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अर्दोस के किसान व चरवाहे मकबरों का पालन करने से समृद्ध बने
2010-10-19 16:57:29
भीतरी मंगोलिया के अर्दोस शहर की ईचीनह्वोल्वो छी काऊंटी इतिहास में एक बहुत समृद्ध स्थल था, लेकिन बाद में अति विकास व चरवाहागिरी से पिछली शताब्दी के मध्य में वहां तेज़ हवा और रेतीली भूमि ज़्यादा दिखाई पड़ी । पारिस्थितिकी का निपटारा करने के लिए इस शताब्दी की शुरूआत में ईचीनह्वोल्वो छी ने चरवाहों को निश्चित घास मैदान में पशु पालन करने को प्रोत्साहित किया। अब किसानों व चरवाहों ने न केवल नये जीवन तरीके को अपना लिया है, बल्कि भेड़ पालन के नये तरीके से वे समृद्ध भी बन गए हैं। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को कई किसानों व चरवाहों के परिवार में ले चलेंगे और उन के स्थानांतरण के बाद के जीवन के बारे में जानकारी देंगे।

40 की उम्र से ज़्यादा हैन फींग पहले घास मैदान में एक चरवाहा था, स्थानांतरण से पहले के कई वर्षों में घास मैदान के क्षेत्रफल में कमी आने की वजह से भेड़ों के चारे के अभाव की समस्या उत्पन्न हुई। हैनफींग एवं उस की पत्नी रोज़ दसियों घंटे भेड़ों को लेकर चारे की तलाश करते । वर्ष 2000 से गांव में घास मैदान को बरकरार रखने की नीति अपनानी शुरू की गई। हैन फींग के घर के पास का घास मैदान चरागाह पाबंदी क्षेत्र बना। उन्हें विवश होकर रात को भेड़ों को घास मैदान भेजना पड़ता और बहुत मुश्किल से जीवन बिताना पड़ रहा था।

उस समय मैं रोज़ भेड़ों को बाहर भेजता था। सुबह बाहर जाता था और रात को वापस लौटता था। मेरे घर में 100 से ज़्यादा भेड़े हैं। उस समय घास मैदान में रेत की स्थिति बहुत गंभीर थी। एक वर्ष में मैं केवल 10 हज़ार से ज्यादा चीनी य्वान कमा पाता था। भेड़ें रोज़ कम से कम 12 से 13 घंटों तक चारा चरती थीं। उस समय आदमी थक जाते थे और भेड़ें भी थक जाती थीं। 2000 में हमारे यहां घास मैदान में भेड़ें भेजने पर पाबंदी लगायी गयी, इसलिए, हमें केवल रात को भेड़ों को घास मैदान में भेजना पड़ता था। उस समय भेड़ें सुबह कुछ नहीं खाती थी, केवल रात को चरती थीं।

वर्ष 2007 में ईचीनह्वोल्वो छी काऊंटी ने सूबूर्गा कस्बे में उत्प्रवासियों के नए गांव की स्थापना की गयी। हैन फींग के परिवार ने 90 से ज्यादा वर्ग मीटर वाले नये मकान में रहना शुरू किया। भेड़ें रखने के लिए आंगन में बीसियों वर्ग मीटर वाला स्थल भी मिला। किसानों व चरवाहों को सुविधा देने के लिए नए गांव में खास तौर पर 660 से ज़्यादा हैक्टर वाले घास मैदान की स्थापना की गई और किसानों व चरवाहों को भत्ता भी दिया गया। इस से न केवल भेड़ों के चारे के स्रोत की गारंटी मिली, बल्कि किसानों व चरवाहों के भेड़ों का पालन करने के खर्च में भी कटौती आयी। हैन फींग की पत्नी यांग माओछीन ने कहा कि अब वह रोज़ केवल बहुत कम समय में ही भेड़ों को चारा खिला सकती है। उस के पास पर्याप्त समय रहता है। जबकि हैन फींग बाहर जाकर व्यापार करते हैं। सुश्री यांग माओछीन ने कहा,

रोज़ मैं तीन बार भेड़ों को चारा खिलाती हूं और कुल मिलाकर केवल ढाई घंटे लगते हैं। जबकि पहले मैं पूरे आधा दिन भेड़ों को चारा खिलाती थी। अब फुरसत के समय मैं घर का काम करती हूं और कढ़ाई करती हूं। पहले की तुलना में अब हम आरामदेह जीवन बिताते हैं और ज़्यादा कमाते हैं।

