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पर्यावरण संरक्षण पर गायक श्यो वेई की कहानी
2011-09-01 16:53:19

अब आप जो सुन रहे हैं,वह एक जाने-माने चीनी बैंड द कैचर इन द रै(the catcher in the rye)यानी गेहूं के खेत में कैचर का एक पुराना गीत है। गीत का नाम है रास्ते पर।आज मैं आपको इस बैंड के गायक श्यो वेई की कहानी बताऊंगी। इधर के सालों में गीत गाने के साथ-साथ श्यो वेई ने पर्यावरण संरक्षण के लिये भी कुछ काम करना शुरु किया।किसी टिप्पणी के मुताबिक उन्होंने गेहूं के खेत में कैचर अपने बैंड को जंगल का कैचर, हाथी के लिये कैचर बनाया है। संगीत से पर्यावरण तक अपने गीत की तरह वे हमेशा रास्ते पर हैं।उनकी पहली लंबी सफ़र वर्ष 2006 में प्रारंभिक हुई।उस वर्ष वे पर्यावरण संरक्षण स्वयंसेवक के रूप में पापुआ न्यू गिनी के आदिम वन गये,जो पृथ्वी पर सब से ज्यादा स्वर्ग जैसा स्थान है। अपनी उस सफर की याद करते हुए श्यो वेई ने कहाः

वहां जाने से पहले मुझे यह भी पता नहीं चला कि यह देश कहां पर स्थित है।सबसे पहले मेरे दिमाग में आया था कि यह देश अफ़्रीका में होगा।लेकिन बाद में मुझे मालूम हुआ कि वह दक्षिण प्रशांत महा सागर पर है। वहां जाने से पहले मैंने कुछ संदर्भ सामग्री पढ़ी, जिसमें लिखा गया कि वहां पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एकमात्र आदिम वन मौजूद है। लेकिन उसके अस्तित्व केलिए काफी बहुत जोखिमें हैं। वहां हम एक झोंपडी़ बनाकर रहते थे। वह झोंपड़ी दक्षिण चीन के झूलते मकान से मिलती-जुलती है।झोंपड़ी में एक बड़ा सा पलंग रखा गया,जिसपर बहुत से लोग सोते थे।प्रति व्यक्ति को एक मच्छरदानी और एक चटाई बांटे गये।हम खुद एक हवा से भरी तकिया और एक स्लीपिंग बैग लाये। हमने जो भोजन खाया, वह आदिवासियों द्वारा शिकार मारे गए जानवरों का मांस है।ये आदिवासी जंगल के राजा है।उनके लिये जंगल सब कुछ है।जो खाना वे खाते हैं,पानी वे पीते हैं,जो जड़ी-बूटी वे तोड़ते हैं,ये सब कुछ जंगल में मिलते हैं।अगर जंगल नष्ठ हो गया, तो उनका जीवन मुसीबत में पड़ेगा।

उस समय श्यो वेई ने पहली बार प्रकृति के इतने करीब आये थे। वे हर रोज़ स्वर्ग जैसे जंगल में आकाश के नीचे सोते थे और मिट्टी का सोंध सूंघते थे।वे हर दिन चिड़ियों का गाना सुनते थे।वे रोज किसी न किसी अज्ञात वनस्पति को पाते थे।लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें रोज़ जंगल के धीरे धीरे नष्ट होने की खबर भी मिलती थी। उस स्वर्ग जैसे वर्षा वन के दौरे ने श्यो वेई को बदल दिया।स्वदेश लौटने के बाद वे पर्यावरण संरक्षण कार्य में और ज़्यादा जोश दिखाते हैं।वे पर्यावरण संरक्षण के विषय पर गीत लिखते हैं और कार्यक्रम पेश करते हैं।वे संगीत के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की आवधारणा का प्रसार करते हैं।वर्ष 2009 में वे फिर एक बार पर्यावरण संरक्षण स्वयंसेवक के रूप में "हाथी के साथ चलें" नामक गतिविधि में हिस्सा लेने के लिये थाईलैंड गये। इस गतिविधि के दौरान श्यो वेई पांच हाथियों के साथ सियाम वर्षा वन से गुज़रे। इस 250 किलोमीटर की सफर में उन्होंने दूसरे स्वयंसेवकों तथा थाई लोगों के साथ जंगल की बिगड़ती हुई स्थिति और हाथियों की जीवन परिस्थिति में हुए परिवर्तन देख लिये। इस पर श्यो वेई ने बतायाः

