पिछले कार्यक्रम में हमने आपको जोखांग मठ का परिचय देते समय कहा था कि, तिब्बत में जोखांग मठ का इतिहास लगभग 1350 साल पुराना है। यह ल्हासा का सबसे प्राचीन मठ है। जोखांग मठ और पोताला महल दोनों एक साथ ही विश्व विरासत धरोहरों की सूची में शामिल हुए हैं। अखिरकार जोखांग मठ में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व वाली क्या क्या चीजें देखने को मिलती हैं, इस की जानकारी के लिए आज के इस कार्यक्रम में हम फिर से जोखांग मठ का दौरा करेंगे।
जोखांग मठ प्रातः कालीन समय हमेशा भक्तों से भरा हुआ होता है। सभी लोग यहाँ पर धार्मिक सूत्र चक्कों को घुमाने के लिए आते हैं। वहां जमीन पर जगह जगह मिट्टी तेल में सनी होती है लेकिन इसके बावजूद लोग बड़ी तन्मयता के साथ सूत्र चक्कों के चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं। यहाँ आने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है लेकिन फिर भी लोग बहुत ही एकाग्रता के साथ मंत्र का जाप करते रहते हैं। वे लोग अपने पूज्य बुद्ध की प्रतिमा को ढ़ूंढते हैं और उसकी पूजा करते हैं। सामने रखे दीपों को तेल से भर देते हैं, तथा दीपों के प्रकाश में सभी लोगों के चेहरे दीप्तमान रहते है। उस समय हमलोग तिब्बती लोगों के धार्मिक जीवन का अवलोकन कर सकते हैं। हमारे गाईड ली शाओ हुआ ने परिचय देते हुए कहाः
हमलोग यहाँ पर जब सूत्र चक्कों के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं या फिर यहाँ पर घूमते हैं तो घड़ी की सूई की दिशा में घूमते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म चार संप्रदायों में बँटा हुआ है। लेकिन जोखांग मठ किसी विशेष बौद्ध संप्रदाय के
अधीन नहीं है। यहाँ पर चारों संप्रदाय के लोग पूजा करने आते हैं। यह एक बुद्ध प्रतिमा वाला पवित्र स्थल है। इसलिए जोखांग मठ में शाक्यमुनि के 12 वर्ष समय की प्रतिमा के अलावा चारों बौद्ध संप्रदायों के प्रवर्तकों की भी प्रतिमाएं स्थापित हुई हैं।
जोखांग मठ के निर्माण के समय में तिब्बत में घर का त्याग कर भिक्षु बनने का रिवाज नहीं था। पांचवीं शताब्दी में जब दलाई लामा ने धार्मिक शासन शुरू किया था तो उस समय उन्होंने जोखांग मठ में अपनी शासन संस्था कायम की थी। तिब्बत में बौद्ध धर्म के गेलगु संप्रदाय की उत्पत्ति के बाद, हरेक साल जोखांग मठ में उस की वार्षिक धार्मिक सभा लगना शुरू हुआ। उसी समय से वहाँ पर दलाई व पंचन लामाओं के दीक्षा समारोह का आयोजन होना भी शुरू हुआ। इसलिए यह कहा जा सकता है कि जोखांग मठ प्राचीन काल से बौद्ध धर्म के आयोजनों का केंद्र रहा है।
यह जोखांग मठ का एक प्रांगण है। वर्ष 1409 में, गेलगु संप्रदाय के प्रवर्तक सोंगपा ने यहाँ पर बहुत बड़े पैमाने पर दीक्षांत समारोह का आयोजन किया था। इस समारोह का नाम जोखांग समारोह था। जोखांग मठ का नाम भी इसी समारोह के नाम पर रखा गया है। हजारों बौद्ध भिक्षु यहाँ बैठकर एकसाथ बौद्ध सूत्र का पाठ करते हैं। इसके साथ ही यह एक बहुत बड़ा परीक्षा स्थल भी है। यहाँ पर गेलगु संप्रदाय की सबसे उच्च डिग्री के लिए परीक्षा दी जाती है जो वर्तमान समय के स्नातकोत्तर और डॉक्टेरेट की डिग्री के बराबर होता है। इस डिग्री के मिलने के बाद ही तीन बड़े मठों के मठाधीश बनने का मौका मिल सकता है।
