कार्नी ने कहा कि अमेरिका यह मानता है कि मध्यपूर्व शांति केवल प्रत्यक्ष शांतिपूर्ण वार्ता के ज़रिए हासिल हो सकती है, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बयान से नहीं। अमेरिका हमेशा फिलीस्तीन-इजराइल दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता के माध्यम से समझौता करने की कोशिश में रहता है।
गौरतलब है कि अमेरिका व इजराइल प्रत्यक्ष फिलीस्तीन-इजराइल वार्ता की बहाली की कोशिश कर रहे हैं।
ओबामा सरकार ने पिछले साल सितम्बर में वाशिंगटन में फिलीस्तीन-इजराइल वार्ता की बहाली की, उन्होंने घोषणा की कि, दोनों पक्ष एक साल में सभी मुख्य समस्याओं का समाधान करेंगे। लेकिन वार्ता सिर्फ कुछ सप्ताह ही चल सकी और यहूदी बस्तियों के मसले पर इसमें गतिरोध पैदा हो गया। फिलीस्तीन ने गत जून में औपचारिक घोषणा की कि, वह संयुक्त राष्ट्र को सितंबर तक, वर्ष 1967 के युद्ध के पहले की सीमा के अनुसार, फिलीस्तीन को एक राष्ट्र मानने, साथ ही पूर्वी येरुशलम को उसकी राजधानी स्वीकार करने व फिलीस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के एक सदस्य के रूप में मानने की मांग करेगा।
वर्तमान में फिलीस्तीन संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेक्षक देश है, जिसे मतदान का अधिकार नहीं है।
(नैना)