हम मध्य थाईलैंड में कोआई नाम एक राष्ट्रीय वन्य पार्क से पांच हाथियों के साथ यात्रा करते हुए बैंकॉक पहुंचे।रास्ते पर हम उन जंगहों से होकर चले थे,जहां पर जलवायु परिवर्तन का विशेष कुप्रभाव पड़ा है, जैसे ग्रामीण क्षेत्र या मछुआ गांव, शायद वहां के निवासियों को जलवायु परिवर्तन की परिभाषा नहीं पता हैं,लेकिन वे यह जरूर महसूस कर सकते हैं कि अनाज की फसल घट गयी है, सूखा अधिक फैला है और मछलियां पकड़ना भी अधिक मुश्किल हो गया है। हमने उन्हें सही कारण बताया।वहां पर हाथी

एक पूज्य जानवर माना जाता है, गांववासी हाथी को बहुत प्यार करते हैं।इस विशेष जानवर की स्थिति देखकर उन्हें मालूम हुआ कि न केवल मनुष्य बल्कि तरह-तरह जीवों पर भी मौसम परिवर्तन का असर पड़ा है।वास्तव में वहां हम एक प्रचार दल का काम निभाते थे।

हाथियों के साथ यात्रा के दौरान श्यो वेई ने पहली बार वीडियो कैमरे में रास्ते पर,जो देखा और सुना, उसे सब कुछ उतार लिया। हाथियों के साथ दिन रात बिताने के कारण श्यो वेई इस प्यारे व चतुर जानवर को जानने और पसंद करने लगे। आज भी श्यो वेई के दिमाग में थाईलैंड में अपने इन लंबे सूंड़े वाले दोस्तों की छवि आती रहती है।श्यो वेई की आंखों में हरेक हाथी दूसरों से अलग दिखता है।हरेक हाथी का अपना अपना स्वभाव होता है।उन पांच हाथियों में से श्यो वेई को टोंगटैन नामक एक हाथी सबसे बड़ा पसंद है और उस की याद भी अधिक सताती है। श्यो वेई के अनुसार टोंगटैन उन पांचों में से सबसे सुंदर नर हाथी है।टोंगटैन के दंत लम्बे अच्छे है और शरीर सुडौल है। 20 से अधिक वर्षीय टोंगटैन का मिज़ाज़ भी अच्छा है।वह बचपन से ही महावट से पाला जाता है।उसके महावट एक उच्च स्तरीय महावट है। उनका नाम है पिदू ।

श्यो वेई के लिये पिदू एक बहुत आदरनीय महावट थे।वे एक महावट घराने में पैदा हुए थे।उनके परिवार में लोग पीढी दर पीढ़ी हाथी पालन से जीविका गुज़ारा करते हैं।लेकिन यह श्यो वेई की कल्पना के बाहर आया कि अंत में पिदू जैसे कार्यकुशल महावट की जान भी हाथी से गंवायी।श्यो वेई ने याद करते हुए कहाः

पिदू का एक दोस्त है,जिसके पास एक मादा हाथी है।पिदू के दोस्त के अनुसार इस हाथी का मिज़ाज़ अच्छा नहीं है और बहुत आक्रामक है। इसलिये उसने पिदू से उस हाथी को पालने और उसे वश में लाने का आग्रह किया।पिदू एक कुशल महावट थे।उन्होंने अपने टोंगटैन के साथ उस हाथी को पालने का वचन दिया।एक बार वे तीनों साथ-साथ जंगल में गये।लेकिन अंत में सिर्फ़ टोंगटैन वापस आया।पिदू मर गये,जबकि वह मादा हाथी भी लापता हुई।किसी को भी नहीं पता चला कि जंगल में क्या-क्या हुआ था। पर लोगों ने अंदाज़ा लगाया कि उस मादा हाथी ने पिदू व टौंगचैन की लापरवाही का फ़ायदा उठाकर पिदू पर हमला बोला।इस बात से मुझे बड़ी ठेस पहुंची। अखिरकार उस मादा हाथी की मनुष्य के साथ कैसे दुश्मनी पैदा हुई ? और उसने पिदू से क्यों बदला लिया?

