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युवा निर्देशक सुन श्येन और उसकी पहली पक्षी कहानी पर आधारित चीनी फिल्म "भगवान की देन"
2010-11-29 16:30:45
इस साल की अगस्त को जर्मनी में आयोजित चौथे जर्मन खेलोंग फिल्म उत्सव में चीन के शानतुंग प्रांत के वएहाए शहर से आए युवा निर्देशक ने मीडियाओं का भारी ध्यान खींचा। युवा निर्देशक सुन श्येन ने पक्षी को अभिनेता के रूप में दर्शाए जाने वाली पहली चीनी फिल्म को इस फिल्म उत्सव में शामिल किया , जिस ने इस फिल्म उत्सव में सबसे मनपसंद फिल्म पुरस्कार बटोरने में सफलता हासिल किया। इस अभूतपूर्व विजय ने लोगों को आश्चर्य-चकित में डाल दिया।

चौथे खेलोंग फिल्म उत्सव का मुख्य शीर्षक रखा गया है, इस का मकसद पिछले दो सालों की चीनी फिल्मों के विकास पर आदान प्रदान व अध्ययन करना है, फिल्म आयोजन कमेटी को चीन के 100 से अधिक विविध फिल्मों का निवेदन मिला है। अन्य फिल्म उत्सव से विभिन्न , इस फिल्म उत्सव में केवल ज्यूरी कमेटी पुरस्कार व दर्शकों की सबसे मनपसंद फिल्म पुरस्कार निश्चित किए गए हैं। आयोजन कमेटी के सभी सदस्य यूरोप के मशहूर फिल्म विशेषज्ञ हैं। तीव्र प्रतिस्पर्धा के बाद आखिर में दर्शकों की सबसे मनपसंद फिल्म पुरस्कार चीनी फिल्म को सौंपा गया, उसके निर्देशक सुन श्येन भी पुरस्कार समारोह के सबसे ध्यानाकर्षक हस्ती बने।

फिल्म दिखाने के बाद जर्मन दर्शकों ने उक्त फिल्म और उसके निर्देशक के प्रति अभूतपूर्व स्नेहपूर्ण भावना दिखाई। उन्होंने फिल्म निर्देशक सुन श्येन को घेर कर फिल्म के पीछे की अधिक रोमांचक कहानी पर अनेक प्रश्न पूछें। निर्देशक सुन श्येन ने कहा

हमारा सबसे कठिन सवाल पक्षियों के इतनी तेजी से उड़ने की गति को किस तरह अपने कैमरे में डालना रहा है। वन्य स्थलों में तो इन दृश्यों को कैमरा में उतारना कहीं ज्यादा मुश्किल था, पल भर में पक्षी इधर से उड़कर दूसरे द्वीप में जा पहुंचते थे। पक्षी तो हमारी कहां सुनते हैं, हमने तो असली वन्य पारिस्थितिकी में फिल्म की शूटिंग की है , सो आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि हमे शूटिंग में कितनी मुसिबतें झेलनी पड़ी थीं। एक सांप के नन्ही चिड़िया पर वार करने की फिल्म शूटिंग को ही लीजिए। इस शूटिंग के लिए हमारे तीन कैमरों ने 15 दिनों तक का इन्तेजार किया, तभी जाकर इस नजारे को आज की फिल्म में दिखाया जा सका है। जबकि इस शूटिंग में सिर्फ चन्द सैकंड ही लगे थे। फिल्म सेन्सर के बाद हमारी फिल्म केवल 80 मिनट ही बची, जबकि हमने शूटिंग में 500 से अधिक घन्टें लगाए थें और इस फिल्म को निर्मित करने में सात साल का समय लगा था।

