हाल ही में चीन का पांचवा सर्वोच्च लूशिन साहित्य पुरस्कार , प्रसिद्ध चीनी साहित्यकार लूशिन के गृहस्थान चेच्यांग के साओशिंग में प्रदत्त किया गया, इस साहित्य पुरस्कार में मध्यम लम्बाई के उपन्यासों, लघु उपन्यासों, साहित्य रिपोर्टों , कविताओं व गद्य तथा साहित्य सिद्धांत समीक्षा समेत 30 रचनाओं को उक्त सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया।《गांव की दुल्हन शहर में》 नाम के उपन्यास के मशहूर चीनी लेखक सूथुंग इस सर्वोच्च साहित्य लूशिन पुरस्कार के विजेता रहे ।
《गांव की दुल्हन शहर में》 नाम के उपन्यास में पिछली शताब्दी के 70वाले दशक काल में एक गांव की लड़की के शादी के मंडप से भागकर शहर में अपने जीवन भाग्य को बदलने के जीवन संघर्ष पर लिखी एक मर्मस्पर्शी कहानी है। पूरे उपन्यास में जीवन की सच्चाई के आधार विस्तृत तौर से ताजा दम वाली एक जीती जागती जवान लड़की की मन भावना को बेहतरीन रूप से दर्शाया है। लेखक सूथुंग ने हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार में इस पुरस्कार को पाने की प्रसन्नता प्रकट करते हुए बताया कि ये पुरस्कार उनके कल्पना से बाहर थी, उन्हें लघु उपन्यास लिखने में हमेशा से बड़ी रूचि रही है और मध्यम लम्बाई वाले उपन्यास के प्रति तो उन्हें खास प्रेम है। लूशिन साहित्य पुरस्कार पाने से पहले एक लम्बे समय से चुपचाप उपन्यास लिखने में मगन लेखक सूथुंग के लिए उक्त पुरस्कार मानों एक खिलता हुआ रंगीन फूल हो, जिसकी खुश्बू की तलाश के लिए वे बरसों से अक्षरों की जिन्दगी में डूबे व भटकते रहे हैं। उन्होंने हमारे संवाददाता को बताया,《गांव की दुल्हन शहर में》 उपन्यास का जमाना हालांकि आज से बहुत दूर है, वे पिछली शताब्दी के 70वाले दशक की दुखद भरी एक मर्मस्पर्शी कहानी है, लेकिन इस उपन्यास का व्यवहारिक अर्थ आज के जमाने के लिए भी भारी महत्व रखता है। मनुष्य की समस्या जमाने के अंतराल से काटी नहीं जा सकती है, वे निरंतर जारी रहेगी, इन में उसकी सौन्दर्य नैतिकता अथवा मनुष्य की प्राकृतिक खामियां भी जिन्दा रहेगी।
लेखक सूथुंग ने कहा कि 8000 से अधिक शब्दों से निर्मित 《गांव की दुल्हन शहर में》 उपन्यास के कुछ पन्ने उन्होंने लिखने से इसलिए इन्कार कर दिया , क्योंकि आज के युग में उस समय की कुछ खून से रंगी निर्दय जीवनी शायद एक अनजाना खौफ मचा सकती है। एक मासूम ग्रामीण लड़की अकेले एक अनजाने शहर में आती है तो उसे कितनी मुसिबतें उठानी पड़ती हैं इस का अन्दाजा आप खुद ही लगा सकते हैं, अपने भाग्य को दूसरे पर निर्भर कर बड़ी सावधानी से अकलमंदी का इस्तेमाल कर पल- पल जीवन बिताना , सचमुच कोई आसान काम नहीं है, विशेषकर एक गांव की मासूम लड़की के लिए।
लेखक सूथुंग का मानना है कि उस जमाने में लोगों का भाग्य चाहे शहर में हो या गांव में, उन में इतना ज्यादा फर्क नहीं देखने को मिलता था। तो भी उस समय मन भावना व इन्सानियत को तोड़ मरोड़कर जीने वाले वातावरण में लोगों के जीने के तरीकों के अलग होने के कारण , लोगों के भाग्यों का नतीजा भी बहुत ही अलग होता है । आज जबकि जमाना बहुत बदल गया है तो भी इस से 30 साल पहले की घटना हो या आने वाले तीन हजार सालों की घटना हो , लोगों का भाग्य व मनुष्य की इन्सानियत में भी इतना भारी फर्क नहीं होगा। इस लिए मनुष्य की इन्सानियत व इन्सान का भाग्य हमेशा लोगों के गंभीर सोच विचार का एक मुददा बना रहा है, वे कभी भी समय के बदलने से पुराना नहीं होगा।
