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तालियों की आवाज स्वर्ण पदक से अधिक मूल्यवान
2010-12-14 16:48:23
वर्ष 2010 एशियाई पैरा गेम्स दक्षिण चीन के क्वांगचो शहर में धूमधाम से चल रहे हैं। कई स्टेडियम दर्शकों से भरे हुए नज़र आ रहे हैं । उत्साहपूर्ण क्वांगचो वासी तालियों से विकलांग खिलाडियों की वाहवाही करते हैं ,जिससे विभिन्न देशों व क्षेत्रों के खिलाडियों पर गहरा प्रभाव पडा है।

13 दिसंबर की सुबह क्वांगचो ऑलंपिक केंद्र के तैराकी स्टेडियम में पुरुषों की 400 मीटर फ्री स्टाइल तैराकी एस नौ वर्ग की तीव्र स्पर्द्धा चल रही थी । क्योंकि मुकाबला इस पैरा एशियाड के पहले स्वर्ण पदक विजेता के लिए हो रहा था, इसलिए स्टेडियम में माहौल सरगर्म था और दर्शकों की तालियों की आवाज गूंज रही थी ।अंत में 19 वर्षीय जापानी खिलाडी यामाडा टाकुरो ने स्वर्ण पदक जीता ,जबकि चीनी खिलाडी वांग चाइ चाओ को दूसरे स्थान पर रहना संतोष करना पडा । पर दर्शकों के उत्साह ने उन पर गहरा प्रभाव डाला । उन्होंने हमारे संवाददाता को बताया ,स्टेडियम में प्रतियोगिता का माहौल बहुत अच्छा है ।पहले मैं बहुत शांत था ।जब मैंने मैच स्थल पहुंच कर उत्साहपूर्ण दर्शक देखे ,तो मैं उनसे प्रभावित हो गया और अचानक उमंग पैदा हो गयी। मैं दर्शकों की तालियों के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं ।

चिकित्सक दर्जे के मुताबिक एक बांह वाले वांग चाइ चाओ एस 8 वर्ग के हैं ।पर इस पैरा एशियाड में एस 8 पुरुष 400 मीटर तैराकी की प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाडी बहुत कम हैं ,इसलिए एस 8 वर्ग के खिलाडियों को एस नौ दर्जे की प्रतियोगिता में भाग लेना पडा । पर एस नौ दर्जे के खिलाडी की विकलांग स्थिति एस 8 दर्जे के खिलाडियों की तुलना में कुछ हद तक हल्की है ।प्रतियोगिता में वांग चाइ चाओ ने पूरी कोशिश की ,पर अंत में जापानी खिलाडी यामाडा टाकुरो से हार गये ।ऑलंपिक व एशियाड में मेजबान के दर्शकों को शायद अपने खिलाडी का पहला स्वर्ण पदक खोने पर थोडी निराशा थी ,लेकिन पैरा एशियाड में दर्शक इस पर ध्यान नहीं देते ।उनकी नजर में प्रतियोगिता में भाग लेने वाला हरेक खिलाडी बेहतरीन है। स्टेडियम में यह मैच देखने वाले ह्वांग चंग फंग ने बताया ,हम इसको ज्यादा महत्व नहीं देते कि कौन चैंपियन बनेंगे और कौन रन अप होंगे ।हर विकलांग खिलाडी की अपनी संघर्ष की कहानी है ।मुझे लगता है कि विकलांग खिलाडियो में हमें प्रेरित करने की भावना है। खेल मैदान पर मौजूद प्रत्येक खिलाडी चैंपियन है।

यामाडा टाकुरो पुरुषों की चार सौ मीटर फ्री स्टाइल तैराकी के एस नौ दर्जे के एशियाई रिकार्ड धारक हैं । उस दिन उन्होंने आसानी से 4 मिनट 38.71 सेकेंड से चार सौ मीटर तैरकर पैरा एशियाड का पहला स्वर्ण पदक जीता ।मैच के बाद उन्होंने बताया कि दर्शकों ने उनमें शक्ति डाली ।उन्होंने कहा ,तैरने के दौरान मुझे दर्शकों की तालियां व वाहवाही सुनाई दी ।मुझे लगता है कि स्टेडियम का माहौल बहुत अच्छा रहा ।उनके उत्साह से मुझे प्रेरणा मिली ।

विकलांग दोस्तों के लिए सामाजिक मान्यता तरस व मदद से अधिक मूल्यवान है । इसी कारण कई विकलांग खिलाडियों की नजर में दर्शकों की तालियां स्वर्ण पदक से अहम है । 19 वर्षीय यामाडा टाकुरो वर्ष 2004 से अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने ले रहे हैं। उस साल 13 वर्षीय यामाडा टाकुरो ने एथेंस पैरा ऑलंपिक में भाग लिया ,जो जापान के इतिहास में पैरा एशियाड में भाग लेने वाले सबसे युवा खिलाडी बने। उन्होंने हमारे संवाददाता को बताया कि हर मैच में वे दर्शकों की तालियों को अपनी प्रशंसा के तौर पर देखते हैं और यह उनकी शक्ति का स्रोत है ।उन्होंने आशा जताई कि उनके अच्छे प्रदर्शन से अधिक से अधिक विकलांग दोस्तों को अपना सपना पूरा करने का साहस मिलेगा ।उन्होंने कहा ,मुझे उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेरे अच्छे प्रदर्शन से मुझ जैसे कई विकलांग दोस्तों को अद्मय भावना व संघर्ष करने की शक्ति मिलेगी ।मुझे उम्मीद है कि अधिकाधिक विकलांग दोस्त खेल में भाग लेंगे और समाज का समर्थन व मान्यता महसूस होगी।

क्वांगचो पैरा एशियाड में न सिर्फ तैराकी स्टेडियम में दर्शकों की स्थिति संतोषजनक है ,निशानेबाजी ,वेट लिफ्टिंग ,मैदान साइकलिंग ,बैडमिंटन व अन्य खेलों के आयोजन स्थलों पर 70 से अधिक सीटें भरी हुई हैं ।वालिबाल व ह्वील बास्केटबाल के स्टेडियम दर्शकों से भरे हुए हैं। विकलांग खिलाडियों व दर्शकों के बीच समानता है ।

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