अफगान राष्ट्रपति करजई ने 22 मार्च को प्रथम खेप के उन 7 इलाकों की नाम सूची सार्वजनिक की है जिन की रक्षा करने का कार्यभार अफगान सुरक्षा टुकड़ियों को सौंपा जाएगा। इस बीच उन्होंने कहा कि प्रतिरक्षा के कार्यभार के हस्तांतरण का काम अवश्य सफल होगा और अफगान लोग अपने देश की रक्षा के लिए भरसक कोशिश करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि करजई की इस घोषणा के साथ 2014 तक अफगानिस्तान से सभी विदेशी सेनाओं के हटने का पहला कदम बढ़ा है, लेकिन इस की सफलता पर प्रश्न चिंह भी लगा है।
अफगान राष्ट्रपति करजई ने 22 तारीख को काबुल में अफगान थल सेना के आफसर स्कूल के परिसर में भाषण देने के वक्त जिन 7 स्थानों की नाम सूची जारी की है उन में सारोबी रहित काबुल प्रांत, पांदसचिर, बामियन, हेलमांद प्रांत की राजधानी लश्करगढ, बालह प्रांत की राजधानी माजरी शरीफ तथा हेरात व रकमान की राजधानी शामिल हैं। श्री करजई ने कहा कि रक्षा भार के हस्तांतरण की प्रक्रिया विभिन्न प्रांतों के केन्द्रीय क्षेत्र से शुरु होगी और धीरे धीरे अन्य क्षेत्रों में चली जाएगी। उन्होंने कहा कि नौजवान अफगानिस्तानियों पर देश की रक्षा करने का भार सौंपना एक अनिवार्य और अपरिवर्तनीय काम है।
अन्तरराष्ट्रीय सवालों के विशेषज्ञों का कहना है कि करजई ने प्रथम खेप में जो सात इलाकों के नाम घोषित किए हैं, वे सभी अपेक्षाकृत सुरक्षित क्षेत्र हैं। बालह प्रांत की राजधानी माजरी शरीफ को छोड़कर अन्य सभी इलाके देश के दक्षिणी भाग में स्थित हैं जहां अब तक कोई घमासान लड़ाई कभी नहीं हुई थी। इसलिए कहा जा सकता है कि इन 7 इलाकों में अफगान सेना द्वारा अकेले रक्षा का भार संभालना प्रातीकात्मक मायना अधिक है। उदाहरणार्थ, उत्तरी भाग में स्थित माजरी शरीफ जर्मन सेना का विदेश में स्थित सब से बड़ा सैनिक अड्डा है, इस लिहाजे से य़ह कहा जा सकता है कि जर्मन सेना वहां से हट जाएगी अथवा नहीं, तो भी वह उत्तरी अफगानिस्तान का शांति स्थापन मिशन निभाती रहेगी। इस के अलावा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के क्षेत्र में बड़ी संख्या में अन्तरराष्ट्रीय सैनिक आते जाते रहेंगे और अफगान स्थित अन्तरराष्ट्रीय सहायता टुकड़ी का मुख्यालय भी वहां अवस्थित है।
श्री करजई ने यह भी कहा कि अफगान सरकार के निर्माण और शांति की प्राप्ति केलिए चालू साल मील का पत्थर का महत्व रखता है। इससे करजई का विश्वास व्यक्त हुआ है, लेकिन लोकमतों की प्रतिक्रिया नकारात्मक है।
सर्वप्रथम, लोकमतों का अनुमान है कि तालिबान और अल कायदा संगठन और अफगान में अन्य उग्रवादी हिंसक संगठन अपनी हार नहीं मानेंगे और वे घमासान युद्ध के लिए कवायद कर रहे हैं। वास्तव में करजई की आवाज अभी अभी खत्म हुई है कि तालिबान के प्रवक्ता जाबिउल्लाह मुजाहिद ने तुरंत बयान देकर उन के भाषण का खंडन किया और यह दावा किया कि वो तब तक संघर्ष जारी रखेंगे, जब तक एक भी विदेशी सैनिक अफगानिस्तान में रह रहेगा। उन्हों ने संकेत भी दिया कि वर्तमान अफगानिस्तान में एक लाख 40 हजार विदेशी सैनिकों का नियंत्रण है, सिर्फ समय बताएगा कि अफगान सुरक्षा सेना हस्तांतरित इलाकों की सुरक्षा का भार संभाल सकेगी कि नहीं। मीडिया को चिंता है कि संभव है कि तालिबान इन सात इलाकों में मनमानियां मचाए और अफगान सरकार व आम लोगों के विश्वास को धूल में मिला दे और दुनिया के सामने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करे।
इस के अलावा, अफगान सरकार की निम्न प्रबंधन क्षमता तथा अफगान सुरक्षा सेना की कमजोर रण-शक्ति भी चिंताजनक है। अफगान सेना में हमेशा सैनिकों के निम्न सांस्कृतिक स्तर, प्रबंध की गड़बड़ी तथा खराब सुविधा की समस्याएं मौजूद हैं। हालांकि अब प्रशिक्षित हुए सैनिकों की कुल संख्या काफी बढ़ी है, फिर भी माना जाता है कि इन सैनिकों में से बहुत से लोगों को तालिबान से लड़ने का कम अनुभव है, और उन का रूख भी अडिग नहीं है तथा आसानी से धन दौलत का गुलाम बन जाएंगे। और तो और, अफगानिस्तान में अन्तरराष्ट्रीय सहायता सेना के सदस्यों की संख्या एक लाख 40 हजार से अवश्य अधिक है, किन्तु ऐसे पूरी तरह हथियारबंद हुए विदेशी सैनिकों की तैनाती की स्थिति में भी हिंसक हमले हुआ करते हैं, यदि वे हट गए, तो वहां सुरक्षा की स्थिति करवट लेगी या नहीं, कहना मुश्किल है। नाटो के महा सचिव लासमुसिन ने 22 तारीख को एक वक्तव्य में विभिन्न विदेशी सेनाओं से जल्दबाजी में नहीं हटने की अपील की। उन्होंने कहा कि नाटो की सेना का मुख्य कार्य युद्ध से प्रशिक्षण देने में बदलेगा और नाटो को अफगान सुरक्षा टुकड़ी की संख्या व गुणवत्ता उन्नत करने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए।
लिहाजा, विश्लेषकों का मानना है कि अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति सचे मायने में सुधरने से पहले वहां की सुरक्षा संभालने का भार अफगानिस्तान को सौंप देना एक जोखिम है और उस का भविष्य आशावान नहीं है।