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चीनी मिट्टी के बर्तन की राजधानी —— चिंग द चन
2011-05-23 17:26:59

पिछले कार्यक्रम में मैने आपको चीन के सबसे सुंदर गाँव वू युवान गाँव की सैर करायी थी। आज चियांग शी प्रांत पर विशेष कार्यक्रम का आखिरी कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में हम आपको चीनी मिट्टी के बर्तन की राजधानी या पोर्सिलीन की राजधानी की आवोहवा का परिचय दूंगा।

चीन के च्यांगशी प्रांत के उत्तर-पूर्व में एक शहर है जो अपनी विशेषता के लिए न केवल चीन में प्रसिद्ध है बल्कि दुनिया के कोने-कोने तक इस शहर का नाम फैला हुआ है। यह शहर है चिंग द चन। इस शहर का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में यह चीन के चार प्रसिद्ध काउंटियों में से एक था। वर्तमान में चीन के 24 प्रसिद्ध प्राचीन शहरों में से एक है। यह शहर चीनी मिट्टी के बर्तन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। बहुत सारे देशों में चीन का नाम इसी बर्तन के साथ पहुँचा है। उदाहरण के लिए, भारत में भी पोर्सिलिन को चीनी मिट्टी का बर्तन कहा जाता है। यानि की चीन की मिट्टी का बर्तन। इसके अलावा चीन का अंग्रेजी भाषा का नाम चाईना भी इसी से आया है। यहाँ की कुल आबादी लगभग 16 लाख है और इसका क्षेत्रफल 5256 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ के लोगों का मुख्य पेशा पोटरी बनाना और चाय उगाना है। इसके अलावा लोग दूसरे धंधे में भी लिप्त हैं।

चिंग द चन में पोटरी पहले स्थान पर है तो चाय दूसरे स्थान पर। चीन में व्यवसायिक तौर पर चाय का उत्पादन इसी क्षेत्र से शुरू हुआ और न केवल चीन के विभिन्न क्षेत्रों में बल्कि दुनिया के कोने-कोने में यहाँ का चाय आज भी पहुँच रहा है। थांग राजवंश के एक प्रसिद्ध कवि पाय च्वी यी ने यहाँ के बारे में कहा है कि "यहाँ के लोग अपने परिवार से ज्यादा पैसों से प्यार करते हैं, और पिछले महिने ही चाय बेचने चले गये हैं"। यह कविता आज भी प्रमाणित करता है कि यहाँ के लोग लगभग 1600 साल पहले से चाय का व्यापार करते आ रहे हैं।

इस शहर का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है। थांग राजवंश के समय में इस शहर को शिन फिन नाम से जाना जाता था। उसी समय से यह जगह पोटरी या पोर्सिलिन बनाने के लिए जाना जाने लगा। पूर्वी सुंग राजवंश के समय इस शहर का नाम शिन फिन से बदलकर छांग नान चन रख दिया गया। बाद में इसका नाम बदलकर चिंग द चन रख दिया गया। मिंग-छिंग राजवंश के समय में इस शहर को चीन के चार प्राचीन शहरों में से एक चुना गया। यहाँ की पोटरी पूरे विश्व में अपनी उच्च हस्तकला के लिए प्रसिद्ध है। वर्ष 2005 में लंदन में नीलामी के दौरान, यहाँ की बनी एक पोटरी का मूल्य लगभग 1 अरब 38 करोड़ भारतीय रूपया लगाया गया था। जो कि अब तक की सबसे महंगी पोटरी है।

चिंग द चन पूरे चीन में अकेला ऐसा जगह है जहाँ पोटरी बनाने का व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ पर एक संग्रहालय भी है जिसमें मिंग और छिंग राजवंश में परंपरागत रूप से पोटरी निर्माण कला का प्रदर्शन किया जाता है। इसके बारे में जब हमने वहाँ के पर्यटन गाईड से पूछा तो उन्होनें कहा

यह संग्रहालय वास्तव में मिंग और छिंग राजवंश के समय में पोटरी बनाने का मुख्य कारखाना था। यहाँ पर परंपरागत रूप से पोटरी बनाया जाता था। बाद में इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया, और आज यह चिंग द चन के पर्यटन का मुख्य भाग बन गया है। यहाँ पर चीन के वर्तमान राष्ट्रपति हू चिन थाओ के अलावा चियांग त्स मिन आदी नेता भी आ चुके हैं।

यहां पर पोटरी बनाने की कला का प्रदर्शन किया जाता है। देखने में बहुत सरल लगने वाला पोटरी वास्तव में कितने प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है वह बयान करना मुश्किल है। जब हमने वहीं पर कार्यरत एक कर्मचारी छनजी से पूछा तो उन्होनें कहा

मैं आज 82 साल का हूँ। जब मैं 11 साल का था तभी से पोटरी बनाना सीखना शुरू किया था। इस पेशे में मुझे लगभग 70 साल हो गये हैं। ऐसा लगता है जैसे पोटरी मेरे मन में बसा है। उस समय पोटरी का महत्व बहुत ज्यादा था और विशेषकर इसे बनाने वाले लोगों का समाज में उँचा स्थान था।