जोखांग मठ में बुद्ध प्रतिमाओं के अलावा तिब्बती जाति और संस्कृति के विकास के लिए महान योगदान करने वाले लोगों की मूर्तियां भी रखी गयी हैं। इन में से एक है थांगतुंगपु की मुर्ति।
अभी हम जो सफेद व लंबी दाढ़ी, सफेद बाल, सफेद भौंह वाले व्यक्ति की प्रतिमा देख रहे हैं, वह तिब्बती के प्रसिद्ध स्थानीय वैद्य थे। इनके बारे में तिब्बत में प्रचलित एक कहानी भी है। 7 वीं शताब्दी में पूरा ल्हासा एक दलदल पठार की तरह था। उस समय वहां आवागमन के लिए लोग आम तौर पर चमड़े के नौका का प्रयोग करते थे। एकबार जब वे ल्हासा नदी पार कर रहे थे तो नाव वाले से उनकी बहस हो गई। नाव वाले ने उन्हें नदी में धक्का देकर गिरा दिया। उन्हें बहुत ही गुस्सा आया और उसी समय प्रण किया कि नदी पर लोहे का एक झुलता पुल बनाएंगे, ताकि सभी नदी पार करने वालों को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। उन्होंने ने अपने जीवनकाल में 108 पुलों का निर्माण करवाया।
हम सभी जानते हैं कि पुल के निर्माण में बहुत सारे पैसों की आवश्यकता होती है। तिब्बत के लोका क्षेत्र में एक परिवार रहता था, उसके परिवार में सात लड़कियां थी। परिवार की स्थिति बहुत खराब थी इसलिए महान वैद्य ने इस परिवार की सात लड़कियों के लिए एक तिब्बती नाटक लिखकर दिया, उनके प्रदर्शन से जीवनयापन के अलावा पुल के निर्माण के लिए भी आवश्यक धनराशि की व्यवस्था की गई। बाद में वे तिब्बती नाटक के अग्रणी बन गए। साथ ही वे एक तिब्बती बौद्ध धर्म के आचार्य भी थे। तिब्बत में उन्होंने बहुत सारे कल्याण के कार्य किए हैं। वह एक महान गुरू थे जिस का नाम थांगतुंगपु ही था। आज भी तिब्ब्त में जब लोग नये मकान का निर्माण करते हैं तो सबसे पहले घर में उन्हीं की तस्वीर लगाते प्रार्थना करते हैं।
जोखांग मठ में सातवीं शताब्दी के समय उपयोग में लाई गयी चंदन की लकड़ियों के कामों तथा उनके उपर की गई सुंदर नक्काशी को भी पर्यटक आज देख सकते हैं। मठ में आज भी बहुतसे पुरानी लकड़ियों के स्तंभ सुरक्षित है। हमारे पर्यटन गाईड ली शाओ हुआ ने बताया कि इस मठ में लकड़ियों पर की गयी नक्काशी और चंदन स्तंभों का महत्वपूर्ण स्थान है।
इस तरफ मठ निर्माण के समय छोड़ कर रह गयी एक चंदन की लकड़ी है। तिब्बती लोगों का मानना है कि इस लकड़ी में अभी भी जीवात्मा है और सभी लोग उसे स्पर्श करते हैं। इसलिए इसके उपर तेल की मोटी परत लगी हुई है तथा वह बहुत चिकनी भी है। यह दिलचस्प बात भी देखने को मिलती है कि कुछ लकड़ी के स्तंभों में आदमी के दाँत भी गड़े हुए हैं ऐसा क्यों है। इसके बारे में कहा जाता है कि, जब आप तिब्बत आते हैं तो बहुत सारे बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग छिंग हाई या स्छवान से भी आते हैं। लेकिन वे पैदल या दंडवत करते हुए तिब्बत पहुँचते हैं। कुछ लोगों को तिब्बत पहुँचने में एक साल