दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस है। इसे मनाने के लिए जनवरी की दस तारीख को चीन स्थित भारतीय दूतावास के तत्वावधान में एक समारोह आयोजित किया गया, जिस में भारतीय राजदूत डाक्टर एस. जेशंकर, पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के भारतीय अध्यपक डाक्टर देवेन्द्र शुक्ल प्रोफैसर च्यांग चिनख्वेई, चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के प्रोफैसर वांग शूयिंग आदि जाने माने व्यक्तियों तथा अन्य देशी विदेशी हिन्दी प्रेमियों ने इस में भाग लिया।
भारतीय राजदूत डाक्टर एस.जेशंकर ने समारोह में भाषण देते हुए कहा:"विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में भाग लेते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। हिन्दी वर्षों से न केवल भारतीय संस्कृति के प्रसार का एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है, बल्कि हिन्दी ने संस्कृतियों के आदान-प्रदान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वर्तमान में हिन्दी न केवल भारत में बहुमत द्वारा बोली जाती है,बल्कि यह विश्व में भी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
मैं आप सब का अभिनन्दन करता हूँ, जिन्होंने भारत एवं हिंदी के अध्ययन एवं हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन समर्पित किया है।मुझे इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है कि चीन में हिंदी एवं हिंदी सहित्य में रूचि लेने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और इसका उधारहरण हैं आज इस कार्यक्रम उपस्थित आप सब।
हाल ही में भारत सरकार ने चीनी भाषा को भारतीय विद्यालयों में पढाई जाने वाली भाषाओं में सम्मिलित करने का निर्णय लिया है। इससे भारत में चीनी भाषा के प्रति रुझान और बढेगा। मैं यह आशा करता हूँ की आप सब के सम्मिलित प्रयास से चीन में भी हिंदी के प्रचार-प्रसार को और बल मिलेगा एवं दोनों देशों के द्विपक्षीय सम्बन्ध और प्रगाढ़ होंगे।"
विश्व हिन्दी दिवस के सुअवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बधाई संदेश भेजा। राजदूत जी ने इसे पढ़कर सुनाया:
"मुझे यह जानकर खुई हुई कि हर वर्ष 10 जनवरी का दिन विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व में हिंदी को लोकप्रिय भाषा का दर्जा दिलाने में यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
किसी भी राष्ट्र की प्रगति और विकास में भाषा अहम् भूमिका निभाती है। विश्व अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख बाजार के रूप में उभर कर सामने आ रहे भारत को जानने-समझने के लिए हिंदी भाषा की जानकारी भी वैश्विक अनिवार्यता बनती जा रही है। इन परिस्थितियों में विदेश स्थिति भारतीय मिशनों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी के सक्रिय योगदान से हम जल्दी ही हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय भाषा के रूप में स्थापित कर पाएंगे।
विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई और नव वर्ष की शुभकामनाएं।"
डाक्टर देवेन्द्र शुक्ल पेइचिंग विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं। दो साल से ज्यादा समय में उन्होंने चीन में हिन्दी के प्रचार के लिए अथक योगदान किया। विश्व हिन्दी दिवस के सुअवसर पर उन्होंने अपनी खुशियां प्रकट करते हुए कहा:
"हिन्दी दिवस के इस अवसर पर आप सभी का स्वागत है। 14 सितंबर,1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को एकमत के बहुमत से संघ की राजभाषा स्वीकार किया था,तभी से हम इस दिवस को हिन्दी दिवस के रूप में मना रहे हैं।
आज हिन्दी का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ दोंनों बहुत ही महत्वपूर्ण है। हिन्दी विश्वभाषा का रूप भी धारण कर रही है। विश्व-हिन्दी की बात करते समय ऊपर से लगता है कि क्या अपने देश में हिन्दी पूरी तरह प्रतिष्ठित है ? अथवा पूरे देश में व्यापक रूप से बोली जा रही है ? यदी ऐसा नहीं है तो हम विश्व हिन्दी की बात कैसे कर सकते हैं ? पर यह सच है कि हिन्दी विश्व पर में फैली है। इसमें कोई भी विवाद नहीं है। इस का सबसे बड़ा प्रमाण इस सभा में आप की इतनी संख्या में उपस्थिति है।
