श्रोता दोस्तो , तगड़े भकम्प और सुनामी के प्रभाव में जापान के फुकुशिमा दायची के नम्बर एक परमाणु संयंत्र गम्भीर रुप से तबाह हुआ है , जिस से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विकिरण के रिसाव पर कड़ी नजर रखे हुए है । साथ ही फुकुशिमा दायची परमाणु घटना से परमाणु सुरक्षा और परमाणु बिजली के विकास के बारे में बहस भी उत्पन्न हुई । चीनी परमाणु ऊर्जा विज्ञान अकादमी के अनुसंधानकर्ता कू चुंग माओ ने 17 मार्च को हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि फुकुशिमा दायची परमाणु घटना की वजह से न्यूक्लीयर बिजली का विकास छोड़ना कोई विवेकपूर्ण विकल्प नहीं है । सारी दुनिया के लिये ऊर्जा आपूर्ति को स्थिर बनाना और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना निहायत जरुरी है , न्यूक्लीयर बिजली से प्रदत्त मौका उस से उत्पन्न जोखिम से कहीं अधिक बड़ा है । विभिन्न देशों को न्यूकलीयर ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाने की भरसक कोशिश करनी चाहिये ।
11 मार्च को जापान में भकम्प आने के बाद फुकुशिमा दायची न्यूकलियर बिजली घर के 6 संयंत्रों में से चारों में अलग अलग तौर पर विस्फोट हुआ । जबकि अन्य दो संयंत्रों की स्थिति अभी भी स्थिर नहीं है । विस्फोटों से पैदा विकिरण के रिसाव ने जापान की राजधानी तोक्यो आदि क्षेत्रों को खतरे में डाल दिया है । हालांकि जापान इस घटना के प्रभाव को कम करने के लिये सभी संभावित कदम उठाने में लगा हुआ है , पर घबराहट ने फिर भी जापानी नागरिकों को अपनी लपेट में ले लिया । चीनी परमाणु ऊर्जा विज्ञान अकादमी के अनुसंधानकर्ता कू चुंग माओ का मानना है कि हालांकि यह दुर्घटना भूकम्प और सुनामी जैसी दुर्दशा में हुई है और अनियंत्रित तत्व भी बहुत ज्यादा हैं , पर उस से सबब फिर भी सीखा जा सकता है ।
जापान संबंधित कदम उठाने में सफल नहीं हुआ है । नम्बर एक परमाणु संयंत्र में हाइड्रोजन विस्फोट के बाद नम्बर दो और तीन में एक जैसी स्थिति पैदा हो सकती है । शुरु में समुद्री पानी से तापमान को किया जा सकता है , ठंडा करने का कदम काफी फलदायक है ।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा गत जनवरी में जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्तमान सारी दुनिया में कुल चार सौ से अधिक परमाणु संयंत्र काम में लाये गये हैं , परमाणु बिजली का उत्पादन समूचे विश्व के कुल बिजली उत्पादन का 16 प्रतिशत बनता है । जिन में जापान में 54 परमाणु बिजली घर स्थापित हुए हैं , उस का परमाणु बिजली उत्पादन विश्व में तीसरे स्थान पर है । मौजूदा फुकुशिमा दायची परमाणु विकिरण के रिसाव से सारी दुनिया प्रभावित हुई , बहुत ज्यादा देशों ने तुरंत ही प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त की हैं । कुछ यूरोपीय देशों ने न्यूक्लीयर बिजली विकास नीति को सिकुड़ने की नीति अपनायी , जर्मनी ने हाल ही में सात न्यूक्लीयर बिजली घरों को अस्थायी रुप से बंद करने की घोषणा की है और अपने सभी न्यूक्लीयर बिजली घरों की सुरक्षा का जायजा लिया ।
वास्तव में विश्व के न्यूक्लीयर बिजली विकास के इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि परमाणु विकिरण के रिसाव की चर्चा करते ही रंग उड़ता है । अमरीका के तीन मील द्वीप न्यूकलीयर बिजली घर और पूर्व सोवियत संघ के चेर्नोबली न्यूक्लीयर बिजली घर में हुए रिसाव से न्यूक्लीयर बिजली का विकास एक समय में बाधित हुआ था , पर अंत में समूचे विश्व में न्यूकलीयर बिजली घरों का निर्माण फिर भी बंद नहीं हुआ ।
कु चुंग माओ ने कहा कि सारी दुनिया को स्थिर ऊर्जा आपूर्ति बरकरार रखने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की जरुरत है , इसी संदर्भ में स्वच्छ और विश्वसनीय न्यूकलीयर बिजली द्वारा प्रदत्त मौका उस से पैदा जोखिम से कहीं अधिक बड़ा है । आगामी लम्बे अर्से में चीन और विश्व के बहुत से देशों को परमाणु ऊर्जा की जरुरत पड़ेगी ।
मेरा ख्याल है कि परमाणु ऊर्जा के विकास की खूबियां कमियों से अधिक हैं , क्योंकि अब उत्सर्जन को कम करने के चलते पर्याप्त ऊर्जा की आवश्यकता भी है । भावी वर्षों में हमारे लिये न्यूकलीयर बिजली की जगह लेने लायक और बेहतर तकनीक पर महारत करना मुमकिन नहीं है । इस के अलावा मानव जाति का विकासक्रम कुछ हद तक नियंत्रित करने और विकास के फारमूले पर सोच विचार भी करना जरूरी है ।
वर्तमान में अमरीका और फ्रांस आदि परमाणु ऊर्जा युक्त बड़े देशों ने अपने न्यूकलीयर संस्थापनों की सुरक्षा की जांच आदि कदम उठा दिये हैं । चीन सरकार ने न्यूकलीयर बिजली परियोजनाओं की स्वीकृति को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया है , साथ ही विशेषज्ञों को न्यूकलीयर संस्थापनों की सुरक्षा की पूरी जांच पड़ताल करने में भेज दिया है । विश्व ऊर्जा परिषद के अध्यक्षा पियर गाडोने ने 16 मार्च को अपील करते हुए कहा कि न्यूकलीयर सुरक्षा एक अंतर्राष्ट्रीय मामला बन गयी है , उस का भूमंडलीय प्रबंध करने और समान सुरक्षा लक्ष्य कायम करना अत्यवश्यक है ।