भगवान की देन चीन की पहली पक्षियों से संबंधित फिल्म हैं। फिल्म में पक्षी द्वीप के प्राकृतिक नजारे को हमने पृष्ठभूमि बनाकर दुनिया के अन्य द्वीपों से अलग एक अकेले द्वीप के काली पूंछ सीगल पंछी की जीवन संघर्ष से जुड़ी एक दिल दहलाने वाली मर्मस्पर्शी कहानी निर्दिष्ट की है। सीगल पंछी के जन्म होते ही वह एक चट्टान में फंसा रहा, उसकी मां ने अपनी जान को खतरे में डालकर उसकी जान बचा ली। कुछ समय बाद उसके पिता समुद्र में मछली पकड़ने वाले कांटे में जा फंसे और तब से कभी घर वापस नहीं आए। बड़े भाई को सांप ने डस दिया और दूसरा बड़ा भाई भी सांप का शिकार हो गया। और तो और बना बनाया घर को दुष्ट पक्षी ने छीन लिया, बेचारा अनाथ बच्चा अपनी मां को पुकारता दिन भर रोता रहा और आंसुओं की नदी में डूबता अकेले बढ़ा होता गया। उसने सभी ताकत से उड़ने का अभ्यास शुरू कर दिया, दूसरी बार लगभग अपनी जान खो देने के एन समय पर उसकी मां आ पहुंची, उसने अपनी जान पर खेल कर बच्चे की जान बचा ली। परन्तु मां इस बार बड़ी बुरी तरह घायल हो गयी, सूरज की अन्तिम किरणों के डूबने के समय उसने चटटान के नीचे छलांग लगा दी और अपने बेचारे बच्चो को अकेला छोड़कर हमेशा के लिए दुनिया से चल बसी। नन्हे काली पूंछ सीगल ने अपनी किस्मत पर निर्भर रह कर जीवन के साथ कठोर संघर्ष करना शुरू कर दिया।

सीगल पंछी के पलने बढ़ने की आत्म कहानी को लेकर निर्मित इस फिल्म के दृश्य अत्यन्त सुन्दर और पटकथा दुखद व मर्मस्पर्शी हैं, जो लोगों के मन भावना को हिला देती है। अन्तर्राष्ट्रीय वृत्तचित्र के महा गुरू, उक्त फिल्म उत्सव के ज्यूरी वोल्खर नोवाक ने फिल्म की भूरि भूरि प्रशंसा की। इस फिल्म को वृत्तचित्र के तरीके से शूटिंग करना पर उसे एक कहानी फिल्म की तरह रचने का तरीका, फिल्म निर्मित दौर में किया गया एक अभूतपूर्व योगदान और सृजनात्मक कदम है।इस फिल्म उत्सव की सबसे बढ़िया फिल्म हैं। अपनी फिल्म निर्मित के उद्देश्य पर बोलते हुए निर्देशक सुन श्येन ने कहा

पहले हम एक वृत्तचित्र वाली किस्म की फिल्म निर्मित करना चाहते थे, शूटिंग का समय लगातार बढ़ता रहा। हमारे पास कोई पटकथा नहीं थी, आखिर हमने फिल्म में कहानी ढूंढने का प्रयास किया, हमारा फिल्म निर्मित करने का तरीका अन्य फिल्मों से बिल्कुल अलग है। हमने शूटिंग से मिली विभिन्न प्रकार की कारकों से एक कहानी तैयार कर पटकथा लिखी , इस से पहले हमने कहानी आधार वाली फिल्म निर्मित करने पर थोड़ा भी सोचा नहीं था।

फिल्म की शूटिंग पर 70 लाख से अधिक चीनी य्वान का खर्चा हुआ, शूटिंग के दौरान खर्चे की कमी के कारण अनेक बार शूटिंग को रूकना पड़ा। उक्त फिल्म के तीन पटकथा लेखक आम मजदूर व किसान के परिवारों से आए हैं। निर्देशक सुन श्येन बारहवीं क्लास से उत्तीर्ण होने के बाद, उन्हें शांगतुंग प्रांत के छीफू नार्मल कालेज के तेल चित्र विषय में प्रवेश मिला। तीन युवा फिल्म निर्माता पेशावर फिल्म कालेजों से स्नातक हुए हैं, इस के साथ उन्हें फिल्म दिखाने का अनुभव भी हासिल हैं। कई हजार फिल्मों को दिखाने के अनुभवों ने उनको इस फिल्म के निर्माण के लिए बेहतरीन तजुर्बा प्रदान किया। बचपन से पक्षी पर लगाव रखने वाले सुन श्येन को बढ़े होने के बाद पक्षियों पर एक फिल्म तैयार करना, उनकी एक चिरपोषित ख्वाईश रही है। जब जब वे टीवी में जन्तु की दुनिया नाम की फिल्म देखते थे तो अपने से पूछते रहते थे कि चीन का अपना जन्तु की दुनिया टीवी फिल्म क्यों नहीं हैं । इसी जिज्ञासु व उत्सुकता ने उन्हें फिल्म तैयार करने के लिए प्रेरित किया, उन्होंने पक्षी को मुख्य अभिनेता बनाने की ठान ली, लेकिन भला पक्षी थोड़े ही निर्देशक की बात सुनते हैं। इस पर बोलते हुए निर्देशक सुन श्येन ने कहा

