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गीत के स्वरों को फूलों की खूबसूरती से निखारा जा रहा है
2010-10-26 11:58:26
हरेक पहाड़ी गीत एक प्रेम जीवनी का वर्णन है, उसके हर वाक्यों में एक इतिहास का परिचय है, हर एक गायक की अपनी एक निराली कहानी भी गीतों में सम्मलित हैं। यह उत्तर पश्चिम चीन में पिछले 600 सालों से गाया जा रहा एक पहाड़ी गीत है, इस गीत ने दुनिया के लोगों के आगे विभिन्न जगहों की जातीयों के जीवन की रंगबिरंगी जीवनी को दर्शाया है, चायना रेडियो इन्टरनेशनल द्वारा राष्ट्रीय दिवस के दौरान प्रसारित संगीत कार्यक्रम में फूल क्यों इतना लाल है नामक गीत ने अपनी मधुर आवाज में उत्तर पश्चिम चीन की फूल जैसी खूबसूरती को बड़ी मधुरता से निखारा है।

उत्तर पश्चिम चीन के इलाकों में फूलों की छांह के नाम वाला यह लोक गीत है लोगों में बहुत लोकप्रिय है। स्थानीय लोगों ने कहा है कि उन्होंने इस गीत में अपने दिल की बात कही है। चीन के कानसू, लिंगश्या और छिंगहाए प्रांतों व प्रदेशों में चाहे पठार के चरवाहे लोग हो, या तो पीली नदी के पतवार या खेत में खेती कर रहे किसान, सभी लगभग इस गीत को अपने शब्दों में बड़ी सरलता से गा सकते हैं।

ऊंचे पहाड़ पर चढ़कर फिंग छुआन मैदान का दृश्य देखना के नाम वाला जो गीत सुना है उनके गीतकार वास्तव में एक मामूली किसान ही है। उनका नाम है खुंग का चा, गीत के बोल हैं – एक युवा चरवाह पर्वतमालाओं की गोद में अपना गला खोलकर गीत गा रहा है, वे गीत के स्वरों से अपनी प्रमिका की याद की भावना को पहाड़ों को सुना रहा है। उसने हमें बताया बचपन में फूलों की छांह गीत ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था , मैं बहुत जल्दी ही इस गीत को पसंद करने लगा और उसे गुनगुनाने लगा।

खुंग का चा का जन्म उत्तर पश्चिम चीन के कानसू प्रांत में हुआ था, छुटपन से ही वे फूलों की छांह गीत के दिवाने थे। उन्होंने कहा कि चाहे खुशी हो या गम, वे बेखुदी में इस गीत को गाने लगते हैं। 12 वर्ष की आयु में खुंग का चा अपनी माता के साथ पहाड़ को पार कर गीत समारोह में भाग लेते आये हैं, इस तरह वे धीरे धीरे फूलों की छांह गीत को छुटपन से गुनगुनाने लगे, बाद में हिम्मत कर उसने खेती के काम को छोड़कर एक ओडियो की दुकान खोल दी, अपनी दुकान में उसने विशेषतौर पर फूलों की छांह गीत के डिस्क तैयार किए। ओडियो दुकान ने बहुत से लोगों को आकर्षित किया और इस दौरान उसने फूलों की छांह गीत के प्रमियों के साथ दोस्ती भी बढ़ायी। खुंग का चा की अगुवाई में सीयांगयांग फूल कला मंडली की स्थापना हुई। खेती के अवकाश में वे प्रांत के विभिन्न गांवो व कस्बों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे, जहां जहां वे गए लोगों ने उनका बढ़ चढ़कर स्वागत किया, तब से खुंग का चा नाम जगह जगह रौशन होने लगा। लेकिन वे इस पर संतुष्ट नहीं थे। 35 वर्ष की आयु में कब से अपने गांव से इस गीत को पूरे देश में ले जाने की लम्बी अभिलाषा को पूरा करने की उम्मीद लिए, खुंग का चा ने मौक को पकड़कर चीनी राष्ट्रीय टीवी केन्द्र में आयोजित गीत प्रतियोगिता में भाग लिया और पश्चिम क्षेत्र की प्रतियोगिता में पहला स्थान जीता। खुंग का चा ने कहा कि उनका एक सपना है कि फूलों की छांह गीत को अमरीका के पोप गीतकार माइकल जैक्सन की तरह लोकप्रियता दिलायी जाए। उन्होंने कहा

एक तरफ मैं अपनी रूचि बढ़ा सकता हूं और अपने सपने को साकार कर सकता हूं, दूसरा, फूलों की छांह गीत को पूरे देश में पहुंचाये जाने की आशा को भी मूर्त रूप दिया जा सकता है। सच पूछिए तो मैं चीन में फूलों की छांह के गीत का राजा बनना चाहता हूं और पूरे चीन में इस गीत की नयी पहचान बनाना चाहता हूं।

