नेपाल की यूनिफ़ाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माक्सिस्ट लेनिनिस्ट) के अध्यक्ष खनल ने गुरूवार तीसरी फरवरी की रात नेपाली संविधान-सभा या कहे संसद में प्रधान मत्री-पद के लिए आयोजित 17वें दौर के मतदान में सरल बहुमत से नए प्रधान मंत्री निर्वाचित किए गए।इस तरह नेपाल में करीब 7 महीनों से जारी राजनीतिक गतिरोध का अंत हो गया है।
इस मतदान में खनल को 557 मतों में से 368 मत मिले।अन्य दो उम्मीदवारों—नेपाली कांग्रेस से बोडेल और मदेसी जनाधिकार फोरम डेमोक्रेटिक से गाचेडर ने क्रमशः 122 और 67 वोट जीते।30 जुन 2010 को नेपाल के पूर्व प्रधान मंत्री नेपाल को इस्तीफा देने की घोषणा करनी पड़ी थी।तब से नेपाली संविधान-सभा में 16 दौरों के मतदान हो चुके हैं,लेकिन विभिन्न दलों में मतभेद होने के कारण किसी भी उम्मीदवार को आधे से ज्याद वोट नहीं मिल पाये।गत 25 जनवरी को नेपाली संविधान-सभा यानी संसद में एक नया नियम पारित किया गया,जिसके अनुसार मतदान में जिस उम्मीदवार को सरल बहुमत मिलता है,वह प्रधान मंत्री चुने जाएंगे।नियम में यह भी प्रावधान है कि कोई भी सांसद अपने मताधिकार का प्रयोग करने से नहीं कतरा सकता है।इस नए नियम ने गुरूवार को हुए मतदान में निर्णयक भूमिका अदा की है।
खनल ने प्रधान मंत्री बनने के बाद जारी अपने एक बयान में कहा कि वे नेपाल की शांति-प्रकिया के लिए अथक प्रयास करेंगे।उन्होंने विभिन्न पार्टियों से भी जल्द ही देश की संवैधानिक राजनीति जैसे अहम सवालों पर एकमतता बनाने का आग्रह किया।सूत्रों के अनुसार खनल के प्रधान मंत्री बन सकने का कारण नेपाल की सब से बड़ी राजनीकित पार्टी---यूनिफ़ाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) की ओर से जोरदार समर्थन है।इस पार्टी के अध्यक्ष प्रचंड ने तीसरी फरवरी को मतदान के बाद कहा कि उन की पार्टी ने नेपाली जनता के हितों से प्रस्थान कर अपने उम्मीदवार को छोड़कर खनल का समर्था करने का निर्णय लिया है।उन्होंने इससे दुनिया को यह दिखाने की उम्मीद जताई कि नेपाल खुद अपने सवालों के समाधान में सक्षम है।
61 वर्ष के खनल नेपाल में एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं।युवावस्था में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया था।वे मीडिल स्कूल में प्राध्यापक भी रहे।पिछली शताब्दी के 1990 के दशक में नेपाली जनवादी लोकतांत्रिक क्रांति के बाद स्थापित कई सरकारों में उन्होंने अनेक बार कैबिनेट मंत्रियों के पद संभाले।
विश्लेषज्ञों का मानना है कि श्री खनल को प्रधान मंत्री निर्वाचित किया जाने से नेपाल में कई पार्टियों द्वारा संयुक्त रूप से सरकार बनाने का वर्तमान राजनीतिक ढांचा नहीं बदला है।खनल और पूर्व अंतरिम सरकार के प्रधान मंत्री नेपाल दोनों यूनिफाड़इ क्म्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) से हैं।जबकि नेपाल ने देश की विभिन्न पार्टियों में अंतरविरोधों को दूर करने में अदक्ष होने के कारण विवश होकर इस्तीफा दे दिया था।इस समय नेपाल के रानजीतिक मंच पर दो सब से सशक्त पार्टियां है,एक यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) और दूसरी नेपाली कांग्रेस।खनल की यूनिफ़ाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माक्सिस्ट लेनिनिस्ट) शक्ति की दृष्टि केवल तीसरे स्थान पर है।नेपाल के अस्थाई संविधान के तहत नेपाल के संसद में कुल 601 सीटें हैं।उन के आधे भाग से ज्यादा सीटें हासिल करने वाली किसी भी पार्टी के नेता को ही प्रधान मंत्री बनने और सरकार बनाने का हक हो सकता है।पिछले साल 30 जून को श्री नेपाल द्वारा कामचलाऊ सरकर के प्रधान मंत्री के पद से इस्तीफा देने की घोषणा की जाने के पश्चात
यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) और नेपाली क्रांग्रेस के बीच तीव्र स्पर्धा शुरू हुई।लेकिन मतदान के 16 दौरौं के बाद भी दोनों पार्टियां संसद में जरूरी आधे भाग की सीटें नहीं पा सकीं।विश्लेषकों के अनुसार नेपाल में राजनीतिक गतिरोध का प्रमुख कारण संसद से जुड़ी एक परिपूर्ण राजनीकित व्यवस्था की कमी है,क्योंकि नेपाल एक युवा गणराज्य है।दूसरा कारण है कि विभिन्न पार्टियों ने हित से जुड़े सवालों को सुलझाने में एक दूसरे से सहयोग नहीं करने का रवैया अपनाया है,जिससे नेपाल में राजनीतिक गतिरोध बनी रही है।
खनल के प्रधान मंत्री बनने से नेपाल के राजनीतिक मंच पर मंडरा रहे घने बादल छंट गए हैं,तो भी नेपाल की भावी राजनीतिक स्थिति अभी साफ़ नहीं दिखती।खासकर यूनिफ़ाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) और नेपाली कांग्रेस के बीच तीव्र स्पर्धा होने की पृष्ठभूमि में खनल उन में से किस के साथ सरकार बनाएंगे?सरकार बनने के बाद विभिन्न पार्टियों के बीच हितों से जुड़े मतभेदों को किस तरह से दूर किया जाए?ये समस्याएं नई सरकार को परेशान कर सकती हैं।अगर उन्हें समुचित रूप से नहीं सुलझाया जाता है,तो खनल प्रशासन नेपाल प्रशासन के भाग्य की नकल करेगा।
कई विश्लषकों का कहना है कि इस समय भी नेपाल में राजनीतिक नींव बहुत कमजोर है।विभिन्न पार्टियों में अंतरविरोध और टक्कर अपेक्षाकृत लम्बे समय से बने रहे हैं।खासी बाय यह है कि देश में दो सेनाएं मौजूद हैं,जो स्थिरता के लिए बहुत खतरनाक साबित होंगी।यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) ने यद्यपि कब से ही सशस्त्र संघर्ष से अलविदा कहकर संसदीय लोकतंत्र की राह पर चल निलकने का निर्णय लिया था,लेकिन उस की अगुवाई वाली करीब 20 हजार सदस्यीय सेना---नेपाली पीपल्स लिबरेशन आर्मी अब भी विभिन्न पारिटों के लिए सब से बड़ी चिंता की तत्व है।सैन्य शक्तियों के पुनः प्रबंध के सवाल पर नेपाल की विभिन्न पार्टियों में तीखा विरोधाभास बना रहा है।खनल ने प्रधान मंत्री बनने के बाद अपने बयान में कहा है कि वे यह देखना चाहते हैं कि विभिन्न पार्टियों द्वारा संपन्न समझौते के अनुसार 90 दिनों के अन्दर नेपाली पीपल्स लिबरेशन आर्मी का पुनःप्रबंध करने का काम पूरा होगा।