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ब्रिक देशों का उदय अधिक युक्तिसंगत नयी विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिये लाभदायक
2011-04-11 17:01:52

श्रोता दोस्तो , ब्रिक देशों के नेताओं की तीसरी वार्ता इस माह की 14 तारीख को चीन के हाईनान प्रांत के सानयान शहर में होगा । विश्लेषकों का मानना है कि ब्रिक देश संगठन दक्षिण उत्तर वार्तालाप का महत्वपूर्ण फीता है , नवोदित बाजार देश , जिस का प्रतिनिधि ब्रिक देश हैं , का उदय औऱ अधिक युक्तिसंगक नयी विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना के लिये मददगार सिद्ध होगा ।

अमरीकी अर्थ शास्त्री जिम ओनिल द्वारा 2001 में प्रस्तुत चार ब्रिक देश की धारणा से लेकर अब तक ब्रिक देश नवोदित बाजार देशों का प्रतिनिधित्व होने के नाते विश्व मंच पर अधिकाधिक अहम भूमिका निभा रहे हैं । कुछ लोकमतों का विचार है कि ब्रिक देश संगठन विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा और मुकाबला करने की दिशा की ओर बढ़ता रहा है । इसी संदर्भ में चीनी आधुनिक संबंध अनुसंधान प्रतिष्ठान के विश्व आर्थिक अनुसंधान शाला की प्रधान छन फुंग इंग ने कहा कि ब्रिक देशों का एकसूत्र में बांधने का मकसद किसी देश या ग्रुप के मुकाबले की बजाये अपने समान विकास की जरुरत है ।

छन फुंग इंग ने कहा कि ब्रिक देशों का सभी सदस्य विकासशील देश ही हैं , उन की समानताएं काफी अधिक हैं , साथ ही वे मुद्रास्फीति , खाद्यान्न सुरक्षा , ऊर्जा दाम , जलवायु परिवर्तन और भूमंडलीय विकास में सहायता जैसे विश्वव्यापी मामलों का सामना करते हैं । ब्रिक देश संगठन का उदय युग के विकास का तकाजा है और इतिहास की अनिवार्यता भी है , न कि किसी विकसित देश के लिये है ।

दक्षिण अफ्रीका की हिस्सेदारी से ब्रिक देशों की सदस्यता बढ़कर पांच तक हो गयी है , भौगोलिक दायरा भी एशिया ,अफ्रीका और लातिन अमरीका से अफ्रीका तक विस्तृत हो गया है । ब्रिक देशों के विभिन्न सदस्यों ने विश्व वित्तीय संकट के मुकाबले और आर्थिक वृद्धि फारमूले की खोज में ठोस योगदान दिये हैं , विश्व अर्थतंत्र में ब्रिक देश संगठन की प्रभावित शक्तियां और बोलने का अधिकार दिन ब दिन मजबूत हो गया है । इस प्रकार ब्रिक देश विकसित देशों के सम्मुख विकासशील देशों की मांग और अच्छी तरह पेश करने में समर्थ हो गय़े हैं । चीनी छिंगह्वा विश्वविद्यालय के चीनी व वैश्विक आर्थिक अनुसंधान केंद्र के अनुसंधानकर्ता य्वान कांग मिंग ने कहा जी बीस सम्मेलन तंत्र की स्थापना के बाद विकासशील देशों और विकसित देशों के बीच आदान प्रदान व सलाह मशविरे भी पहले से अधिक हो गये हैं , हालांकि उन की रायें अलग अलग हैं , पर फिर भी विवादों को कम करने और मामलों का निपटारा करने की दिशा में बढ़ रहा है , यह रुझान अंतरों को मिटाने और संतुलित रुप से विकास करने के लिये फायदेमंद है ।

एक अपेक्षाकृत नयी विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना व्यापक विकासशील देशों की बराबर मांग है । जी बीस सामने आने के बाद सारा विश्व नवोदिक बाजार और विकसित देशों के समान बंदोबस्त की दिशा की ओर बढ़ता जा रहा है । इसी प्रक्रिया के दौरान समझदारी व समन्वय और अधिक महत्वपूर्ण साबित हो गया है । य्वान कांग मिंग का विचार है कि ब्रिक देशों का सदस्य देश जी बीस का सदस्य भी हैं , साथ ही वे विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व भी हैं , अतः वे स्वभावतः दक्षिण उत्तर वार्तालाप के पुल व फीते की भूमिका निभाते हैं ।

वर्तमान में विश्व पिछले आर्थिक संकट के काल में प्रविष्ट हो गया है , उस के सामने मौजूद सब से अहम मामला भूमंडलीय आर्थिक सुधार ही है । छन फुंग इंग का मानना है कि भूमंडलीय आर्थिक सुधार समेत कुछ महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सवाल ब्रिक देशों और विकसित देशों के बीच सहयोग व वार्तालाप का बेहतरीन मौका है ।

मसलन वित्तीय व्यवस्था व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था के सुधार , वित्तीय व्यवस्था की निगरानी व सुरक्षा नेट की स्थापना , विकास व सहायता सवाल , खाद्यान्नों व ऊर्जा के दामों में वृद्धि , जलवायु परिवतन जैसे सवालों के बारे में इसी ढांचे तले वार्ता की जा सकती है । इसी ढांचे में पश्चिम व पूर्व को अपनी आवश्यक भावी नयी विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर समान विचार विमर्श करना चाहिये । यह व्यवस्था और अधिक सहनशील व युक्तिसंगत विकास के लिये अनुकूल होगी ।

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