जैसा कि आपको हमारे प्रसारण और वेबसाइट से पता चल चुका है कि मैं पिछले दिनों च्यांगशी की यात्रा पर था।बहुत सारे श्रोताओं ने मुझे फिर से च्यांगशी प्रांत के पर्यटन स्थलों की विस्तृत जानकारी देने का अनुरोध किया है।उन्हीं के अनुरोध पर मैं एक बार फिर से च्यांगशी के पर्यटन स्थलों से जुड़ी तमाम जानकारी पेश कर रहा हूँ।उम्मीद है कि आप सभी को यह पसंद आएगा।तो आज हम आपको च्यांगशी के सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण पयर्टन स्थल लुंग हू शान के बारे में बताएंगे।
लुंग हू शान च्यांगशी प्रांत की राजधानी नान छांग से लगभग 200 किमी. दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। पिछले साल ब्राजील में यूनेस्को के 34वें अधिवेशन में इस पर्यटन स्थल को विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल किया गया था। यह पहाड़ लगभग 262 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें मुख्य रूप से 7 प्राकृतिक सौंदर्य क्षेत्र हैं। इस पूरे क्षेत्र में 52 प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं और 230 प्राकृतिक परिदृश्य विशेषताएं वाली जगहें हैं। चीन सरकार ने वर्ष 2001 में इस स्थल को चार स्टार वाला पर्यटन स्थल घोषित किया। विश्व विरासत सूची में शामिल होने के बाद यह चीन के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक बन गया है।
लुंग हू शान को अगर शुद्ध हिन्दी में कहा जाए तो हम इसे ड्रैगन-बाघ पहाड़ कह सकते हैं, यानी ड्रैगन-टायगर हिल। इस पहाड़ का नाम ड्रैगन-टायगर हिल कैसे पड़ा, इसके बारे में कई किंवदतिंया हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस पूरे क्षेत्र में लगभग 900 से ज्यादा पहाड़ की चोटियाँ हैं जो ड्रैगन और बाघ का आकार ले लेती है। इसलिए इसे इस नाम से पुकारा जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि इस पड़ाह का ड्रैगन और बाघ से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि इसका संबंध चीन के ताओ धर्म से है। जब हमारे संवाददाता ने वहाँ के पर्यटन विभाग में लगभग 11 वर्षों से कार्यरत एक कर्मचारी से पूछा तो उन्होनें कहा
इस पहाड़ का नाम इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि यह ड्रैगन और बाघ की तरह दिखता है, बल्कि इसका ताओ धर्म के साथ संबंध है। चीन के ताओ धर्म के पहले गुरू चांग ताओ लिंग ने बहुत सारे पहाड़ों का भ्रमण करने के बाद इस पहाड़ को चुना। वे इस पहाड़ पर कई वर्षों तक अमरत्व की खोज करते रहे, और अंत में जब उन्हें यह प्राप्त हुआ उस समय आकाश में ड्रैगन और बाघ की आकृति बन गई। इसलिए इस पहाड़ को ड्रैगन-बाघ पहाड़ कहा जाता है। इसलिए इस पहाड़ को ताओ धर्म का जन्मस्थान भी कहा जाता है।
पहाड़ के चारों तरफ हरियाली ने जैसे अपना साम्राज्य फैला रखा है। पेड़ों पर चिड़ियाँ की चहचहाहट और तरह-तरह की आवाजें लोगों का मन मोह लेती है। यहाँ पर पहाड़ों का झुंड है जो प्राकृतिक कारणों से विभिन्न आकारों में ढल चुका है। इन्हीं पहाड़ों में हाथी का सूंड़ पहाड़ बहुत प्रसिद्ध है। इस पहाड़ की बनावट हाथी के सूंड़ की तरह लगती है। पहाड़ों से होते हुए हम लोग सबसे पहले सान छिंग कुंग यानि ताओ धर्म के मंदिर पहुँचे। यह मंदिर पूर्वी हान राजवंश के समय में ताओ धर्म के संस्थापक चांग ताओ लिंग के रहने के लिए बनाया गया था। इसके चारों तरफ की दीवारें पत्थरों से बनी है। प्राचीन काल में लोग शहद का प्रयोग कर पत्थरों को जोड़ते थे, जिसकी मजबूती आज तक हम लोगों को आश्चर्य में डाले हुए है। सान छिंग कुंग यानि सान छिंग महल के अंदर की इमारतें लकड़ियों से बनी है। महल दो रंगों लाल और पीले रंग से सजा होता है। ताओ धर्म के बारे में जब हमने वहां कार्यरत ताओ अनुयायी से पूछा तो उन्होंने कहा
