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टैगोर की 150 वीं जयंती का समारोह
2011-01-28 16:41:58

इस साल भारतीय कवि, नोबल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती है। इस उपलक्ष्य में उनकी जन्मभूमि पश्चिम बंगाल में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

27 जनवरी की सुबह, कोलकाता के उत्तरी भाग में स्थित टैगोर के पुराने घर में भारत, चीन, बंगलादेश, जर्मनी, रोमानिया और अमेरिका आदि देशों से आए विद्वानों की मौजूदगी में टैगोर के बारे में एक अध्ययन संगोष्ठी हुई, जिसमें टैगोर के बारे में समकालीन भारतीय विद्वानों और आम लोगों के रूख पर विचार-विमर्श हुआ। क्या 21वीं शताब्दी में भी टैगोर की विचारधारा प्रासंगिक होगी?इस सवाल पर उपस्थित विशेषज्ञों ने अपने- अपने मत व्यक्त किए। इस पर भारत के रबीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के कुलपति करुणसिन्धु दास ने कहाः

कालांतर में यह जाहिर होता है कि टैगोर के विचार आज के आधुनिक समाज के लिए भी बड़े प्रासंगिक हैं और अहम निर्देशक महत्व रखते हैं। आज की दुनिया में लोगों के सामने तरह तरह की जटिल समस्याएं हैं, टैगोर की रचनाओं में मानव समानता, विभिन्न धर्मों व जातियों में सहिष्णुता और मेलजोल के चिन्तन गर्भित हैं जो मानव सभ्यता और प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।

चाइना रेडियो इंटरनेशनल के बंगला भाषा विभाग से आए प्रोफेसर शि चिंगवू ने संगोष्ठी में टैगोर-चीन संबंधों के बारे में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि चीन में कई लोग टैगोर के बारे में अध्ययन करने के साथ-साथ उनकी रचनाओं का अनुवाद करने में जुटे हैं, टैगोर की रचनाओं में जो शांति व सामंजस्य की अवधारणा व्यक्त हुई है, उसका आज भी चीनियों पर प्रभाव पड़ रहा है। शि चिंग वू ने कहाः

मेरे विचार में टैगोर सचमुच एक महान कवि थे, साथ ही एक विचारक और दार्शनिक भी थे, चीन में उनकी प्रसिद्धि बहुत ऊंची है। उन्होंने दर्जनों साल पहले अपनी रचनाओं में जो विचार व चिन्तन पेश किए थे, वे अब भी व्यापक तौर पर प्रासंगिक हैं। मानव जाति के प्रति उनका प्यार और शांति के लिए उनकी अभिलाषा और मानवों में मेल-मिलाप की खोज आधुनिक दुनिया के लिए व्यापक मूल्य रखते हैं।

रोमानियाई राष्ट्रीय अकादमी से आए प्रोफेसर मिशेल गरिगोर ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि टैगोर एशिया में ही नहीं, बल्कि रोमानिया और समूचे यूरोप तक सम्मानीय और लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहाः

रोमानिया में भी टैगोर का बड़ा नाम है, उनका दर्शनशास्त्र मेरे अध्ययन का विषय है। मुझे पता चला है कि इन सालों में टैगोर रोमानियाई लोगों में और ज्यादा लोकप्रिय हो गए हैं और हमारे देश में उनकी कई रचनाओं का अनुवाद किया गया है और अध्ययन की कई बैठकें हुई हैं।

संगोष्ठी के अलावा 23 से 27 जनवरी तक कोलकाता और शांति निकेतन दोनों जगहों में टैगोर नृत्य व नाटक उत्सव आयोजित हुआ, जिनके माध्यम से इस महान विद्वान की प्रशस्ति हुयी और उनके दार्शनिक विचारों का प्रचार प्रसार किया गया। कला की इस प्रकार की प्रस्तुति भारतीय जवानों में भी बहुत जलवां हुई। 25 साल की किंकिनी नंदी ने 27 जनवरी को टैगोर नाटक की प्रस्तुति देखकर संवाददाता को बताया कि टैगोर के विचार अब भी प्रासंगिक हैं, उनकी तरह तमाम भारतीय युवा इस महान हस्ती को बहुत प्यार करते हैं। नंदी ने कहाः

पश्चिम बंगाल के सभी बच्चे अपनी स्कूली पढ़ाई में टैगोर की रचना पढ़ते हैं, यह शिक्षा बच्चों की युवास्था तक साथ साथ रहती है। हमने टैगोर की सभी बहुत कविताएं और उपन्यास पढ़े हैं। वर्तमान में भी हमारे स्कूलों में टैगोर की कविता पढ़ कर सुनाने तथा गीत गाने की गतिविधियां होती हैं और उनके प्रति हमारा अपना प्यार अभिव्यक्त होता है।

पश्चिम बंगाल के संबंधित जिम्मेदार व्यक्ति के मुताबिक वर्ष 2011 टैगोर की 150वीं जयंती है, उनकी जन्म भूमि और शांति निकेतन में उन की स्मृति में सिलसिलेवार प्रोग्राम आयोजित हो रहे है। 7 मई को टैगोर के जन्म दिन पर स्मृति कार्यवाही पराकाष्ठा पर पहुंचेगी, उस वक्त पूरे भारत यहां तक समूची दुनिया में टैगोर प्रेमी एक साथ इस महान कवि को याद करेंगे और उनके विचारों का विकास करने की कोशिश करेंगे।

जैसा कि एक बंगलादेशी विद्वान ने संगोष्ठी में कहा कि 21वीं सदी में भी इस प्रकार से धूमधाम से टैगोर की स्मृति में कार्यक्रम हो रहे हैं, इससे साबित होता है कि युग समाप्त हो सकता है, लेकिन महान विचारधारा की ज्योति हमेशा ज्वलंत रहती है। टैगोर का पद हैः आकाश में परिंदे का कोई चिन्ह न रहा, लेकिन मैं उड़ता रहा हूं। सच ही, 21 वीं सदी में भी टैगोर के पद चिन्ह सर्वत्र देखने को मिलते हैं।

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