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चीन में ईसाई धर्म का विकास
2011-05-12 15:01:32
चीन में ईसाई धर्म के विकास को एक पुस्तक से समझा जा सकता है। चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के 11वें पूर्णाधिवेशन के समाचार प्रवक्ता च्यओ छि चेंग व अमरीका के ब्रह्मविज्ञानी, ईसाई धर्म डॉक्टर लुईस भालौ ने वर्ष 2006 में संयुक्त रूप से एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसका नाम है 《नदी किनारे हुई बातचीत》। इस पुस्तक में डॉक्टर लुईस भालौ ने इस सवाल पर ध्यान दिया है कि हालांकि अब बड़े शहरों में भूमि संसाधनों का अभाव है, लेकिन पेइचिंग में दो सुन्दर ईसाई धर्म चर्चों का निर्माण किया है। चीन में प्रोटेस्टेंट चर्च के थ्री सेल्फ देशभक्ति आंदोलन समिति के उपाध्यक्ष श्री छेन शुन फेंग ने इन दो नए ईसाई धर्म चर्चों की चर्चा करते हुए कहा कि पेइचिंग में नए ईसाई धर्म चर्च सिर्फ ये दो ही नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि पेइचिंग शहर के छाओ यांग ज़िले में एक चर्च है, जिसका नाम छाओ यांग चर्च है। और एक दूसरे का नाम है फेंग थेई चर्च। कुछ चर्च अन्य जिलों में स्थित है, जैसे मियुन कस्बे में, ह्वाई रो जिले में और ता शिंग जिले समेत कुछ क्षेत्रों में 7 पूजा चर्च भी हैं। ये चर्च बहुत सुन्दर हैं और आधुनिक भी।

चीनी भाषा में ईसाई धर्म का सामान्यीकृत व संकीर्ण अर्थ है। सामान्यीकृत ईसाई धर्म में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट व रूढ़िवादी शामिल हैं, लेकिन संकीर्ण ईसाई धर्म में सिर्फ प्रोटेस्टेंट है। चीनी लोगों द्वारा माने जाने वाला ईसाई धर्म वास्तव में संकीर्ण ईसाई धर्म यानीकि प्रोटेस्टेंट है। पिछले साल चीनी विज्ञान अकादमी के वैश्विक धर्म अनुसंधान शाला ने वर्ष 2010 का धार्मिक नीला पत्र चीन की धर्ण रिपोर्ट सार्वजनिक की, जिसमें पहली बार चीन में ईसाई धर्म के बारे में आंकड़े सार्वजनिक किए गए हैं। इस नीले पत्र के अनुसार इधर के सालों में चीन में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अब चीन में ईसाई धर्म को मानने वालों की कुल संख्या देश की कुल जनसंख्या का 1.8 प्रतिशत भाग है, जो लगभग 2 करोड़ 3 लाख 50 हजार व्यक्ति बनती है।

श्री छेन शुन फेंग के विचार में चीन में ईसाई धर्म के तेज विकास के दो मुख्य कारण हैं। उन्होंने कहा कि पहला कारण देश की नीति है, चीन में लोगों को धार्मिक विश्वास की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। दूसरा है देश के सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के दौरान लोगों को धार्मिक विश्वास की आवश्यकता है। क्योंकि सामाजिक जीवन में हर आदमी के सामने कुछ कठिनाइयां पैदा होती हैं, जैसे परिवार में, शादी में, काम में या शिक्षा पाने के दौरान। अगर दिल में उक्त सवालों का समाधान नहीं किया होता है, तो लोग चर्च जाकर सहायता की मांग करते हैं। हमारे भाई और बहन दिल से व अन्य कुछ क्षेत्रों में उक्त लोगों को सहायता देते हैं। तो सहायता पाते समय ये लोग ईसाई धर्म के बारे में भी जानकारी पाते हैं और वे धीरे-धीरे इस धर्म पर विश्वास करने लगते हैं। अनेक लोग इस तरह ईसाई बनते हैं।

वर्ष 1807 में ब्रिटेन के मिशनरी रोबर्ट मोर्रिसन चीन पहुंचे। उन के आगमन से चीन में ईसाई धर्म का प्रवेश हुआ है। हालांकि अब तक चीन में ईसाई धर्म सिर्फ दो सौ साल पुराना है, लेकिन आधुनिक चीन पर उसका प्रभाव बहुत बड़ा है। आधुनिक चीन के इतिहास में अमेरिका में अध्ययन करने वाला पहला चीनी छात्र रोंग होंग, चीन की क्रांति का नेता सुन ज्योन शान, चीन के आधुनिक प्रसूति और प्रसूतिशास्त्र के संस्थापकों में से एक डॉक्टर लीन छाओ ची, वे सब ईसाई धर्म को मानते हैं।

