तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में एक विशेष स्कूल है, जहां तिब्बती विकलांग अनाथ बच्चे पढ़ते हैं। छाईछ्वान कल्याण स्कूल के प्रधानाध्यापक छ्यानबा चुनचू अपनी कोशिशों के जरिए तिब्बती विकलांग बच्चों को प्यार करते हैं और उन्हें तिब्बती जातीय हस्तकला पढ़ाते हैं, जिससे अनाथ बच्चों को घर जैसे स्कूल में गहरा प्यार महसूस हुआ और उन्होंने जातीय हस्तकलात्मक वस्तुएं बनाते वक्त अपना जीवन मूल्य दिखाया।
छाईछ्वान कल्याण स्कूल के प्रधानाध्यापक छ्यांगबा चुनचू ने कहा:" हमारे स्कूल में कुल 148 विद्यार्थी हैं, जिनमें अधिकांश अनाथ व विकलांग बच्चे हैं। इस तरह हम अनिवार्य शिक्षा देने के साथ उनकी स्थिति के अनुसार विशेष कक्षाएं भी पढ़ाते हैं, ताकि भविष्य में उन्हें हस्तकला से रोज़गार मिल सके।"
वर्ष 1980 में छ्यांगबा चुनचू ल्हासा के छङक्वान क्षेत्र स्थित एक जूता निर्माण कारखाने में कार्यरत थे। स्थिति अच्छी नहीं होने से कारखाना बंद हो गया। छ्यांगबा चुनचू की समान उम्र वाले दूसरे युवा लोगों ने दूसरा रोजगार ढूंढने के लिए कारखाना छोड़ किया। मात्र वे लोग कारखाने में रहे, जिनकी शारीरिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका जीवन और भविष्य कैसा होगा?इसे सोचते हुए छ्यांगबा चुनचू ने दूसरा रोज़गार नहीं ढूंढा, और वे कारखाने में रहते हुए कारखाने को बदला और इससे प्राप्त कमाई से एक कल्याण स्कूल की स्थापना की।
छाईछ्वान कल्याण जातीय हस्तकला कंपनी कल्याण स्कूल का कारोबार है। कंपनी की उप मैनेजर चोमा ने कहा:
"साल भर में हमारे कारोबार की बिक्री आय एक लाख 30 हज़ार युआन है, जिसका 30 प्रतिशत स्कूली विद्यार्थियों की फ़ीस है। 40 प्रतिशत कारोबार में कार्यरत मज़दूरों का वेतन है। हमारी कंपनी के 86 प्रतिशत कर्मचारी कल्याण स्कूल से स्नातक हुए विक्लांग व अनाथ हैं।"
छाईछ्वान क्लयाण जातीय हस्तकला कंपनी ल्हासा के विक्लांग अनाथों के लिए सामाजिक व्यवहार व रोज़गार अड्डा ही नहीं, तिब्बती परम्परागत हस्तकला कारोबार का अड्डा भी है। राष्ट्र स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों में से तिब्बती काग़ज़, तिब्बती औपेरा के मुखौटे, तिब्बती अगरबत्ती, जातीय वस्त्र आदि परम्परागत चीज़ें इस स्कूल में बनाकर पर्यटन बाज़ार में भेजी जाती हैं। तिब्बती लड़की यांगचिन लामू ने कल्याण स्कूल से स्नातक होकर कंपनी में काम करना शुरू किया। उसने कहा:
"छ्यांगबा चुनचू हमारे बाबा की तरह हमें पालते हैं। हम तिब्बती परम्परागत संस्कृति के विकास के लिए अपना योगदान करने को तैयार हैं। मुझे लगता है कि यह हमारे जीवन का मूल्य भी है। हम बाबा का आभार करते हैं।"
वर्ष 1993 में छाईछ्वान कल्याण स्कूल की स्थापना से लेकर अब तक 283 विक्लांग बच्चों, अनाथों व अति गरीब विद्यार्थियों को यहां जीवन व पढ़ाई का समान अवसर मिला, उनमें से 134 विद्यार्थी समाजाजिक काम करने लगे हैं। छ्यांगबा चुनचू अपनी कोशिशों के जरिए तिब्बती विक्लांग बच्चों व अनाथों को सहायता देते हैं। उन्होंने कहा:
"स्कूल की स्थापना के शुऱू में मैं सोचता था कि इस स्कूल से एक विद्यार्थी ही विश्वविद्यालय में प्रवेश ले सके, यह काफी होगा। लेकिन आज हमारे स्कूल से स्नातक हुए 32 विद्यार्थी विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं और कई लोग विश्वविद्यालय से भी स्नातक हो गए हैं। हमारे स्कूल के विद्यार्थियों की अच्छी मानसिक गुणवत्ता को दूसरे स्कूलों व समान की मान्यता हासिल मिली, इससे मैं संतुष्ट हूं।"