फिल्म शूटिंग के समय हम अपने बदन को चटटान के साथ बांधते थे , क्योंकि पक्षी चटटान की चोटी पर रहते हैं, सच पूछिए , हमारा शूटिंग कैमरा चटटान पर लटका रहता था। कभी तो चटटान के नीचे गिरने का खतरा बना रहता था, अप्रत्यशित घटना से बचने के लिए हम अक्सर अपने बदन व कैमरा को चटटान के साथ कस कर बांध लेते थे। रोजाना पूरे दिन चटटान पर लटके रहना पड़ता था, रोज रोज इस तरह के काम करने के बाद हम थक कर चूर हो जाते थे, और तो और चोट का खतरा बराबर बना रहता था। आज तक भी हमारे बदन में जख्मों के दाग जैसे के तैसे हैं। हम 30 से अधिक द्वीपों में जा चुके हैं, इन द्वीपों की अपक्षय चटटान खासकर बड़ी खतरनाक होती है, कभी भी हो सकता है चटटान के टुकड़े टूट कर हमपर वार करें और हम खायी जा गिरें, इन खतरों को झेलने की हिम्मत व शक्ति अलबत्ता हमारे पास तो है, पर इस से लगी चोटें तो कभी भी खतम नहीं हुईं। इस के अलावा, मच्छरों व किस्म किस्म के कीड़ों के काटने का दर्द भी सहना पड़ता है। आकाश से शूटिंग करने के समय चटटान से टक्कर खाने का खतरा बना रहता है, ऊंची चट्टानों पर हैलीकोप्टर के अचानक उपर या नीचे उतरने से हमें कभी कभी अपने को संभाला मुश्किल हो जाता था, हमारी भय की सीमा नहीं रहती।

निर्देशक सुन श्येन ने अपने अनुभव का निचोड़ करते हुए कहा कि हमने समुद्र के अकेले द्वीप पर काली पूंछ सीगल पंछी की शूटिंग में सात साल से अधिक समय लगाए हैं, जबकि काली पूंछ सीगल पंछी को इस द्वीप में पीढ़ी दर पीढ़ी रहते हुए कई हजार साल हो चुके हैं। सात साल तक की कम दूरी से काली पूंछ सीगल पंछी की दुनिया से नजदीकी से संपर्क रखने से हमें जीव जन्तुओं के प्रति सम्मान व गौरवता महसूस होने लगी है। पक्षियों का कठोर जीवन व उनका बड़ा कमजोर प्राण जीवन ने उनकी वीरता का प्रदर्शन किया हैं, सचमुच जीवन एक सौन्दर्य चित्र हैं। उन्होंने कहा

मैं कहना चाहता हूं कि हालांकि शूटिंग पूरी असली हैं तो भी सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम इस फिल्म से जीवन के दौर को दुनिया के आगे दर्शाना चाहते हैं। इस फिल्म में दृढ़ निश्चय व पर्यावरण संरक्षण के विचार की तीव्र विचारधारा दिखायी गयी है। मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि फिल्म की कहानी का आरम्भ व अन्त प्राकृतिक दुनिया से जुड़ा रहा है, यह वाकई हमारे विचार के अनुरूप है और इस की सफलता भी एक भरपूर फसल है। उक्त फिल्म माता पिता अपने बच्चों के साथ देखने के लायक है, जो बच्चों को जीवन संघर्ष के उत्साह को जागरूक करने में मददगार सिद्ध होगी, एक छोटे से पक्षी द्वीप से हम और आप दुनिया की सच्चाई को नजदीकी से समझ सकते हैं।

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