श्री छेन शुन फेंग ने कहा कि ईसाई धर्म संस्कृति, विज्ञान व तकनीक, चिकित्सा व लोकोपकार आदि क्षेत्रों की नई धारणाएं चीन में लाया है। जैसाकि पहला पश्चिमी अस्पताल दक्षिण चीन के क्वांग चो शहर में स्थापित हुआ था और एक अमरीकी मिशनरी ने अंग्रेजी भाषा के पहले अखबार का मुद्रण किया था। मिशनरी के माध्यम से ही आधुनिक चीन में आधुनिक शिक्षण की अवधारणा, आधुनिक संस्कृति और लोकतंत्र की विचारधारा व मुक्ति का विचार आया है, जिसने चीन व पश्चिम देशों के बीच संस्कृति के आदान-प्रदान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

मिशनरी रोबर्ट मोर्रिसन द्वारा संकलित 6 भागों में चीनी-अंग्रेजी शब्दकोश चीन में पहला चीनी-अंग्रेजी शब्दकोश है। भावी पीढ़ी के विद्वानों ने उसे पश्चिमी देशों से चीन के समाज व व्यवस्था की जानकारी पाने वाली एक कुंजी कहा है। बाद में रोबर्ट मोर्रिसन व अन्य मिशनरियों ने चीन के बारे में कुछ किताबें प्रकाशित कीं, जिससे विदेशी मिशनरी चीनी भाषा सीखकर चीन के सबसे गरीब क्षेत्रों में लोगों को चिकित्सा व शिक्षा की सेवा प्रदान कर सकें और चीन व पश्चिमी देशों के बीच संस्कृति के आदान-प्रदान के लिए बड़ी भूमिका निभा सकें।

श्री छेन शुन फेंग ने कहा कि संगीत की तरह सांस्कृतिक तरीके से ईसाई धर्म का चीन में प्रवेश हुआ है। क्योंकि सबसे पहले कविता व संगीत का चर्च से विकास हुआ है। चीन में प्रवेश करने के दौरान मुख्य तौर पर पश्चिमी शैली का पवित्र संगीत व स्तोत्रों का उपयोग किया गया । बाद में हमने अपने आप कुछ कविताएं लिखीं और चीनी संगीत में इसे गाते हैं।

चीन की सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के साथ-साथ चीन में ईसाई धर्म का बड़ा विकास हुआ है, विशेषकर बाइबिल के प्रकाशन में। वर्ष 2004 में हांगकांग में चीन की पहली बाइबिल की प्रदर्शनी आयोजित की गई। बाद में यह अमरीका व जर्मनी में आयोजित हुई। इस साल अमरीका में दूसरी बार चीन की बाइबिल की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया ।

उक्त प्रदर्शनी की भूमिका की चर्चा करते हुए श्री छेन शुन फेंग ने कहा कि इस तरह की प्रदर्शनी के आयोजन से स्थानीय चर्च में ईसाई धर्म व लोगों को चीन के चर्चों की वर्तमान स्थिति की जानकारी मिली है और चीन में लोगों को धार्मिक विश्वास की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होने की नीति मालूम हुई है। पिछले साल तक चीन के चर्च द्वारा प्रकाशित की गई बाइबिल पुस्तकों की संख्या 5 करोड़ 5 लाख तक जा पहुंची है। इस का मतलब है कि चीनी ईसाई धर्म में बाइबिल पढने में कोई दिक्कत नहीं है।

श्री छेन शुन फेंग ने यह भी कहा कि इधर के सालों में चीन में ईसाई धर्म के शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों की संख्या बढ रही है। शैक्षिक अनुसंधान के लिए देश ने अनेक पूंजी लगाई है। पेइचिंग विश्वविद्यालय, फूतान विश्वविद्यालय और चोंग शान विश्वविद्यालय संबंधित अध्ययन कर रहे हैं। इस के साथ-साथ ईसाई धर्म के अनुसार परिवार, नीतिशास्त्र के बारे में भी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है, जिससे परिवार में संबंध, पति व पत्नी के बीच संबंधों का निपटारा व बच्चों की शिक्षा आदि को समझने में ये पुस्तकें सकारात्मक भूमिका निभाती हैं।

पिछली जनवरी में चीन के पांच बड़े धर्म समूहों ने धर्म के सामंजस्य का प्रवर्तन करने वाला संयुक्त घोषणा-पत्र् पेश किया। समाज में विचार-विमर्श करने वाले सामंजस्य के मुद्दे के प्रति श्री छेन शुन फेंग ने ईसाई धर्म की दृष्टि से अपने विचार प्रकट किए। उन का कहना है कि समाज में सामंजस्य व धर्म के सामंजस्य के बीच घनिष्ट संबंध है। धार्मिक विलय के दौरान ईसाई धर्म विशेष भूमिका निभाता है।

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