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2011 जलवायु परिवर्तन वार्ता का प्रथम सम्मेलन
2011-04-05 17:05:17

2011 मौसम परिवर्तन वार्ता का प्रथम सम्मेलन 3 से 8 अप्रैल तक थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में हो रहा है, संयुक्त राष्ट्र जल वायु परिवर्तन ढांचागत संधि के सचिवालय के कार्यकारी सचिव सुश्री क्रीसटिंना ने 4 अप्रैल को बैंकाक में संवाददाता के साथ बातचीत में विभिन्न देशों की सरकारों से अपील की कि वे जल्द ही 2010 में मौसम परिवर्तन सभा में संपन्न हुई सहमति व समझौते पर अमल करते हुए अपने वचनों का पालन करें और ठीस कदम से जल वायु परिवर्तन वार्ता में सार्थक प्रगति केलिए कोशिश करें।

विश्व के 173 देशों के सरकारी प्रतिनिधि मंडलों, उद्योग वाणिज्य जगत के प्रतिनिधियों और कारोबारों व पर्यावरण संरक्षण संगठनों एवं अनुसंधान संस्थानों के कुल 1500 लोगों ने मौजूदा सम्मेलन में भाग लिया और इस साल संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन वार्ता व कार्यसूची पर विचार विमर्श किया। पांच तारीख को क्योटो प्रोटोकोल के हस्ताक्षर पक्षों के विशेष कार्यदल तथा संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन ढांचागत संधि के विशेष दीर्घकालीन सहयोग कार्य दल के सम्मेलनों का भी उद्घाटन हुआ है। समूचा सम्मेलन 8 अप्रैल को समाप्त होगा।

मौसम परिवर्तन ढांचागत संधि के सचिवालय के कार्यकारी सचिव सुश्री क्रीसटिंना ने आशा जतायी है कि सम्मेलन में उपस्थित सभी देश पिछले साल कांकुन में आयोजित सम्मेलन में दिखाई सहयोग व समझौते की भावना का पालन करते रहेंगे, यदि वे सभी सहयोग व व्यवहारिक रवैये से वार्ता में भाग लेंगे, तो सम्मेलन का नदीजा आशावान होगा। उन्होंने कहाः

इस साल मौसम परिवर्तन वार्ता के प्रथम सम्मेलन में यदि विभिन्न सरकार पिछले साल कांकुन सम्मेलन में प्राप्त ठोस समझौते व सहमति को मूर्त रूप देंगे और इस साल के अंत में दक्षिण अफ्रीका के डुर्बान में होने वाले सम्मेलन में संतोषजनक परिणाम निकालने की सक्रिय कोशिश करेंगे तथा कांकुन सम्मेलन में दिखाई सहयोग की भावना का पालन करेंगे, तो मुझे विश्वास है कि 2011 मौसम परिवर्तन सम्मेलन में अवश्य उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल होगी।

सुश्री क्रिसटिंना ने कहा कि वर्तमान में विभिन्न देशों की सरकारों के सामने जो दो प्रमुख मुशक्लें हैं, वो प्रदूषण निकासी में कटौती और पूंजी व तकनीकों का हस्तांतरण है। हालांकि कांकुन सम्मेलन में इस के लक्ष्य व कार्य पर एक प्रकार की सहमति प्राप्त हुई है और पृथ्वी की सतह पर तापमान में वृद्धि को दो डिग्री तक सीमित करने पर सहमत हुए हैं, लेकिन अभी तक इस लक्ष्य का केवल 60 प्रतिशत भाग पूरा हो पाया, अतः इस सवाल पर विकसित देशों को अपने वचन का पालन करने में पहल करना चाहिए। इसके अलावा विकसित देशों को विकासशील देशों को पूंजीगत व तकनीकी समर्थन देना जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहाः

विभिन्न देशों को मौसम परिवर्तन सवाल की गंभीरता समझना चाहिए और इस सवाल के समाधान के लिए सहयोग व समझौते का रूख अपनाना चाहिए, ऐसे में प्रदूषण की निकासी में कटौती का लक्ष्य पाने का मजबूत आधार तैयार होगा। इस से अहम यह भी है कि कांकुन सम्मेलन में प्राप्त सहमति व नयी व्यवस्था को पूर्व निर्धारित समय पर पूरा किया जाना चाहिए, केवल ऐसा करने से ही विश्वव्यापी मौसम परिवर्तन वार्ता के खाके पर 2012 से काम शुरू हो सकेगा।

जापान के फुकुशिमा भूकंप से पैदा हुई न्यूक्लियर रिसाव समस्या के कारण यह संभव होगा कि जापान अपना वचन को निर्धारित समय पर पूरा नहीं कर पाएगा और जापान सरकार क्या सोचेगी, इस पर सुश्री क्रिसटिंना ने कहाः

अभी तक हमें जापान की ओर से अपना वचन बदलने की कोई सूचना नहीं मिली है। जापानी प्रधान मंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि जापान भूकंप की वजह से अपना कटौती लक्ष्य नहीं बदलेगा। वास्तव में न्यूक्लियर रिसाव दुर्घटना के बाद जापान अब न्यूक्लियर ऊर्जा की जगह लेने के लिए अन्य किस्म के ऊर्जा संसाधन की सक्रिय खोज कर रहा है।

क्योटो प्रोटोकोल का प्रथम वचन काल 2012 के अंत में खत्म होगा, इस के लिए नया समझौता समय पर संपन्न होगा या नहीं, इस पर सुश्री क्रिसटिंना ने कहा कि यह मौसम परिवर्तन वार्ता के लिए सब से बड़ी चुनौति है, यदि नया समझौता नहीं बन सका, तो क्योटो प्रोटोकोल बेमानी हो सकेगा और जल वायु परिवर्तन वार्ता अव्यवस्थित बन जाएगा। सुश्री क्रिसटिंना ने यह आशा जतायी है कि यदि विभिन्न देशों की सरकारें मतभेदों को छोड़ने की कोशिश करें, तो इस से बड़ी समस्या नहीं बन जाएगी।

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