इस साल 47 साल आयु में प्रवेश कर रहे लेखक सूथुंग, लूशिन साहित्य पुरस्कार हासिल करने के समारोह में मामूली वस्त्र पहने, आंखो में एक काला चौड़ा ऐनक लगाए हुए थे, देखने में वे अपनी मर्दाना सौभ्यता की पहचान ही नहीं दे रहे थें बल्कि उनकी शकल व उनका रवैया काफी मार्डन दिख रहा था। ऐसा लगता है कि उनके उपन्यास में सदा से भरी ताजगी व शीतलता की महक चारों ओर फैल रही हो। लेखक सूथुंग दक्षिण चीन के सूचओ में पले बड़े हुए हैं, दक्षिण चीन की अनोखी जीवन भूमि उनकी रचनाओं में बराबर देखने को मिलती हैं।
1980 में लेखक सूथुंग को पेइचिंग नार्मल विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विषय में प्रवेश मिला, वहां विधिवत भाषा के पेशावर प्रशिक्षण पाने के अलावा , वहां की साहित्य की खुश्बू ने भी उनके मन को अत्यन्त मनमोहित किया। 1983 में अपने पहले उपन्यास 《आठवीं कांस्य मूर्ति 》के प्रकाशन पर ही उन्होंने पुरस्कार हासिल कर लिया। इस सफलता ने उनके निरंतर उपन्यास लिखने के साहस व उत्साह को प्रेरित किया । इस के बाद उनकी लिखी 《बीवी महबूबा की भीड़》 नाम की रचना को चीन के मशहूर फिल्म निर्देशक चांग इ मो ने 《चारों ओर जगमगाती लाल लालटेन》 नाम की फिल्म में निर्मित कर भारी सफलता हासिल की। तब से उनका नाम चीन के साहित्य जगत में गूंजने लगा।
लेखक सूथुंग महिला की छवि को दर्शाने में बड़े माहिर हैं, चीन की प्राचीन कहावत " सुन्दरता जीवन की एक छोटी सी झलक होती है " को तो लेखक सूथुंग ने खास तौर से अपनी कलम में बड़ी अच्छी तरह उतारा है। शायद औरत के शरीर पर उपन्यास की जरूरत किस्से मानों उन्होंने पहले से ही अपने दिमाग में जमा कर लिए हों, लेखक सूथुंग की कलम में महिला की दुखद व निराशा तथा अकेलेपन की उदासी , अक्सर उनके उपन्यास में लोगों की मन भावना की कोमलता व निर्मलता के अलावा एक किस्म के दबाव की महसूसता दिलाने के साथ उसमें आंसू की बहार भी लेकर आता है। महिलाओं के जीवन की दास्तान , औरत की मानसिकता व तकदीर को वे इतनी अच्छी तरह से समझते हैं कि साहित्य जगत के लोग उन्हें महिला को समझने वाले व महिला की भावना को बड़ी बेहतरीन रूप से श्रृंगार करने वाले सबसे श्रेष्ठ पुरूष लेखक मानते हैं। इस पर बोलते हुए उन्होंने कहा मेरी रचनाओं में महिला जीवन से संबंधित रोमांचित घटनाएं हैं। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि मैं भी एक अक्सर उदासी में खोया हुआ पुरूष हूं, मैंने पुरूष से संबंधित इस तरह के उपन्यास लिखे हैं, पर लोगों ने उन्हें पसंद नहीं किया, जबकि महिला की उदासी मन भावना को दर्शाने वाले उपन्यास को तो लोगों ने बड़ा पसंद किया। सच बताओं , मैं जब भी महिला पर कुछ कहानी लिखना शुरू करता हूं तो अपने को काबू में नहीं रख पाता। लेकिन मेरी पत्नी अक्सर कहती हैं कि मैं औरतों को नहीं समझता, मैं अपनी पत्नी तक को समझ नहीं पा सकता तो कैसे औरत को समझ सकूंगा।