हिन्दी का अध्ययन अध्ययन भारत से बाहर लगभग 100 से अधिक विश्व विद्यालयों में हो रहा है। हिन्दी में रचना करने वाले और हिन्दी का कंम्पूटर आदि संचार माध्यमों में उपयोग करने वाले भारत से बाहर फैले हुए हैं,यह सब भी सत्य है। अब तक आठ विश्व हिन्दी सम्मेलन हो गये हैं। आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यू यॉक में आयोजित हुआ। इन सबको हम हिन्दी में पुस्तकों,हिन्दी लेखकों,हिन्दी भाषा की व्याकरणिक विशेषताओं,हिन्दी साहित्य, संस्कृति के पारिभाषिक विशेषताओं और हिन्दी भाषा साहित्य के इतिहास का पूरा आकलन हो । यह शोधकर्ताओं और समस्त हिन्दी चाहकों को साफटवोयर के रूप में सुलभ हो। दूसरा काम यह है कि हिन्दी भाषा साहित्य के शिक्षण के लिये विश्वविद्यापीठ स्थापित हो ,जहां प्राचीन नालन्दा की तरह देश विदेश के लोग हिन्दी शिक्षण और शोध की प्रविधि सीखें।
तीसरा कार्यक्रम राजनीतिक है,हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थान दिलाया जाये। इसके लिये विश्वभर में अभियान चलाना होगा। और नया संकल्प लेना होगा।पूरे विश्वमें हिन्दी अध्ययन और अनुसंधान के नये रास्ते तलाशने होंगे।
आज का भारतीय दूतवास में यह आयोजन हिन्दी के लिये एक शुभसंकेत है। मैं इसके लिए भारतीय दूतवास एवं आप सभी हिन्दी प्रेमियों को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ। यह आयोजन आप को इस नयी दिशा में कार्य करने और नया संकल्प लेने का आवाहन करता है। हिन्दी भारत और विश्व की संस्कृति के संवाद का मंच बने। तभी हम विश्व हिन्दी का विश्व मन रच सकेंगे।
इस कविता में यही भाव है---
जाति धर्म भाषा विभिन्न स्वर
विश्वराग हिन्दी में सजकर
झंकृत करे ह्रदयतंत्री को
स्नेह भाव प्राणों में लय हो
सारी वसुधा एक ह्रदय हो
सभी विश्व के हिन्दी प्रेमी एक ह्रदय हों"
भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग व्यापक तौर पर किया जाता है। भारत के पड़ोसी देश के रूप में चीन में कई हिन्दी बोलने वाले हैं। भारत के विकास और हम दोनों देशों के बीच आदान प्रदान की मज़बूति के चलते ज्यादा से ज्यादा चीनी लोगों ने हिन्दी सीखना शुरू किया। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के प्रोफैसर वांग शूयिंग पचास सालों में हिन्दी का अध्ययन करते हैं और चीन भारत मैत्री को आगे बढ़ाने में भारी योगदा किए। उन्होंने कहा:
"मुझे हिन्दी में काम करते हुए 50 साल हो गये। शुरू में पेइचिंग विश्वविद्यालय में पढ़ता था और पढ़ाता था, फिर चीनी सामाजिक विज्ञान संस्थान में अध्ययन करने लगा। पिछले कुछ सालों में मैंने हिन्दी में कुछ कार्य किए। हिन्दी सीखने से लेकर आज तक के अध्ययन और काम में कठिनाइयों व दुखों का स्वाद मिला था और सफलताओं का आनंद भी मिलता है। इस के बारे में कुछ कहानियां हैं।
सब जानते हैं कि चीन और भारत संसार में सभ्य देशों में से एक हैं, इन दोंनों देशों ने दुनिया के संस्कृति के लिये अनेक योगदान किए हैं। पिछले दो हज़ार से ज्यादा सालों में दोनों देशों की जनता एक दूसरे से सीखती आयी है, जिस से दोनों दशों को अपने-अपने सांस्कृतिक विकास में बड़ी मदद मिलती है।
आज एशिया के विभिन्न देशों की आर्थिक प्रगति तेज़ी से बढ़ रही है, अर्थ व्यवस्था के तीव्र विकास के साथ-साथ अवशय ही संस्कृति अत्याधिक समृद्ध होगी, इस से एशिया के विभिन्न देशों के राजनीतिक आर्थिक विकास को बल मिलेगा। चीन और भारत इस विकास में मुख्य पात्र बनकर महत्वपूर्ण भमिका अदा करेंगे और एशिया के विभिन्न देशों के राजनीतिक व आर्थिक विकास की प्रेरक शक्ति बनेंगे, और अधिक योगदान करेंगे। इस विकास के रुझान को दुनिया के समस्त लोग समझने लगे हैं। ऐसी हालत में चीन व भारत और अच्छी तरह अपने देश का निमार्ण करने के लिए एक दूसरे से सीखना और आदान-प्रदान करना बेहद ज़रूरी है।
