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शांगरिला की सूर्य देवी— तिब्बती डाकिया निमा लामू
2011-09-02 13:22:19

शांगरिला दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत में स्थित है, जो छिंगहाई तिब्बत पठार के दक्षिण में समानांतर बहती तीन नदियों को जोड़ने वाले पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है। यहां ऊंचे ऊंचे पहाड़ खड़े होने के कारण यातायात बहुत दुर्गम है। इसलिए डाक सेवा इस क्षेत्र को बाहरी दुनिया के साथ जोड़ने वाला एक मात्र माध्यम है। इस आलेक में आप को शांगरिला में कार्यरत तिब्बती महिला डाकिया निमा लामू का परिचय दिया जाएगा।

तिब्बती भाषा में निमा लामू का अर्थ है"सूर्य देवी"। स्थानीय नागरिकों की नज़र में निमा लामू देवी की तरह सुन्दर है और वह लोगों को सुखी व सुकून लाती हैं। इस वर्ष 13 मई को निमा लामू यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन यानी यूपीयू के अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो के निमंत्रण पर स्विट्जरलैंड गई और यूपीयू की प्रबंध परिषद के वार्षिक सम्मेलन में डाक सेवा के क्षेत्र में अपने अनुभवों से अवगत कराया, जिस की विभिन्न देशों के डाक जगत के प्रतिनिधियों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। क्या कारण है कि एक साधारण महिला डाकिया को नागरिकों का इतना गहरा प्यार हासिल हुआ है और अन्य डाकवालों की कराहना प्राप्त हो गयी है?इस का उत्तर आप को इस रिपोर्ट में मिल सकेगा।

शांगरिला के बर्फिले पहाड़ों की तलहटी में गांव घने जंगलों और दूरगर्म क्षेत्र में बसे हुए हैं। बड़े-बड़े पहाड़ स्थानीय लोगों और बाहरी दुनिया के बीच संपर्क का रास्ता बाधित करते हैं। ऐसे में बाहर के साथ संपर्क की चिट्ठियां व पैकेज डाकवालों द्वारा पैदल चलते हुए लोगों के हाथ पहुंचाए जाते हैं। कई पहाड़ी घाटी क्षेत्रों में लोग नदी के दोनों किनारों पर झूलते विशेष केबल पर सरकते हुए नदी को पार करते हैं। उफनती बहती लानछांग नदी पर झूले केबल पर सरकते नदी को पार करना सब से अधिक खतरनाक बात है। शुरू-शुरू में इस नदी को पार करना निमा लामू के लिए भी दहला देने वाला था। प्रथम बार नदी के ऊपर झूलते केबल से गुज़रने में अपने अनुभव की चर्चा करते हुआ उन्होंने कहा:

"मुझे याद है कि पहली बार केबल से गुज़रते समय मुझे बहुत डरता था। उस समय हमारे डाकघर के पूर्व प्रधान मेरे साथ थे। उन्होंने कई बार नदी पार कर मुझे दिखाया। फिर भी मुझे बड़ा डरा हुआ। अंत में मैंने सोचा कि नदी के दूसरे तट पर स्थित गांवों के लोग हमेशा इस प्रकार के तरीके से आते जाते हैं, और वे लोग ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकती। सोचते-सोचते मैं ने साहस बटोरकर केबल पर अनपे को अटकाया । सच कहूं, उसी वक्त मुझे सचमुट बहुत भय हुआ था। हमारे डाकघर के प्रधान ने मेरे पीठ पर धक्का देकर आगे बढ़ाया। मैं यो नजान में ही नदी के इस तट से दूसरे तट तक पहुंच गयी, मानो हवाई जहाज पर बैठे उड़ी हो।"

निमा लामू की बातचीत में चर्चित डाकघर के पूर्व प्रधान श्री सांग सन है, जिन्होंने इस तिब्बती लड़की को डाक सेवा कार्य में लाया। उस समय डाक घर में सिर्फ़ दो कर्मचारी थे, यानी निमा लामू और सांग सन। सांग सन ने बार-बार निमालामू से कहा कि डाक सेवा लोगों के जीवन से जुड़ी है। उन्होंने निमा लामू को डाक पहुंचाने के रास्ते पर मौजूद विभिन्न प्रकार के खतराओं को दूर करने के तरीके भी सिखाए। मसलन् पहाड़ के ऊपर से गिरते पत्थरों व तेज़ पहाड़ी हवा से बचना और जहरे साँप का मुकाबला करना आदि।