लेखक सूथुंग की नवीन गद्य कविता 《नदी का राज》 में उन्होंने एक बीती याद को दोहराते हुए बचपन के जीवन को दर्शाया है। इस गद्य कविता में उन्होंने अपने कलम के पूरे राज को खुलासा कर दिया। वास्तव में महिला के प्रति जो बुनियादी समझ मिली है वे लेखक सूथुंग के बचपन की यादें व अनुभव तथा उभरते विचारों का ही वर्णन हैं। गद्य कविता पुस्तक में आधे से ज्यादा पन्नों में उन्होंने अपने बचपन के जीवन की यादों का वर्णन किया है, जहां पर विभिन्न महिलाओं की परछायी उभरकर उनके दिमाग में छायी हुई है । इन महिला हस्तियों में कुछ सितार वादक , शिक्षक या तो टेलर व दुकानदार जैसे निचले स्तर की महिलाएं प्रमुख रही हैं। इन हस्तियों की जीवनी , लेखक सूथुंग के उपन्यास की महत्वपूर्ण जागीर रही हैं।
लेखक सूथुंग ने कहा कि बचपन का जीवन हमारे शरीर में पलता रहा और आगे बढ़ता रहा है , इसलिए बचपन का जीवन मेरे उपन्यास का सबसे बड़ा राज है। अन्य मुझे कुछ मां के प्रभाव से मिला है। उनकी मां उस समय मौहल्ले कमेटी की नेता थीं, रोजाना वे मौहल्लों की छोटी-मोटी बातों को निपटाने में पागल रहती थीं। इस तरह के माहौल में पल बड़े होने की वजह से बहुत सी शहरों की कहानियां, उस जमाने के वातावरण से संबंध रखने वाली अनेक छाप, अनेक सालों के बाद भी एक नए रूप में मेरी किसी एक उपन्यास कहानी की साहित्य छवि बनी रही है।
लेखक के उपन्यास लिखने का अन्य एक राज विभिन्न किताबें पढ़ना है। लेखक सूथुंग ने बचपन से ही उपन्यास लिखना शुरू कर दिया था, अब तक वे एक लाख शब्दों वाले उपन्यास लिख चुके हैं, इन में उनके प्रतिनिधित्व उपन्यासों में 《बगान का माली》, 《लाल पाउडर》, 《बीवी महबूबा की भीड़》, 《शादीशुदा पुरूष》 तथा 《तलाक निर्देशन》 आदि रचनाएं शामिल हैं। विशेषकर 《बीवी महबूबा की भीड़》 नाम उपन्यास में उनकी शैली को बड़ी अच्छी तरह दर्शाया गया है। उन्होंने मन भावना की बातों का जो जिक्र किया , वे उनकी उपन्यास की एक अदभुत शैली बन गयी है। बहुत से उत्तरी चीन के लेखकों का कहना है कि लेखक सूथुंग के उपन्यास में फैस पाउडर व औरत की सुगंध बड़ी तेज है। इस पर सूथुंग ने हमें बताया उपन्यास लिखते समय आदमी एक अनोखे परिस्थिति में गुम हो जाते हैं। औरत हो या मर्द सभी मनुष्य हैं, अपनी स्थिति के मुताबिक उनकी परिस्थिति भी अलग-अलग होती है। मैं इन दोनों पर उपन्यास लिखना चाहता हूं। लेकिन मैं इस पर ज्यादा खुश होता हूं जब कोई महिला मुझे बताती है कि मैंने अपने उपन्यास में महिला की मन भावना को बड़ी बेहतरीन रूप से दर्शाया है। मुझे ये सुनकर खुशी महसूस होती है। असल में मैं केवल महिला को अपने उपन्यास का मात्र पात्र नहीं बनाना चाहता हूं, उपन्यास के कुछ पन्नों में पुरूष की दृष्टि से महिला को आंका जाता है। हाल ही की मेरी एक उपन्यास में पूरी तरह एक पुरूष की मानसिकता को निखारा है, उपन्यास बाप बेटे की मर्मस्पर्शी कहानी पर आधारित है।