यह मंदिर ताओ धर्म के पहले गुरू के लिए बनाया गया था। उस समय ताओ धर्म के सभी अनुयायी इस मंदिर के अंदर रहते थे। उन्होनें आगे कहा कि ताओ धर्म बाद में चलकर दो धाराओं में बँट गया। चीन के दक्षिणी भाग के लोग चंग यी धारा और उत्तरी भाग के लोग छुएन चंग धारा के अनुयायी कहलाते हैं। दोनों धाराओं में मुख्य अंतर यह है कि चंग यी धारा के अनुयायी शादी करने के साथ-साथ मांस खा सकते हैं जबकि चीन के उत्तरी भाग के छुएन चंग धारा के लोग शादी और मांस नहीं खाते।
इस महल में मुख्य रूप से सान छिंग महल, यु ह्वांग महल,थिएन ह्वांग महल, होउ थु महल, नान थोउ महल, पेई थोउ महल समेत लगभग 36 इमारतें हैं। यहाँ पर एक पेड़ भी है जिस पर लोग अपनी मुराद पूरी होने के लिए लाल रंग के कपड़े बांधते हैं। यहां पर एक और रोचक चीज है,जिसके बारे में वहाँ पर कार्यरत कर्मचारी ने कहा
मंदिर के प्रांगण में दो पेड़ हैं जिसमें एक पेड़ पुरूष का है जबकि दूसरा पेड़ स्त्री का है। और उन दोनों पेड़ों के बीच पति-पत्नी का संबंध है। इसलिए तमाम पर्यटक उस पेड़ को देखने के बाद उसके चारों तरफ ताला लगा देते हैं जिसका अर्थ है कि उनका पारिवारिक संबंध और वैवाहिक संबंध भी सुखमय हो।
हम लोग जंगलो और पहाड़ों के बीच से होते हुए लूसी नदी के किनारे पहुँचे। इस नदी को यहाँ के लोगों के लिए वरदान भी कहा जाता है। इस नदी का पानी बहुत साफ है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपने लुंग हु शान आकर लू शी नदी में नौकायन का लुत्फ नहीं उठाया तो आपका आना अधूरा है। नौकायन के लुत्फ के साथ-साथ लुंग हू शान का मनोहारी दृश्य आपको नौकायन के दौरान ही नजर आता है।
यहाँ की नौका एक विशेष प्रकार के बाँस की बनी होती है। भारत में भी इस प्रकार का बाँस पाया जाता है, जिससे कुछ जगहों पर आम बोलचाल में मकोर कहते हैं। चीन के इस बाँस की विशेषता है कि यह बहुत लंबा होता है अंदर से बिल्कुल खोखला। इसकी इसी विशेषता के कारण इसका प्रयोग आम लोग नौका के रूप में करते हैं। एक नौका बनाने में लगभग 7 से 8 बाँस का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक नौका की लंबाई लगभग साढ़े तीन मीटर से चार मीटर तक होती है और चौड़ाई लगभग 1 मीटर होती है। जब हमारे संवाददाता ने यहाँ के स्थानीय नाविक से पूछा तो उन्होनें बताया कि वे यहाँ पर 20 वर्षों से ज्यादा समय से काम करते आ रहे हैं। एक दिन का आने-जाने का लगभग 35 युवान मिलता है।पर्यटक ज्यादा होने पर दिन में दो बार आने-जाने का मौका मिल जाता है। यही हमारी आजीविका का मुख्य साधन है।
लूसी नदी के नौका विहार का अलग ही आनंद है। अगर आप नौका पर बैठते समय अपने जूते निकाल लेते हैं तो बाँस के फाटों से होकर पानी जब आपके पैर को छूता है तो उस गुदगुदी से सारा शरीर रोमांचित हो उठता है। जैसे शरीर का रोम-रोम पुलकित हो जाता है। यहाँ पर आपको पहाड़, पानी, पेड़ और मानव का अदभुत समागम दिखेगा। कहा जाता है कि चीन में लुंग हू शान क्षेत्र ही ऐसी जगह है जहाँ आपको पहाड़, पेड़, नदी और मानव के बीच सामंजस्यता दिखाई पड़ती है। नदी में अलग-अलग नावों पर आपको खाने-पीने के सामान बेचते हुए कुछ महिलाएं भी दिख जाएंगी। महिलाएं अपनी पारंपरिक पोशाक में नाव के उपर घास की टोपी पहने सामान बेचते हुए पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। उनका सामान आमतौर पर बहुत सस्ता और घर का बना स्वादिष्ट व्यंजन होता है। हाथों में नाव का पतवार लिए स्थानीय भाषा में गाना गाते हुए लोगों को असीम आनंद देती हैं। कहा जाता है कि कुछ महिलाओं को तो इस नदी से इतना प्यार है कि उन्हें तैरना नहीं आता है फिर भी नदी में नाव पर गाना गाते हुए नाव खेते हुए दिखाई देती हैं।