आज बड़ी खुशी की बात यह है कि चीन और भारत का संबंध लगातार सुधारने और दोनों देशों की दोस्ती दिन ब दिन गहरी होती जाने के साथ-साथ ज़्यादा से ज़्यादा चीनी लोग भारत को जानने की जिज्ञासा रखते हैं, इसी तरह ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय लोग भी चीन को जानने की जिज्ञासा रखते हैं। इस विकासशील स्थिति की ज़रूरत की वजह से मैं《चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पुस्तक माला》के संपादन कार्य में लगा हुआ हूं और यह प्रयास सफ़ल भी हुआ। पहली बार 5 किस्मों वाली पुस्तकें प्रकाशित हुईं। मेरी सोच के बाहर की बात यह है कि ये पुस्तकें प्रकाशित होने के बाद हाथों हाथ बिक चुकी हैं और दोनों देशों में तीव्र प्रतिबिंब हुआ है, मेरा सौभाग्य है कि मुझे " चीन-भारत मैत्री पुरस्कार " मिला है। यह हाल मैंने अपने स्वप्न में भी नहीं देखा था। मेरा ख्याल है कि अगर संभव हो, भारत में हिन्दी या अंग्रेज़ी में प्रकाशित होगी।
कुछ साल पहले मैंने हिन्दी में एक किताब लिखी,जिस का शीर्षक है "भारत-चीन सांस्कृतिक संबंध "। यह भारत में प्रकाशित हुई, इस के अलावा हिन्दी में कुछ लेख लिखे, जो भारत के अखबारों और पत्रिकाओं में छप गये।
भारत के बारे में मेरा जो ज्ञान है, वह ज़्यादातर हिन्दी के माध्यम से प्राप्त किया है। सच पूछिये तो सही, मुझे भारतीय संस्कृति में गहरी दिलचस्पी है और हिन्दी के प्रति बहुत रूचि है। पिछले कुछ सालों में भारत के बारे में मैंने 35 पुस्तकें लिखीं है, लेकिन ज़्यादा नहीं, और बहुत किताबें लिखनी चाहिये। मेरा विचार है कि जब मैंने हिन्दी सीखी है, तो ज़रूर उस को माध्यम बनाकर काम करता रहूंगा। मेरी तीव्र इच्छा है कि चीन एवं भारत की मैत्री निरंतर प्रगाढ़ हो, इस के लिये मैं अपनी भरपूर शक्ति से हिन्दी में काम करता रहूंगा।"
समारोह में पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफैसर च्यांग चिनख्वेइ ने जानकारी देते हुए कहा कि वर्ष दो हज़ार के पूर्व चीन में एकमात्र हिन्दी पढ़ाने वाला कोलेज था। पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से स्नातक विद्यार्थी अब चीन भारत मैत्री के विभिन्न जगतों में कार्यरत हैं। लेकिन आज दोनों देशों के बीच आवाजाही लगातार बढ़ने के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा लोग हिन्दी सीखने लगे। अब चीन में कुल आठ विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ायी जाती हैं, जिन में पेइचिंग विश्वविद्यालय, पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, पेइचिंग मिडिया विश्वविद्यालय, शिआन विदेशी भाषा विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। इन विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभागों की स्थापना के लिए पेइचिंग विश्वविद्यालय ने भारी योगदान किए। उन की मदद व सहायता की और समर्थन किया।
दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के उलपक्ष में आयोजित समारोह में इटली से आए लोरेन्ज़ो रेस्तांग्नो ने कहा कि वे हिन्दी को बहुत पसंद है। सिर्फ़ दो तीन महीने के समय में हिन्दी सीखने के बाद उन्होंने विश्व हिन्दी दिवस में अपनी खुशियां भी व्यक्त कीं। सुनिए इटालवी विद्यार्थी लोरेन्ज़ो रेस्तांग्नो की आवाज़
"नमस्कार। मैं ऋषि हूँ, इटली से हूँ। मेरे हिन्दी के अध्यापक डाक्टर शुक्ला जी हैं। भारतीय दूतावास में मैं हिन्दी का छात्र हूँ। संगीत का मैं भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक केंद्र में हिन्दी पढ़ती हूँ और संगीत का कोमपोज़र भी हूँ। आज विश्व हिन्दी दिवस है। आप सभी को हार्दिक बधाई। हिन्दी मुझे बहुत पसंद है। विश्व हिन्दी की जय। जय हिन्दी। जय हिंद।"
इस वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष में आयोजित समारोह में विभिन्न हिन्दी प्रेमियों ने भाषण दिए, हिन्दी कविता सुनाई, चीनी कलाकारों ने कथक व भरत नृत्य की प्रस्तुति की, सितार व तबला बजाया और चीनी गायिका ने भारतीय गाना भी पेश किया। सब लोग एक साथ होकर खूब मज़ा लिया। हम याद करेंगे कि दस जनवरी विश्व हिन्दी दिवस है। आशा है कि हिन्दी का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा व्यापक हो जाएगा। चीन में हम जैसे हिन्दी प्रेमी हिन्दी के प्रचार के लिए योगदान करने और चीन भारत मैत्री को आगे बढ़ाने को तैयार हैं।