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वांग शू यिंग और उनकी नयी किताब <भारत की दुनिया में आ जाओ>
2011-07-15 16:54:11
इधर के सालों में चीन और भारत के बीच अधिक से अधिक आदान-प्रदान चल रहा है। दोनों देशों की जनता का एक दूसरे को जानने का इरादा भी उभरता रहा है।हाल में चीन सामाजिक विज्ञान अकादमी के अधीन एशिया-प्रशांत अध्ययन संस्थान के शोधकर्ता वांग शू यिंग ने अपनी नयी किताब <भारत की दुनिया में आ जाओ> प्रस्तुत की,जिसपर विभिन्न जगतों के चीनी और भारतीय मौत्रीपूर्ण व्यक्तियों का ध्यान केंद्रित हुआ है।

प्रोफ़ेसर वांग शू यिंग को भारत का अध्ययन करते हुए 40 से अधिक वर्ष बीत गये हैं।इस दौरान भारतीय संस्कृति,रीति-रिवाज़,शिक्षा और धर्म के बारे में उनकी 30 से ज़्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।भारतीय अखबारों तथा पत्रिकाओं में उनके कई लेख भी छपे हैं।इसके साथ-साथ उन्हें बार बार चीन-भारत मैत्री पुरस्कार मिला है। इस कार्यक्रम में मैं आपको वांग शू यिंग की कहानी बताऊंगी।हम भारत के प्रति उनकी गहरी भावना महसूस करेंगे।

73 वर्षीय वांग शू यिंग पेइचिंग विश्वविद्यालय के ऑरिएंटल भाषा व साहित्य विभाग के हिन्दी विभाग के स्नातक हैं।भारत से उनका रिश्ता 1965 में पेइचिंग विश्वविद्यालय प्रवेश करने के दिन से ही शुरू हो गया।चाहे वे पेइचिंग विश्वविद्यालय में रहे,हिन्दी विभाग में पढ़ाते रहे,या सामाजिक विज्ञान अकादमी की एशिया-प्रशांत अध्ययन संस्था में काम करते रहे ,प्रोफ़ेसर वांग शू यिंग और भारत के बीच वह संबंध कभी नहीं टूटा। कई बार पढने व यात्रा के लिये उन्हें भारत जाने का मौका मिला।वे भारत को अपनी दूसरी मातृभूमि मानते हैं।इस देश का गहराई से अध्ययन कर चीनी लोगों और भारतीय लोगों को एक दूसरे का परिचय देना उनके जीवन का लक्ष्य बन गया है।वांग शू यिंग के शब्द

यह खुशी की बात है कि चीन और भारत के संबंध सुधर रहे हैं और दोनों देशों की मैत्री भी दिन-ब-दिन मज़बूत हो रही है।ज़्यादा से ज़्यादा चीनी व भारतीय लोग एक दूसरे को जानना चाहते हैं।

सालों अध्ययन करके वांग शू यिंग ने "भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाज़", "धर्म व भारतीय समाज", "भारत के प्रदेशों का इतिहास व संस्कृति" और "दक्षिण एशिया में हिन्दू धर्म और संस्कृति" आदि पुस्तकें लिखी हैं। प्रोफ़ेसर वांग की कुछ किताबें कुछ कॉलेज़ों के पाठ्य-क्रम में भी लगी हुई हैं।इन पुस्तकों से विद्यार्थियों को भारत के बारे में काफी जानकारी हासिल होती है।

एक बार एक अपरिचित युवा प्रोफ़ेसर वांग के घर गया।उसने वांग शू यिंग से कहा कि वे उसके सही शिक्षक हैं।प्रोफ़ेसर वांग ने सोचा कि उन्होने उसे कभी नहीं पढ़ाया तो वे उसके शिक्षक कैसे बने ? उस विद्यार्थी ने कहा कि कॉलेज़ में उसके शिक्षक प्रोफ़ेसर वांग शू यिंग की किताब से पढ़ाते हैं। सभी विद्यार्थियों को उनकी किताबों से भारत की जानकारी मिलती है। इसलिये प्रोफ़ेसर वांग को उनके शिक्षक माना जा सकता है।

छात्रों के अलावा,प्रोफ़ेसर वांग शू यिंग की उम्मीद है कि और ज़्यादा चीनी लोग भारत से परिचित हों।<भारत की दुनिया में आ जाओ> के पुस्तक विमोचन के मौके पर उन्होंने कहा कि

हालांकि चीन और भारत दोनों पड़ोसी देश हैं। लेकिन वास्तव में दोनों को एक दूसरे की जानकारी बहुत सीमित है।मैंने हिन्दी भाषा सीखी है।लगता है कि मुझे कोई उपयुक्त काम करना चाहिये।इसलिये मैंने यह किताब लिखी।

