"मेरा जन्म फ्रांस में हुआ। मेरे मां-बाप अक्सर मुझे बताते रहते हैं कि मैं एक चीनी हूं। मुझे बहुत जिज्ञासा थी मैं जानूं कि चीन कैसा देश है। मेरी रुचि चीनी साज़, चाय और चित्रों में भी है।"
16 वर्षीय लाई छ्वी का पैतृक घर दक्षिण चीन के क्वांगतोंग प्रांत के चाओचो शहर में है, लेकिन उस का जन्म फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुआ और वह वहां जीवन बिता रही है। इस साल उसने 50 देशों में रह रहे 6000 चीनी मूल के युवाओं के साथ चीन की यात्रा की। उन्होंने कई टीमों में विभाजित हो कर चीन के कई प्रांतों का दौरा किया।
लाई छ्वी फ्रांस, जापान, नीदरलैंड और इंडोनेशिया से आए 70 चीनी मूल के युवाओं के साथ हान जातीय संस्कृति के स्रोत पूर्वी चीन के च्यांगसू प्रांत में शूचो शहर गए। शूचो के परंपरागत चीनी संस्कृति वाले स्कूल में इन 70 युवाओं ने चीनी साज़, शतरंज, सुलेख और चित्र-कला आदि चीनी परंपरागत संस्कृति से परिचय हासिल किया। चीन के परंपरागत वस्त्रों में सांस्कृतिक शिष्टाचार शामिल है। शिष्टाचार वाली कक्षा में अध्यापक ने विशेष रूप से इन युवाओं को हान जातीय कपड़े पहनना सिखाया, ताकि युवा लोग और अच्छी तरह हान जातीय संस्कृति को महसूस कर सकें।
"यह हान जातीय कपड़े का एक कमरबंद है। इसे कमर में अच्छी तरह लपेट कर आप लंबे, पतले और सुन्दर लगने लगते हैं। आएं, हम एक साथ अभिवादन करें।"
जब अध्यापक ने हान जाति के कपड़े पहनने के लिए इन युवाओं को दिए, तब आधुनिक व फ़ैशनेबुल पोशाक पहनने वाले युवाओं में इन्हें पहनने के लिए मानो होड़ लग गई। लाई छ्वी ने भी उत्सुकतापूर्वक इसे पहना और तुरंत फ़ोटो खिंचवाना शुरू कर दिया।
लाई छ्वी धाराप्रवाह फ्रांसीसी भाषा बोलती है, लेकिन चीनी बोलने में उसे थोड़ी कठिनाई होती है। जीवन में उसे दो संसार मिले हैं, एक फ्रांसीसी और दूसरा चीनी। बाहर वह फ्रांसीसी में लोगों से संपर्क करती है, जबकि घर में चीनी भाषा में मां-बाप से बातें करती है। लाई छ्वी का कहना हैः
"फ्रांस में मेरे ज़्यादातर दोस्त फ्रांसीसी हैं, चीनी दोस्त कम हैं। लेकिन घर में मैं दक्षिण चीन के क्वांगतोंग प्रांत की चाओचो बोली बोलती हूं।"
लाई छ्वी की ही तरह विदेशों में रह रहे चीनी मूल के युवा लोग चाहे विदेश में रहते हैं, पढ़ते हैं और काम करते हैं, लेकिन घर में चीनी संस्कृति का वातावरण ही बना कर रखते हैं। लाई छ्वी ने कहा कि स्कूल में सहपाठी उसे चीनी मानते हैं, लेकिन चीन आने के बाद लोगों को यह संदेह होता है कि मैं चीनी हूं पर चीनी क्यों नहीं बोलती?
