ब्रिक देशों के थिंक टैंक का सम्मेलन 25 मार्च को पेइचिंग में जारी रहा। सम्मेलन में उपस्थित विद्वानों ने साक्षात्कार में कहा कि उन की उम्मीद है कि ब्रिक देश आर्थिक क्षेत्र में व्यवहारिक सहयोग बढ़ाने पर बल देंगे और उन के बीच सहयोग की व्यवस्था लगातार परिपक्व होगी और उन के शिखर सम्मेलन में सकारात्मक उपलब्धियां प्राप्त होंगी।
ब्रिक देशों की अवधारणा पहले अमेरिकी अर्थशास्त्रियों द्वारा पेश की गयी है। वह आर्थिक क्षेत्र की एक परिकल्पना है जिस का अर्थ ब्राजील, रूस, भारत और चीन आदि तेज आर्थिक प्रगति से उभरे नवोदित आर्थिक समुदायों से होता है। 2009 के जून में ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस, भारत और चीन के नेताओं ने रूस में प्रथम औपचारिक वार्ता की । पिछले साल के दिसम्बर में ब्रिक देशों में यह सहमति हुई कि दक्षिण अफ्रीका को भी इस सहयोग व्यवस्था का औपचारिक सदस्य बनाया जाएगा।
शुरू शुरू में ब्रिक देशों की इस परिकल्पना ने व्यापक तौर पर वाहवाही कमायी, लेकिन वर्तमान में इन देशों में सहयोग के निरंतर विकास पर आशंका प्रकट हुई है। इसे लेकर रूसी विज्ञान अकादमी के सुदूर अनुसंधान प्रतिष्ठान के डायरेक्टर मिखाईल टिटारेन्को ने कहा कि इधर के सालों में ब्रिक देशों के आर्थिक सहयोग में कुछ उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं, खासकर अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था के सुधार में सहयोग बढ़ाने में कामयाबी हासिल हुई है। श्री टिटारेन्को ने कहा कि समान हितों और समानता आधारित व्यवहार ने ब्रिक देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए आधार डाला है। उन्होंने कहाः
मेरे विचार में ब्रिक देशों के बीच आपसी समझ तथा सहयोग कई अनेक अन्तरविरोधों व समस्याओं को हल करने में मददगार होगा। क्योंकि हमारे समान हित हैं और संयुक्त रूप से समस्याओं के समाधान के लिए इरादा है तथा न्याय व परस्पर समर्थन की भावना है। हम में एक दूसरे के खिलाफ धोखेबाजी और उद्दंडता नहीं है।
चीनी जन विश्वविद्यालय के अन्तराष्ट्रीय संबंध संस्थान के उप डायरेक्टर चिंग छ्यान रून ने कहा कि यद्यपि ब्रिक देशों के आर्थिक विकास में संतोषजनक उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं, तथापि एक नवोदित आर्थिक व्यवस्था के कारण अन्तरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इन का बोलने का अधिकार कम है, वे अकेले अपनी शक्ति के सहारे अपने हितों की रक्षा करने में असमर्थ दिखते हैं, उन्हें एकता व सहयोग बढ़ाना चाहिए तथा आपसी समान हितों की रक्षा करने की कोशिश करनी चाहिए। प्रोफेसर चिन छ्यान रून ने यह आशा जतायी कि जल्द होने वाले ब्रिक शिखर सम्मेलन में आर्थिक क्षेत्र में सलाह मशविरे व सहयोग बढ़ाने को मुख्य कार्यविधि बनायी जाएगी। उन्होंने कहाः
सहयोग का एक मुद्दा फिर भी आर्थिक सवाल होना चाहिए, खासकर इस साल फ्रांस के कानेस में होने वाले जी-20 के सम्मेलन में भी दस विषयों पर विचार विमर्श होगा। उदाहरणार्थ, कच्चे मालों के दामों में उतार-चढ़ाव और विश्व आर्थिक संतुलन के लिए लक्ष्य बनाने या नहीं बनाने का मसला, यह सभी हल के लिए फौरी जरूरी काम है।
भारतीय पर्यवेक्षक कोष के वरिष्ठ शोधकर्ता समीर सरान ने कहा कि सुस्थिर व स्वस्थ आर्थिक विकास बनाए रखना अब भी ब्रिक देशों का अहम कार्य है। आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न सहयोग बढ़ाने से ब्रिक देशों को ठोस लाभ मिलेगा। उन्होंने कहाः
ऊर्जा, बिजली, खाद्य सुरक्षा, कृषि और विज्ञान तकनीक आदि क्षेत्रों में ब्रिक देशों के सहयोग की बड़ी गुंजाइश है। ब्रिक देशों की अपनी अपनी आंतरिक समस्याएं हैं, मसलन, गरीबी, चिकित्सा और शिक्षा आदि। इन सवालों के समाधान के लिए ब्रिक देशों को एक दूसरे से सीखना चाहिए।
अगले महीने के मध्य में ब्रिक शिखर सम्मेलन की तीसरी वार्ता चीन के हाई नान प्रांत में होगी, रूसी प्रोफेसर श्री टिटारेन्को ने कहा कि उन के विचार में मौजूदा सम्मेलन का अहम अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक महत्व होगा। मुझे विश्वास है कि चीनी मित्रों के जोशपूर्ण व बारीकी प्रबंधन से सुन्दर हाईनान द्वीप पर जल्द होने वाला ब्रिक शिखर सम्मलेन निश्चय ही सफल होगा। निसंदेह सम्मेलन के जरिए विभिन्न पक्षों में आपसी विश्वास और बढ़ेगा तथा उत्तर संकट काल में ब्रिक देशों के आर्थिक विकास के बारे में समाधान के ठोस तरीके बनाये जाएंगे।