हाल में सूबूर्गा कस्बे के उत्प्रवासियों के नए गांव में हैन फींग की तरह 180 परिवार हैं। वे विस्तृत घास मैदान के बजाए निश्चित घास मैदान में भेड़ों को चारा खिलाते हैं और स्थिर व सुखी जीवन बिता रहे हैं। वास्तव में लोगों का स्थानांतरण करना आसान बात नहीं है। अनेक किसान व चरवाहे पीढ़ी दर पीढ़ी घास मैदान में रहते आए हैं और स्वतंत्र रूप से चरवाहा जीवन बिताते रहे हैं। शहरी जीवन के प्रति वे परिचित नहीं हैं। लेकिन, कई सालों के बाद किसानों व चरवाहों के जीवन में भारी परिवर्तन आया है। सूबूर्गा के किसान ल्यू फ़ेईल्यांग ने हमें बताया,

क्यों पहले कुछ लोग घास मैदान से स्थानांतरित नहीं होना चाहते थे? कारण यह है कि हमारे पास ज्ञान नहीं था। हमें पता नहीं था कि स्थानांतरण के बाद हमारा जीवन कैसा होगा। अब हमें मालूम है कि यह अच्छी बात है। पिछले कई वर्षों की तुलना में अब हम और ज़्यादा कमा सकते हैं। हमारे यहां लगभग हर एक परिवार में कश्मीरी बकरों का पालन किया जाता है।

कश्मीरी भेड़ सूबूर्गा कस्बे द्वारा इस नए गांव में प्रसारित की गयी भेड़ों की एक किस्म है। भीतरी मंगोलिया के बाजार में यह बहुत प्रचलित है, और चीन के शैनशी व गैनसू आदि स्थलों में भी बेची जाती है। ल्यू फेईल्यांग ने कहा कि कश्मीरी भेड़ों ने सच्चे माइने में स्थानीय किसानों व चरवाहों को लाभ पहुंचाया है। उस के अनुसार,

पहले हम सामान्य भेड़ों का पालन करते थे और उन से हासिल ऊन से कम लाभ मिलता था। एक वर्ष की मेहनत के बाद एक भेड़ से केवल 100 य्वान मूल्य की ऊन ही मिल पाती थी। लेकिन, अब एक भेड़ पर रोज़ केवल 1 व्यान का खर्च आता है, और उस से हासिल ऊन से कमाई बहुत ज्यादा है। एक किलोग्राम ऊन 80 चीनी य्वान में बिकती है। एक भेड़ एक वर्ष में दो बच्चों को जन्म देती है, और एक बच्चा बेचने से लोग कम से कम 2000 चीनी य्वान कमा सकते हैं।

फिलहाल सूबूर्गा कस्बे के नए गांव में किसान व चरवाहे कुल मिलाकर 10 हज़ार से ज़्यादा श्रेष्ठ ऊन वाली भेड़ों का पालन करते हैं। ल्यू फ़ेईल्यांग आदि लोगों के आह्वान में स्थानीय सरकार ने यहां की भेड़ों के लिए एक ब्रांड का आवेदन भी किया, यानी मीनगैई। मीनगैई का प्रसार करने के लिए किसानों व चरवाहों ने स्वेच्छा से कश्मीरी भेड़ संघ की स्थापना की, सक्रिय रूप से लोगों को बाजार की सूचना व तकनीक सेवा प्रदान की और लोगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके खर्च की किफायत की।

इस के साथ-साथ, स्थानीय सरकार ने पूंजी व तकनीक आदि क्षेत्रों में भी लोगों को कारगर समर्थन दिया। ईचीनह्वोल्वो छी के राजनीति व कानून प्रबंध केंद्र के उप प्रधान श्याओ मींग ने कहा,

निश्चित घास मैदान के निर्माण की प्रक्रिया में सरकार ने आधा भत्ता दिया। वहां पानी व बिजली आदि संसाधन मुफ्त हैं। कश्मीरी भेड़ों को खरीदते समय सरकार ने कर्ज भी दिया और मुफ्त घास मैदान भी खोला। हमारे यहां एक प्रशिक्षण केंद्र है, जिस में लोगों को रोग रोकथाम, घास मैदानों में घाय उगाने आदि की तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया है। सभी प्रशिक्षण मुफ्त है।

अब फुरसत में ल्यू फेईल्यांग एवं हैनफींग कभी-कभी पुराने घास मैदान जाते हैं। श्री ल्यू फेईल्यांग ने कहा कि पहले घास मैदान की स्थिति बहुत खराब थी, अब घास मैदान हरा भरा है। वहां की पारिस्थितिकी स्थिति में भारी परिवर्तन आया है। ल्यू फेईल्यांग के अनुसार,

वर्ष 1996 से वर्ष 1998 तक के समय में यहां की पारिस्थितिकी स्थिति बहुत खराब थी।तेज़ हवा और हर जगह पीली रेत थी। अब यहां की पारिस्थितिकी स्थिति की बहाली हो चुकी और घास एक मीटर से ज़्यादा ऊंची है। जब आदमी घास में प्रवेश करता है, तो दूसरे लोग मुश्किल से उसे देख पाते हैं।

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