उत्तर पश्चिम चीन इलाके में खुंग का चा जैसे फूलों की छांह गीत के प्रमी बेशुमार हैं। चीन और विदेशों के बीच सास्कृतिक आदान प्रदान के बढ़ते वे चाहते हैं कि फूलों की छांह गीत को केवल उत्तर पश्चिम चीन में ही नहीं बल्कि पूरे चीन में यहां तक कि दुनिया की कला मंच तक ले जाया जाए।

उत्तर पश्चिम चीन के छिंगहाए प्रांत के साला जाति की गीतकार सू फिंग न केवल फूलों की छांह गीत गाने में उनकी अपनी विशेष शैली है बल्कि आज अपनी 70 वर्ष की ऊंची आयु में भी वे कला मंच में पहले की तरह प्रफुल्लित हैं। जब वे जवान कन्या थीं तो उनकी मधुर गीत गांववासियों की मनपसंद आवाज थी। इस के बाद अपनी अतुल्य कलात्मक शैली के बल पर उन्होंने पेशावर गायिका का जीवन शुरू किया। एक लम्बी गायिका की जिन्दगी में सुश्री सू फिंग ने फूलों की छांह गीत को अपनी सुरीली आवाज में गीत की असलीयत को बरकरार रखने के साथ उसमें आधुनिक संगीत कारकों को भी सम्मलित किया। उनकी आवाज में गाया फूलों की छांह गीत की अनोखी शैली ने अफ्रीकी, एशियाई और यूरोपीय संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया। जनवादी कोरिया में इस गीत को गाने के समय उन्होंने विशेषतौर पर कोरिया के लम्बे ढोल की ताल को गीत में समाया, पूरे हाल में धमाका मच गया लोगों ने गड़गड़हाट तालियों से उनके गीत का भारी स्वागत किया। जनवादी कोरिया के सर्वोच्च स्वर्गीय नेता किम ने उन्हें फूलों की रानी की उपाधि से सम्मानित किया। सुश्री सू फिंग ने कहा कि उनके गीत को इसलिए भारी सफलता मिली है क्योंकि उन्होंने परम्परागत और आधुनिक कारकों के मिलन को बड़ी शानदार से दर्शाया है, इस के साथ बहुत से देशों व क्षेत्रों की संगीत खूबियों को भी इस में सम्मलित किया गया है। उनका मानना है कि इसी तरह ही फूलों की छांह नामक गीत को नयी जीवन शक्ति हासिल हो सकती है। सू फिंग ने कहा विभिन्न जातियों की लोक कला की अपनी अपनी शैलियां हैं, जिस ने हमारे गीत में नयी जान डाली है, मेरे गीत में भारतीय लोक संगीत के कारक भी शामिल हैं। जब आप इतनी खूबियों को एक गीत में डालते हैं तो इस गीत के संगीत में आप की अपनी शैली व खूबी का अन्दाजा देखा जा सकता है।

अलबत्ता , आज फूलों की छांह नामक गीत के गायकों व गायिकाओं को केवल परम्पारिक गीत शब्दों को दोहराना काफी नहीं है, बहुत से गायकों व गायिकाओं ने युंग की विशेषता के मुताबिक फूलों की छांह गीत के साथ गहरी स्थानीय विशेषता संपन्न की हैं। अभी आप ने जो गीत सुना वे लिंगश्या हुए जातीय स्वायत्त प्रदेश के गीत सम्राट चांग च्येन चिन की खुद की रचना थी। गीत के बोल में विशाल पश्चिम चीन के विकास की पृष्ठभूमि तले युवा की ऊंची भावना को दर्शाया है और अपने गांव के जीवन के सौन्दर्य जीवन की आशा को प्रतिबिंबित किया है।

वर्तमान 50 वर्षीय आयु में प्रवेश कर चुके गीतकार चांग च्येन चिन गीतों की रचनाओं के प्रतिभाशाली गायक हैं। नवम्बर 2006 में उनका फूलों के भईया नाम के गीत समेत सभी लोक गीतों को ही उन्होंने खुद ही रचा है। उनके द्वारा जारी व प्रसारित अपने गीतों के डिस्कों की संख्या 1 लाख 60 हजार तक जा पहुंची है, उनके गीतों ने लोगों पर भारी प्रभाव छोड़ा है। श्री चांग च्येन चिन ने कहा है कि नये युग की पुकार तले गीत को नयी शैली का रूप प्रदान कर मार्डन जमाने के लोगों की मनपसंद को आगे ले जाना हमारा फर्ज है। उन्होंने कहा,मैंने जो रचनाएं रची हैं उनमें फूलों से भरी जातीय संगीत शामिल हैं, ये युग की मांग है, इन में आधुनिक संगीत डालने के साथ उसके असली फूलों की सुगंध को भी बरकरार रखा है, तभी तो हमारे परम्पारिक गीत संगीत नयी पीढ़ी को स्वीकार हो रही है।

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