उनसे हुई बातचीत का दूसरा भाग प्रसारित करेंगे। अब हम शुरू करते हैं आप की आवाज़ आन लाइन।

चंद्रिमाः श्रोता दोस्तो, आज का कार्यक्रम यहीं तक समाप्त होता है। अब चंद्रिमा व विकास को आज्ञा दें, नमस्कार।

विकासः अगले हफ्ते हम फिर मिलेंगे। नमस्कार।

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