शूचो के परंपरागत चीनी संस्कृति वाले स्कूल के अध्यापक माओ च्वान वन ने कहा कि इन युवाओं के साथ संपर्क से उन्हें पता चला है कि इन युवाओं में चीनी व पश्चिमी संस्कृति का अंतर्विरोध मौजूद है। न सिर्फ़ भाषा में, बल्कि विदेशों में रह रहे चीनी मूल के अधिकांश युवा चीनी खाना खाने के आदी नहीं हैं और उन्हें चीनी ढंग से खाना खाने में परेशानी होती है। माओ च्वान वन ने कहाः
"शुरू में ये युवा पानी या चाय की जगह कोक पीना पसंद करते हैं। वे चीनी लोगों का रोज़मर्रा का नाश्ता खिचड़ी खाना पसंद नहीं करते। चीनी खिचड़ी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, लेकिन ब्रेड-बटर और जैम पर पले ये युवा इसे खाने के अनुकूल नहीं समझते।"
माओ च्वान वन ने कहा कि इन युवाओं को इतने कम समय में चीनी संस्कृति का परिचय देने के लिए शूचो परंपरागत चीनी संस्कृति स्कूल के अध्यापकों ने विशेष रूप से सरल व दिलचस्प पाठ तैयार किए हैं।
"हमने उन्हें चीनी गीत गाने, शाओलिन वू शू करने, चीनी सुलेख-कला लिखने, चीनी स्याही से चित्र बनाने, चीनी चाय बनाने की रस्म और चीनी साज़ बजाने जैसी दिलचस्प बातें सीखीं। इन का उन के मन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। अब वे कहीं भी जाएं, हमेशा याद रखेंगे कि वे चीनी मूल के हैं।"
एक हफ्ते का समय बीत गया है। शूचो से रवाना होने से पहले युवाओं ने अध्यापकों को धन्यवाद देने के लिए जो सीखा है, उस का प्रदर्शन किया।
माओ च्वान वन ने कहा कि सबसे आगे खड़ा हुआ लड़का पेरिस से है। शुरू में वह शूचो आना नहीं चाहता था और चीनी संस्कृति सीखने का उस का कोई मन भी नहीं था। अब वू शू प्रदर्शन में उस की चाल सबसे अच्छी है और उसे टीम के सामने खड़े हो कर प्रदर्शन करने का मौका मिला है। शुरू में उसने चीनी खिचड़ी का बहिष्कार किया, लेकिन अब वह अध्यापक से चीनी खिचड़ी बनाने का तरीका सीखना चाहता है और शाओलिन वू शू पर मोहित है। माओ च्वान वन ने कहाः
"अब यह लड़का अक्सर कहता है कि मैं चीनी संस्कृति पर गर्व करने लगा हूं। फ्रांस लौटने के बाद मैं सभी लोगों को बताऊंगा कि मैं एक चीनी हूं।"
चीन की यात्रा पर आए फ्रांस में रह रहे चीनी मूल के युवाओं के प्रतिनिधिमंडल की नेता ली च्वान ने कहा कि लाई छ्वी द्वारा बजाई गई चीनी कू छिन की आवाज़ सुनने पर उस की आंखों में आंसू भर आए। ली च्वान का कहना हैः
"लोगों की अपनी संस्कृति होनी चाहिए। फ्रांस की संस्कृति फ्रांस की है, चीनी संस्कृति चीन की है। हम अक्सर कहते हैं कि हम अजगर के उत्तराधिकारी हैं। अब हम स्वदेश वापस लौट आए हैं।"
युवाओं का प्रदर्शन देखने वालों में सबसे अधिक संतोष शूचो के परंपरागत चीनी संस्कृति स्कूल की अध्यक्षा यी चिंग को हुआ। उन का कहना हैः
"देखिए, जब वे लोग 'मेरा चीनी दिल' नामक गीत गा रहे हैं, वे एक चीनी होने पर गर्व महसूस कर रहे हैं। यह भावना विदेशों में रह रहे चीनी मूल के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।"
एक हफ्ते की चीन यात्रा समाप्त हो गई है। युवा लोग इस अनुभव से बहुत खुश हैं। इस यात्रा से उन्होंने न केवल चीनी संस्कृति को करीब से देखा समझा है, बल्कि अपनी जड़ों से साक्षात्कार किया है। वापिस जाने से पहले उन्होंने जितना हो सकता है, उतना स्थानीय सामान खरीद कर अपने सूटकेसों में भर लिया है, ताकि वापिस जा कर अपने दोस्तों को उपहार दे सकें और बता सकें कि वे यह सब सामान अपने चीन से लाए हैं। लाई छ्वी का सूटकेस अन्य युवाओं से और भारी है, क्योंकि इस में सैंकड़ों हान जातीय संस्कृति संबंधी तस्वीरें एल्बम हैं। लाई छ्वी ने कहा कि फ्रांस लौटने के बाद वह ये तस्वीरें अपने दोस्तों को देगी।
"मुझे लगता है कि लोगों की पेड़ की तरह अपनी जड़ें होनी चाहिए। मेरी जड़ें यहां हैं। संभवतः भविष्य में मैं चीन में रहूंगी। मैं एक चीनी की हैसियत कभी नहीं भूलूंगी।"