जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना मौजूदा दुनिया के विभिन्न देशों के सामने खड़ी गम्भीर चुनौती है , हरित कम कार्बन का विकास , विकास व जलवायु परिवर्तन का सामना करने की एक बिल्कुल नयी विकास धारणा ही है , यह धारणा विभिन्न देशों की सहमति और अबाध्य धारा बन चुकी है । मौजूदा तीन दिवसीय संगोष्ठी चीनी राजकीय विकास व सुधार आयोग के जलवायु परिवर्तन मुकाबला विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की सहाध्यक्षता में आयोजित है । संगोष्ठी के तीन मुख्य मुद्दे हैं हरित कम कार्बन के विकास की नीति व कार्यवाही , जलवायु परिवर्तन के तदनुरुप मौजूदा स्थिति व चुनौती और जलवायु परिवर्तन के मुकाबले का बंदोबस्त और धनराशि जुटाने की क्षमता की मजबूती ।
श्ये चन ह्वा ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हरेक देश की अलग अलग राष्ट्रीय परिस्थिति है और विकास का दौर भी भिन्न भिन्न है तथा हरित विकास को बढावा देने की प्रमुखता और तौर तरीका भी स्वभावतः एक जैसा नहीं है । इसे ध्यान में रखकर विभिन्न देशों के विकल्प का सम्मान करना चाहिये , यह जरुरी नहीं है कि एकीकृत हरित कम कार्बन का विकास फारमूला अपनाया जाये । चीन ऊर्जा की किफायत और कम उत्सर्जन जैसी सिलसिलेवार नीतिगत कदमों के जरिये चीनी विशेषता वाले हरित कम कार्बन का विकास रास्ता खोजने में संलग्न है ।
सर्वविदित है कि चीन एक अरब तीस करोड़ जनसंख्या वाला देश है , हरेक व्यक्ति के हिस्से में औसत घरेलू उत्पादन मूल्य मात्र 4700 अमरीकी डालर से कुछ अधिक है , विभिन्न क्षेत्रों का विकास भी अत्यंत असंसुलित है , वह अब औद्योगीकरण व शहरीकर के तेज विकास के दौर में है , उस के सामने आर्थिक विकास , गरीबी उन्मूलन , जनजीवन सुधार , जलवायु परिवर्तन के मुकाबले व पर्यावरण के संरक्षण जैसी अनेक चुनौतियां मौजूद हैं । चीन अपने देश की वास्तविक स्थिति के अनुसार हरित कम कार्बन की विकास धारणा अपनाते हुए ऊर्जा किफायत व कम उत्सर्जन जैसी सिलसिलेवार नीतिगत कदमों के माध्यम से चीनी विशेषता वाले हरित कम कार्बन का विकास रास्ता खोजने में लगा हुआ है ।
श्ये चन ह्वा ने कहा कि आगामी पांच सालों में चीन ऊर्जा किफायत व कम उत्सर्जसन , उद्योग व ऊर्जा के ढांचे के सुधार , तकनीक के तेज विकास जैसे दस कदमों के जरिये हरित कम कार्बन के विकास को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने को कृतसंकल्प है । श्ये चन ह्वा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुकाबले और हरित कम कार्बन के विकास को बढावा देने के लिये विभिन्न देशों के भरपूर सहयोग से अलग नहीं किया जा सकता ।
वास्तविक समर्थता की दृष्टि से देखा जाये , तो विकसित देशों के पास शक्तिशाली आर्थिक शक्तियां ही नहीं , बल्कि उन के पास समुन्नत कम कार्बन तकनीक भी हैं । जबकि विकासशील देशों को पर्याप्त धनराशि का अभाव ही नहीं , तदनुरुप तकनीकी माध्यमों की कमी भी है । जब विकासशील देशों को विकसित देशों से धनराशि और तकनीकी समर्थन प्राप्त करें , तो विश्व भर में काफी कम लागत में यथासम्भवतः वड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है ।
श्ये चन ह्वा ने यह आशा जतायी है कि विकसित देश अपने वचनों का पालन कर जलवायु परिवर्तन के मुकाबले की क्षमता की उन्नति के लिये विकासशील देशों को धनराशि प्रदान करेंगे और कम कार्बन तकनीकों का हस्तातरण कर देंगे । इसी बीच विभिन्न देशों के बीच तकनीकी आविष्कार को गति दी जाय़ेगी , ताकि पृथ्वीव्यापी हरित कम कार्बन के विकास के लिये समान प्रयास किया जा सके ।
हरित कम कार्बन के विकास को तभी मूर्त रुप दिया जाएगा . जबकि हरित कम कार्बन तकनीकों के अध्ययन व विस्तार में तेजी लायी जाये । अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र संघ की संबंधित जलवायु परिवर्तन संधि के ढांचे तले तकनीकी आविष्कार व तकनीकी हस्तांतरण बढाने के तंत्र की स्थापना को प्रोत्साहन देना और विकसित देशों से विकासशील देशों को कम कार्बन तकनीकों का हस्तांतरण करवाना चाहिये , ताकि समुन्नत कम कार्बन तकनीक मानव जाति की सेवा में लाये जाय़े और भूमंडलीय हरित कम कार्बन विकास को प्रेरक शक्तियां प्रदान की जाये ।