<भारत की दुनिया में आ जाओ> में भारत के भिन्न-भिन्न पक्षों की जानकारी दी गयी है।प्रोफ़ेसर वांग के अनुसार इस पुस्तक को पढ़ने से चीनी लोग भारत के बारे में आम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

यह किताब पढ़कर चीनी लोग न सिर्फ़ भारत के इतिहास व संस्कृति तथा उसका दुनिया पर पड़े प्रभाव के बारे में,और भारत में जातियों.राष्ट्रों,भाषाओं व धर्मों की विविधता और भारत के रीतिरिवाज़ों की जानकारी ले सकते हैं,बल्कि भारत में आर्थिक विकास,आर्थिक रूपांतरण की प्रक्रिया,विज्ञान व शिक्षा में हासिल उपलब्धियां और पश्चिमी संस्कृति का भारत पर पड़े असर के बारे में भी जान सकते हैं।इसके साथ-साथ इस किताब में भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विश्लेषण एवं अध्ययन भी किया गया है।

चीन स्थित भारतीय दूतावस के काउंसुलर राहुल छाबड़ा का मानना है कि प्रोफ़ेसर वांग की <भारत की दुनिया में आ जाओ> किताब में भारतीय लोगों के जीवन का एक बढ़िया चित्र खींचा गया है।

प्रोफ़ेसर वांग वर्तमान चीन में मशहूर हिन्दी भाषा के विशेषज्ञ हैं।उन्होंने 1965 से भारत का अध्ययन करना शुरू किया।चीन और भारत की आपसी समझ तथा मैत्री बढ़ाने के लिये वे भरपूर जोश के साथ काम करते रहे हैं।इस 《》 में भारतीय लोगों के जीवन का चित्रण किया गया है।भारत के धर्मों,कलाओं,रीतिरिवाज़ों आदि का परिचय भी दिया गया है।इसके अलावा भारत और दूसरे देशों के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही की स्थिति की जानकारी भी है।मुझे उम्मीद है कि चीन और भारत में आदान-प्रदान व मैत्री के लिये ज़्यादा योगदान दिया जा सकेगा।

चीन और भारत दोनों देशों के बीच संस्कृति के प्रसार तथा आदान-प्रदान के लिये प्रोफ़ेसर वांग कोशिश करते रहे हैं। एक भारतीय पाठक प्रोफ़ेसर वांग के द्वारा लिखी गयी चीन-भारत के सांस्कृतिक संबंध नामक एक किताब पर बहुत आश्चर्यचकित हैं।उन्होंने कहा कि उन्हें अपने देश भारत के बारे में जानकारी चीनी प्रोफ़ेसर से कम है।वास्तव में प्रोफ़ेसर वांग के काफ़ी भारतीय दोस्तों को भी ऐसा लगता है कि भारत के बारे में प्रोफेसर वांग ज़्यादा जानते हैं।

चीन-भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान की वजह से प्रोफ़ेसर वांग शू यिंग को कई बार चीन-भारत मैत्री पुरस्कर मिले है।वे भारतीय सांस्कृतिक हस्तियों में रवींद्रनाथ ठाकुर का सबसे अधिक सम्मान करते हैं।उन्हें उम्मीद है कि वे ठाकुर की तरह चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा द्विपक्षीय मैत्री को मज़बूत करने के लिये अपना प्रयास कर सकेंगे।वांग शु यिंग ने हमें बताया

श्री ठाकुर भारतीय सांस्कृतिक हस्ती थे।जब चीन सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा था,ठाकुर ने चीन के प्रति समर्थन जताया।उस समय चीन और भारत के संबंध वर्तमान जैसे अच्छे नहीं थे।चीन की यात्रा पर आने के बाद ठाकुर ने न केवल भारतीय संस्कृति से बल्कि चीनी जनता के प्रति भारतीय जनता की मैत्री की भावना का भी परिचय दिया ।इसके साथ उन्होंने चीन की संस्कृति तथा भारतीय लोगों के प्रति चीनी लोगों की सदभावना भी वापस पहुंचाई ।भारत लौटने के बाद उन्होंने चीनी कॉलेज़ स्थापित किया जिस का चीनी संस्कृति के प्रसार पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है।

अब प्रोफ़ेसर वांग शुयिंग "चीन-भारत के संबंध व सांस्कृतिक आदान-प्रदान" का हिन्दी संस्करण लिखने में व्यस्त हैं।वे आशा करते हैं कि इस किताब से अधिक से अधिक भारतीय दोस्त चीन के संबंध में ज़्यादा जान सकेंगे. और दोनों देशों के बीच बने रहे सांस्कृतिक संबंधों और आदान-प्रदान के इतिहास की ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकेंगे।ताकि दोनों देशों की जनता के बीच आपसी समझ गहरी की जा सके और मैत्री भी मज़बूत की जा सके।

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