नदी के दोनों तरफ पहाड़ हैं। कई पहाड़ों पर उसके छिद्र में ताबूत मौजूद हैं। कहा जाता है कि चीन के छुन-छिउ राजवंश के समय में यहाँ पर कु उए जाति के लोग रहते थे। वे लोगों को मरने के बाद लकड़ी के ताबूत में बंद कर लाश को पहाड़ के छिद्र में रख देते थे, जिससे कि वह बहुत दिनों तक सुरक्षित रह सके। अभी तक इस तरह के लगभग 200 ताबूत सुरक्षित अवस्था में मिल चुके हैं। वे लोग ऐसा क्यों करते थे, उतने उँचे पहाड़ों पर ताबूत कैसे ले जाते थे, किस तरह के ताबूत सबसे उपर रखे जाते थे। यह सवाल आज भी लोगों के लिए पहेली ही बनी हुई है।
नदी में कुछ दूर आगे जाने पर एक छोटा सा गाँव है जिसका नाम वु वन छुन यानि मच्छर रहित गाँव है। इस गाँव में एक विशेष प्रकार की लकड़ी पाई जाती है जिससे विशेष प्रकार की सुगंध निकलती है। इस सुगंध से मच्छर नहीं आ पाते हैं। नौका पर जब हमने एक पर्यटक से पूछा कि उन्हें कैसा महसूस हो रहा है तो उन्होंने बताया कि जैसे स्वर्ग में बैठे हों बस थोड़ा बहुत पानी मिल जाता तो यह यात्रा सफल हो जाती है। हमें क्या पता था कि अगला पड़ाव जहाँ हैं वहाँ का तोउ फू लोगों को हमेशा के लिए याद रह जाएगा। जी हाँ, इसी गाँव में लोगों को स्थानीय तोउ फू का भी स्वाद चखने का मौका मिलता है। जब मैनें उसी पर्यटक से पूछा कि अब कैसा लग रहा है तो उसने बताया कि अब तो वह स्वर्ग भी नहीं जाना चाहता है। तोउ फू यहाँ का स्थानीय व्यंजन है जो कि दाल का बना होता है और बिल्कुल शुद्ध होता है।
यहाँ पर पर्यटकों के लिए विशेषतौर पर पक्षियों के खेल का भी प्रदर्शन होता है। यह पक्षी मछली पकड़ने में माहिर होते हैं। यह नदी में पानी के अंदर जाकर मछली पकड़ती है, और मछली पकड़ने के बाद वापस नौका पर आकर अपने मालिक को मछली दे देती है। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि वे मछलियाँ खाती क्यों नहीं है। आपको बता दें कि इन्हें नदी में ले जाने से पहले पेट भर खिला दिया जाता है। जिससे कि नदी में मछली पकड़ने के बाद नहीं खा पाती हैं। जानकारी के आधार पर पता चला कि यहाँ पर पहले इन पक्षियों को मछली पकड़ने का अभ्यास कराया जाता है। दो पक्षी मिलकर एक दिन में लगभग 10 किलो मछली पकड़ सकते हैं। इसलिए इन पक्षियों को कुछ लोगों द्वारा बेटे की संज्ञा भी दी जाती है।
कुछ दूर आगे जाने पर हमें एक पहाड़ दिखा जहाँ पर रस्सी की कलाबाजी हो रही थी। यह वही जगह है जहाँ पर ताबूतों को पहाड़ के छिद्र में रखने का प्रदर्शन हो रहा था। कुछ विशेषज्ञों ने बताया कि प्राचीन काल में लोग रस्सी की मदद से ही ताबूतों को पहाड़ पर ले जाते होंगे। इसलिए लोगों को प्राचीन काल के उस प्रक्रिया को दिखाने के लिए यहाँ रस्सी कलाबाजी की जाती है। मुझे यह सब बड़ा रहस्यमयी लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं उस समय में जा पहुँचा हूँ।
नदी में नाव पर बैठे हुए पानी में पहाड़, पेड़ और आपकी अपनी परछाईं पानी के अंदर जब हिलती-डुलती नजर आती है तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने पानी के उपर आपकी पेंटिग बना दी हो।