मनुष्य और हाथियों के बीच संबंधों में परिवर्तन से श्यो वेई को बड़ा धक्का लगा है।हाथियों के साथ यात्रा के बाद श्यो वेई समझने लगे कि जिसके पास हाथियों के बारे में ज़्यादा जानकारियां हैं,उसपर ज़्यादा कर्तव्य होता है। उन्होंने जो देखा है, ये सब लोगों को बताने के लिये श्यो वेई बहुत तत्पर हैं। वे बड़े उत्साह के साथ काम में जुट गए।उन्हें हाथियों के संबंध पर एक डॉक्युमन्टरी बनायी। रोज़ सुबह आंखें खोलकर बिना दांतों को टूथपेस्ट लगाये और मुंह धोये वे सीधे कम्प्यूटर खोलते और कल का काम चेक कर आगे काम करते रहे । दोपहर तक काम चलता रहा। फिर दांतों को टूथपेस्ट लयागा,मुंह हाथ धोया और कुछ खाया।सब पूरा करके वे फिर से कंप्यूटर के सामने बैठे रात तक काम करते रहते थे।

श्यो वेई खुद लिखते थे,वीडियो की एडिटिंग करते थे और डॉक्युमन्टरी के लिये नया संगीत रचा। डॉक्युमन्टरी संपन्न करने में करीब 8 महीने लगे। उन्होंने इस डॉक्युमन्टरी को "हाथी का आज और कल" का नाम रखा।उनकी आशा है कि हाथी की यह जीव जाति हमेशा बनी रहेगी।उन्हें यह भी उम्मीद है कि डॉक्युमन्टरी देखने वाले और संगीत सुनने वाले लोगों के दिल में हाथियों व जंगलों का संरक्षण करने के बीज बोनेंगे। श्यो वेई का कहना हैः

हाथियों की किस्मत और जंगल व मनुष्य के बीच संबंध काफ़ी जटिल दिखते हैं।थाईलैंड इस तरह का देश है,जिसमें लोग हाथियों को इतना प्यार करते हैं। लेकिन इसी देश में सौ साल पहले हाथियों की संख्या 3 लाख थी, अब घटकर 3 हज़ार रह गयी, आखिर क्यों है और आखिर क्या हो रहा है। क्यों थाईलैंड में वन की दर 90 प्रतिशत से अधिक घटकर अब दसेक प्रतिशत रह गयी। सवाल काफ़ी ज्यादा हैं और वे एक दूसरे से जुड़े है। मैं जितना जानता हूं, उतना लगता है कि दाल में जरूर काला है।मैं समस्या का रहस्य खोलना चाहता हूं कि बात शुरू से अंत तक कैसे विकसित होती चली गयी है।

श्यो वेई के द्वारा रचे "हाथी का आज और कल" नामक डॉक्युमन्टरी को तीसरी चीनी प्रकृति डॉक्युमन्टरी प्रदर्शनी में प्रमुख पुरस्कार मिला। इस डॉक्युमन्टरी के डीवीडी रिलीज किये जाने के साथ कुछ टीवी चैनल पर दिखाया गया है। इस के सिवाय हाथियों की जीवन स्थिति पर ध्यान देने से संबंधित टी-शर्ट और यादगारी वस्तुएं भी बाजार में उतारे गए हैं।श्यो वेई को यह देखकर बड़ी खुशी है कि अपने प्रयास से लोगों का ध्यान प्रकृति पर धीरे धीरे खींचा गया है। डॉक्युमन्टरी में उन्हों ने यह वाक्य लिखा——जब मनुष्य और हाथियों के बीच मुठभेड़ का सामना करते समय लोगों का ध्यान केवल हाथियों से सतर्क रहने व उन्हें भगाने और मुआवज़ा के अनुपात पर केंद्रित होता है,या तो हाथी के गैर-कानूनी शिकार व गजदंतों के तस्करी के खिलाफ़ गजदंत व्यापार को वैध बनाकर प्रबंध मज़बूत करने पर लोग विचार करते हैं, तो वे मनुष्य व दूसरे जीवों के बीच संतुलन बनाये रखने के लिये एक ज़रूरी पहलू और सबसे अहम पहलू——प्रकृति को नज़रअंदाज करते हैं। प्रकृति सबसे बढ़िया डिज़ाइनर है।संतुलन की स्थापना पर सिर्फ़ प्रकृति हमारी मदद कर सकती है।

श्यो वेई की हाथियों के साथ यात्रा खत्म हो गयी।लेकिन उन्होंने कहा कि प्रकृति पर उनका ध्यान देना केवल शुरू हुआ है।

वास्तव में चीन में श्यो वेई की भांति सार्वजनिक कल्याण पर ध्यान देने और सेवा करने वाले स्टारों की संख्या बढ़ती जा रही है। च्यांग वेन ली संयुक्त राष्ट्र एडज कार्यक्रम के प्रसार प्रचार में जुटी हुई हैं।च्यो शून को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के द्वारा अपना एम्बेसीडर नियुक्त किया गया। वे अपनी शक्ति और कोशिशों से ज़्यादा लोगों को प्रभावित कर रहे हैं और दुनिया को बेहतर बनाने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं।

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