चीन में प्राचीन काल में शिल्पकला से जुड़े लोगों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था। थांग और सुंग राजवंश के समय शिल्पकला से जुड़े लोगों को राजा का प्रश्रय प्राप्त था जिससे इस काल में चिंग द चन में शिल्पकला और हस्तकला का संपूर्ण रूप से विकास हुआ। चिंग द चन में स्थित संग्रहालय में पोटरी बनाने की विधि का प्रदर्शन किया गया है। बहुत सारे पर्यटक इस स्थल का भ्रमण करने के बाद कहते हैं कि, देखने में इतना सरल लगने वाला पॉटरी वास्तव में बहुत सारे प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद तैयार होता है। जब हम संग्रहालय में देख रहे थे तो हमें पता चला कि पॉटरी बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी का चुनाव करना पड़ता है। चियांग शी प्रांत में यह मिट्टी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। मिट्टी की गुणवत्ता जितनी अच्छी होती है पॉटरी उतना ही सुंदर और टिकाउ होता है। मिट्टी का चुनाव करने के बाद उसे गुँथा जाता है फिर उसे चाक पर रखकर उसे तरह-तरह के सांचे में ढाला जाता है। जब पॉटरी साँचे में ढ़लकर तैयार हो जाता है तो उसपर तरह-तरह के औजार से चित्रकारी की जाती है। जब हमने वहीं लगभग 50 वर्षों से कार्यरत विभिन्न औजारों से घिरे एक कर्मचारी से पूछा तो उन्होनें कहा

आज जो औजार देख रहे हैं वह पॉटरी निर्माण का मुख्य अंग है। देखने में तो यह औजार बहुत सरल लगता है लेकिन इसका प्रयोग सिखना बहुत कठिन है। जब मैं छोटा था तो लगभग एक औजार के प्रयोग में निपुण होने में लगभग तीन साल लग गये थे। आज मेरे बहुत सारे शिष्य भी हैं जो कि विभिन्न औजारों के प्रयोग को सिख रहे हैं। उन्हें बहुत कम समय लगता है लेकिन किसी भी कला में निपुण होने के लिए समय की जरूरत होती है।

पॉटरी जब तैयार हो जाता है तो उसे एक बड़े आग की भट्टी में पकाया जाता है। हमने वहीं पर कार्यरत एक कर्मचारी से पूछा तो उन्होनें कहा

हमने वहाँ पर एक प्राचीन काल का भट्टी भी देखा जो कि एक बंद गुफा की तरह लग रहा था। जानकारी से पता चला कि पॉटरी को पकाने के समय लगभग 1300 डिग्री उच्च तापमान की जरूरत होती है। भट्टी के बाहर एक बहुत बड़ा लकड़ी घर मिला। आजकल उस लकड़ी घर का आकार भी लकड़ी से बने घर की तरह है। वहीं पर कार्यरत एक व्यक्ति ने कहा कि पॉटरी को भट्टी में रखने के बाद लगभग तीन दिनों तक उसे उसी में छोड़ दिया जाता है। लगभग तीन दिनों बाद जब पॉटरी तैयार हो जाता है तब उसे बाहर निकालने का काम शुरू होता है।

पॉटरी को बाहर निकालने के बाद उस पर रंगो से चित्रकारी किया जाता है। यहाँ पर चित्रकारी करने वाले एक कर्मचारी से पता चला कि वह यहाँ पर पिछले साठ सालों से काम कर रही हैं। उनके पिता जी भी यही काम करते थे, और अब उनका लड़का भी यही काम करता है। यहाँ पर यह कला एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को सौंप दिया जाता है। इस प्रकार यहाँ पर एक परिवार विशेष का पॉटरी निर्माण में सदियों से नाम चला आ रहा है।

इस संग्रहालय में जहाँ एक तरफ आप चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का आनंद ले सकते हैं वहीं आप इस जगह पर चीनी मिट्टी के बर्तन से बने वाद्य यंत्रों के संगीत का मजा भी ले सकते हैं। चीनी मिट्टी के बर्तन को चिंग द चन का प्राण कहा जाता है। क्योंकि यहां पर आपको इस शहर में चारों तरफ यही दिखाई पड़ेगा। हमें आश्चर्य तब हुआ जब देखा कि सड़कों पर जगह-जगह रखे हुए कूड़ा पेटी भी चीनी मिट्टी का बना हुआ था। इस तरह यहाँ पर तरह-तरह के वाद्य यंत्र भी इसी मिट्टी से बने होते हैं।

अभी जो आप संगीत सुन रहे थे वह चीनी मिट्टी से बने वाद्य यंत्रों का प्रयोग कर बजाया गया संगीत था। इस संग्रहालय में पर्यटकों के लिए विशेषतौर पर संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें पर्यटक भी भाग लेते हैं और चीनी मिट्टी से बने वाद्य यंत्रों को बजाने का मजा लेते हैं। यह सब अपने आप में बहुत अनोखा है।

चिंग द चन न केवल चीनी मिट्टी के बर्तन के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है बल्कि अपने उद्योग-धंधों के लिए भी प्रसिद्ध है। हाल ही में चीन में मानव रहित हेलिकॉप्टर तैयार किया गया है, जिसका कारखाना चिंग द चन में ही स्थित है। यहाँ के लोग मुख्य रूप से चीनी मिट्टी और खेती में लिप्त हैं। कुछ लोग उद्योग-धंधे में भी लिप्त हैं। इस शहर की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकसित हो रही है। यह शहर जिस प्रकार प्राचीन काल में विकसित शहरों में गिना जाता था उसी प्रकार आज भी यह विकसित शहर की लिस्ट में शामिल होने की दौड़ में है।

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