लग जाता है तो कुछ लोगों को छह सात साल भी लग जाता है। जो लोग वृद्ध होते हैं या जिनकी शारिरिक स्थिति अच्छी नहीं होती है, वे लोग बीमारी के कारण बीच रास्ते में ही स्वर्ग सिधार जाते हैं। इसलिए उनकी इच्छा पूरी करने के लिए लोग उनके दाँत को साथ में लाते हैं तथा लकड़ी के स्तंभ में गाड़ देते हैं। क्यों कि दाँत मनुष्य के शरीर का एक भाग है और लंबे समय तक टिका रहता है। साथ ही ऐसा लगता है जैसे वह मनुष्य स्वयं यहाँ आया हो।
जोखांग मठ के उपप्रबंधक और वरिष्ठ भिक्षु माछरन का मानना है कि तिब्बती बौद्ध धर्म में जोखांग मठ का स्थान अद्वितीय है।
जोखांग मठ तिब्बत में स्थित अन्य प्रसिद्ध तीन मठों से कुछ भिन्न है। हमलोग जानते हैं कि ल्हासा के तीन प्रसिद्ध मठ कानतान मठ, चेबांग मठ और सेला मठ है। बौद्ध धर्म के दृष्टिकोण से, ये सभी मठ बौद्ध धर्म के शिक्षालय हैं, लेकिन जोखांग मठ एक बौद्ध महल भी है जहाँ पर अनुयायी पूजा करने आते हैं। इसलिए, हमलोग प्रायः कहते हैं कि जोखांग मठ के भिक्षु पसंद के अनुसार मठों के प्रबंधन में निपुण होते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म में लोगों के लिए सबसे पवित्र स्थल जोखांग मठ ही है क्योंकि यही मठ तिब्बत में सबसे पहले बनाया गया था।
वर्ष 2000 में विश्व विरासत सूची में शामिल होने के बाद, जोखांग मठ के देखभाल के लिए बहुत सारा प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहाः
क्योंकि, बौद्ध धर्म में पहले मठ के भवन के भीतर दीप जलाने की प्रथा थी। हजारों लाखों की संख्या में दीप जलाए जाते थे जिससे आग लगने से रोकने में काफी परेशानी होती थी। इसीलिए हमने भी इसके बारे में कुछ उपाय किये हैं। आगजनी रोकने के लिए हमने विभिन्न विभागों की मदद से दीप जलाने के लिए प्रांगन में एक विशेष जगह का निर्माण किया है जो कि जोखांग मठ से एक निश्चित दूरी पर स्थित है। इस तरह से हमने एक बहुत गंभीर समस्या को हल किया है। जोखांग मठ के अंदर मिट्टी लकड़ी की मात्रा बहुत ज्यादा है जिससे आग लगने की स्थिति में पर्यटकों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।
पर्यटकों की संख्या में दिन पर दिन हो रहे इजाफे को देखते हुए हम आशा करते हैं कि सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा की जानकारी को लोगों तक पहुंचाने के काम में और तेजी लाई जाएगी। क्योंकि जोखांग मठ सिर्फ तिब्बती लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व और मानवजाति के लिए समर्पित है।
वर्तमान में हमलोग जिस समस्या का सामना कर रहे हैं उनमे से एक दर्शकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि है। इसलिए सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा की जानकारी अधिक से अधिक लोगों के पास पहुँचाना बहुत ही आवश्यक है। जोखांग मठ पूरे मानव जाति के लिए एक सांस्कृतिक विरासत है। यह हमारे पूर्वजों द्वारा दिया गया हजारों साल पुराना ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे आने वाली पीढ़ी को भी सुरक्षित अवस्था में सोंप दें।