वर्ष 1999 में निमा लामू ने डाक पहुंचाने का काम शुरू किया। इस के बाद से लेकर अब तक हर दिन वह दस या पंद्रह किलोग्राम डाक को पीठ पर लादकर बर्फीले पहाड़ी क्षेत्र और गहरी घाटियों में आती जाती रही है। वह हर चिट्ठी, हर पर्सल और हर पत्र-पत्रिका को स्थानीय तिब्बती नागरिकों के हाथों पहुंचा देती है, कभी गलती नहीं हुई है। पिछले दसेक वर्षों में निमा लामू मुख्यतः तीन डाक रास्तों पर आती जाती रहती है।

एक रास्ता है, लानछांग नदी के किनारे किनारे नदी के ऊपरी भाग में स्थित मिनयोंग गांव जाता है। इस रास्ते में उसे घुमावदार चांदनी घाटी से गुज़रना पड़ता है, जहां की भौगोलिक स्थिति बहुत जटिल है। इस रास्ते से आने जाने में चार - छह दिन लगते हैं। दूसरा रास्ता है, चांदनी घाटी के प्रवेश द्वार से आगे चलकर समुद्र की सतह से 4500 मीटर ऊंचे बर्फीले पहाड़ को पार कर यूपङ गांव पहुंचता है, इस सफ़र में तीन दिन का समय लगता है। तीसरा रास्ता है, समुद्र की सतह से 2400 मीटर ऊंचाई पर स्थित युनलिन जिला केन्द से गुज़रकर दस किलोमीटर पहाड़ी मार्ग चलकर समुद्री सतह से 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होंगफो गांव तक पहुंचता है। होंगफो गांव पहुंचने के बाद समुद्र तल से 1900 मीटर ऊंचे पहाड़ी पगडंडी से लानछांग नदी के घाटी क्षेत्र में आगे चलता है, इस के बाद 13 किलोमीटर की दूरी पर एक झूलता केबल मिलता है, इसके जरिए नदी के दूसरे किनारे पर स्थित तीन गांव पहुंचता है। इस तरह निमा लामू को पैदल से 350 किलोमीटर चलना पड़ता है। इन तीन रास्तों में अलग अलग भौगोलिक स्थिति के कारण अलग अलग जलवायु मिलता है। कहा जाता है कि एक पहाड़ पर चार ऋतुएं होती है और पांच किलोमीटर की दूरी में भिन्न भिन्न जलवायु होता है। निमा लामू को कभी-कभी एक ही दिन में शून्य से नीचे कड़ाके की सर्दी तथा शून्य से ऊपर 30 सेल्सियस डिग्री के तपते मौसम को सहना पड़ता है।

इधर के वर्षों में चीन में आर्थिक विकास के चलते चीनी डाक संचार में भी परिवर्तन आया है। डाकिया के लिए काम की स्थिति भी सुधर हो गयी है। निमा लामू ने कहा कि अब लानछांग नदी पर पुल का निर्माण किया गया है, डाक पहुंचाने के लिए फिर झूलते केबल का सहारा लेना जरूरी नहीं रहा। स्थानीय नागरिकों का जीवन स्तर भी उन्नत हुआ है, मोबाइल फॉन जैसा माल व पैकेज निमा लामू की डाक सेवा की मुख्य चीज़ बन गयी है। इससे उस के कंधे पर डाक की थैली भी बड़ी हो गयी। उसने कहा कि स्थानीय लोगों को खुशी पहुंचाने के लिए चाहे कितना मुश्किल क्यों न हो, उसे उन्हें मूल्यवान और काबिला महसूस होता है।

निमा लामू ने कहा कि विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के दाखिला प्रमाण पत्र पहुंचाना उस के लिए सबसे बड़ी खुशी की बात है। हर वर्ष जून माह में चीनी मिडिल स्कूलों में उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्र स्तरीय परीक्षा की जाती है। इस के बाद विद्यार्थी अपने परीक्षा अंक के अनुसार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों व उच्च स्तरीय विद्यालयों में अपना आवेदन करते है। जुलाई और अगस्त माह में देश भर के विश्वविद्यालय अपनी मांग व स्थिति के अनुसार मिडिल स्कूली विद्यार्थियों को दाखिल करते हैं। इसके लिए सभी विश्विद्यालय विभिन्न स्थलों में रहने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र भेजते हैं। अतः जुलाई व अगस्त माह निमा लामू जैसे डाकिया के लिए सबसे व्यस्त काल है। लेकिन निमा लामू ने कहा कि इसी समय उसे सब से ज्यादा खुशी लगती है, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा तिब्बती विद्यार्थी प्रमाण पत्र हासिल कर पहाड़ी क्षेत्र से निकल कर बाहरी दुनिया में प्रवेश करते हैं, वे और ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, इस के प्रति उसे बहुत खुशी हुई। निमा लामू ने कहा:

"आम तौर पर मैं जुलाई और अगस्त माह में विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय के दाखिला प्रमाण पत्र पहुंचाती हूँ। इसी दौरान कभी कभी वर्षा बरसाती है। लेकिन यह प्रमाण पत्र विशेष डाक पत्र है, उन्हें यथाशीघ्र विद्यार्थी के हाथों पहुंचाना है। अगर विद्यार्थी के घर में कोई नहीं है, तो मैं पड़ोसियों से पूछती हूँ और उन्हें खोजने की अथक कोशिश करती हूँ, ताकि प्रमाण पत्र जल्द ही विद्यार्थियों के हाथों सौंप दिया जा सके। प्रमाण पत्र प्राप्त करने के वक्त उनकी खुशियां देखकर मुझे भी बड़ा आनंद लगता है।"

निमा लामू के परिवाजन उस के डाक कार्य का समर्थन करते हैं। पति आशिबू कभी कभार पुत्नि की सहायता भी करते हैं। अवकाश के समय अगर डाक पाने वाले का घर आसपास के हो, तो पति अपनी गाड़ी चलाकर पत्नि के साथ पत्र पहुंचाते हैं। यह पूछे जाने पर कि निमा लामू डाकिया बनने से बहुत व्यस्थ होने के कारण पारिवारिक काम नहीं कर सकती, क्या पति जी को इस पर कोई शिकायत है या नहीं?इस के जवाब में आशिबू ने कहा:

"यह उस की नौकरी है। उसे अपना काम बहुत पसंद है। मेरा विचार है कि पति के नाते मुझे उसका समर्थन करना चाहिए, न कि शिकायत करना।"

निमा लामू और आशिबू के एक दस वर्षीय बेटा है। निमा लामू ने कहा कि गर्भवर्ती होने के दौरान भी वो सातवें महीने तक डाक पहुंचाने पर डटी रहती थी। उसे इस प्रकार का कार्य मूल्यवान लगता है। निमा लामू ने कहा:

" डाक सेवा का मेरे दिल में पहला स्थान होता है। गर्भवर्ती होते समय भी मैंने सोचा कि सभी डाक पहुंचाए जाने के बाद मैं अच्छी तरह आराम कर सकती हूँ।"

चीनी डाक ग्रुप कंपनी के उप मेनेजर फङ शिनशङ ने कहा कि चीन में निमा लामू की तरह करीब दस हज़ार डाकवाले हैं। वे दिन ब दिन और साल ब साल अपने पद पर अच्छी तरह काम करते हैं। आर्थिक विकास के चलते ज्यादा से ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में राज मार्ग निर्मित किया गया है। लेकिन कम डाकवालों को डाक-गाड़ी पर सवार होकर डाक पहुंचाने की सुविधा मिलती है। क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में राज मार्ग की तुलना में पहाड़ी रास्ते से डाक पहुंचाने में कम समय लगता है। उन्होंने कहा कि अच्छी तरह डाक सेवा करने के लिए संबंधित स्थिति का सुधार किया जाना चाहिए। यह डाक जगत का काम ही नहीं, सारे समाज की कोशिशों व समर्थनों की आवश्यकता भी है। फङ शिनशङ ने कहा:

"हमारे डाक सेवा क्षेत्र में आंशिक कर्मचारियों की कार्य स्थिति बहुत कठोर है। हमारी ग्रुप कंपनी उनकी स्थिति सुधारने का प्रयास करती है, लेकिन पूरी तरह सुधार लाना असंभव है। हम निमा लामू जैसे महिला डाकिया को कठिन स्थिति वाले पहाड़ी क्षेत्र में भेजना नहीं चाहते है?लेकिन वहां राजमार्ग नहीं है, हमें उसे भेजना पड़ता है। हमारी आशा है कि देश के पश्चिमी प्रांतों में शीघ्र ही आर्थिक विकास होगा। क्योंकि आर्थिक विकसित होने के बाद गांवों में पानी, बिजली व राज मार्ग की सुविधा मिलेगी, जिससे डाक कार्य का वातावरण बुनियादी तौर पर सुधर जा सकेगा।"

वर्तमान में निमा लामू अपने डाक सेवा रास्ते पर आती जाती रहती है। हवा में, वर्षा में, सूर्योदय में और सूर्यास्त में, समय ने उसके शरीर पर अपना चिह्न अंकित किया है, लेकिन उसके चेहरे पर सरल मुस्कुराहट और आंखों में तेजी हमेशा देखी जा सकती है।

तिब्बती महिला डाकिया निमा लामू का कहना है कि डाक पहुंचाने के दौरान पहाड़ी क्षेत्र में आने जाने के मसय अकेलापन सबसे मुश्किल बात है। लेकिन वह कभी कभार तिब्बती गीत गाते हुए चलती है और इससे अकेलापन को दूर कर सकती है और वो हमेशा सुनहरे जीवन की खोज करती है।

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