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चीन के वृक्ष जड़ मूर्ति व ब्रश लिपी कला के होनहार कलाकार वू चिंग फंग
2010-09-28 13:51:01

शायद आप ने जरूर सुना होगा एक मामूली पेड़ की जड़ से निर्मित सौन्दर्य पक्षियों व ड्रेगनों की विविध झूमती अदाएं व उनके पीछे दर्शायी सुन्दर प्राकृतिक नजारों से सुस्ज्जित जीती जागती चित्र कला की कहानी , पर फैंके हुए एक बेकार पेड़ व उसकी सड़ी हुईं जड़ों पर इतनी सुन्दरता से सजायी गयी वृहदाकार जड़ मूर्ति कला की अदभुत माहिरता की कहानी शायद आपने नहीं सुनी होगी। इस में न केवल वृक्ष जड़ के उपर खोदी मूर्ति कला की माहिरता चाहिए बल्कि इस से कहीं ज्यादा कलाकार की अनोखी प्रतिभाशाली के साथ साथ चीन की संस्कृति के प्रति उनकी गहरी पहचान भी बहुत ही अनिवार्य है। और तो और ब्रश लिपी यानी कैलेगरफी कला को वृक्ष जड़ मूर्ति कला में समाने की कला ने तो चीन की जड़ मूर्ति कला के इतिहास में एक नया अध्याय खोला है। इस कला के अविष्कारक हैं चीन के शानसी प्रांत के मोर्डन ड्रामा मंडली के होनहार कलाकार वू चिंग फंग, उनकी स्वंय रची अनेक जड़ मूर्ति कला में ब्रश लिपी कला का मिलन चीन की कला खजाने का एक चमकता हीरा माना जाता है और इन कलाओं की मूल्यता बेशुमार है, इस अदभुत कला को देखने के बाद लोग दांत तले उंगली दबा देते हैं और उनका आश्चर्य चकित का ठिकाना नहीं रहता है।

अक्टूबर 2009 में अन्तर्राष्ट्रीय चीनी कला सोसाइटी व चीनी ब्रश पेन्टिंग कला प्रखर प्रतिभा सोसाइटी ने संयुक्त रूप से श्री वू चिंग फंग को संस्कृति कला का सर्वोच्च मानीय स्वर्ण पुरूस्कार और गणराज्य के असाधारण वीर योगदान संस्कृति कलाकार नामक पुरूस्कार से सम्मानित किया । यह गौरव उनकी वर्षों से कला के प्रति अटूट व सुदृढ़ भावना , सड़ी हुई वृक्ष जड़ों को अमूल्य कलाकृकियों में परिवर्तित करने की उनकी लाजवाब विलक्षण प्रतिभान्वित कला से अलग नहीं किया जा सकता है।

इस साल 62 वर्षीय वू चिंग फंग बचपन से ही अपने पिता के साथ ब्रश लिपी सीखते आए हैं, वे बहुत ही शानदार ब्रश राइटिंग लिखते हैं। बाद में वे बेहतरीन परीक्षा अंको से शानतुंग मोर्डन ड्रामा मंडली में दाखिल हुए, उन्होने विविध मंच में करीब अपनी जिन्दगी के 30 साल कला जगत में बिताए। तो श्री वू चिंग फंग ने कैसे वृक्ष जड़ मूर्ति व ब्रश कला से अपना बन्धन जोड़ा था । ये उनके मोर्डन ड्रांमा मंडली के साथ चीन के विविध जगहों में जाकर किस्म किस्म की कलाओं में भाग लेने से हासिल प्रचुर अनुभवों से अलग नहीं किया जा सकता है। इस की चर्चा करते हुए उन्होने हमें बताया यह 1993 की बात है, थ्येनचिंग फिल्म निर्मित स्टूडियो के साथ आठ एपीसोड की टीवी सिरीयल में भाग लेने के लिए मैंने च्यांगसी प्रांत के चिंगकांगसान का दौरा किया, मैंने देखा दक्षिण चीन के वृक्ष जड़ बहुत ही अलग हैं, शूटिंग के खाली समय में मुझे लोगों के घरों के आगे पीछे बहुत से वृक्षों की जड़े मिली, मैंने इन जड़ों से बहुत से छोटे खिलौने निर्मित किए, तब से वृक्ष जड़ से निर्मित खिलौनों की मिठास सफलता ने मेरे दिल को इस कला की ओर पूरी तरह खींच लिया। मैं उनमें समा गया।

दक्षिण चीन की वृक्ष जड़ों से मोहित होने से श्री वू चिंग फंग का खर्चा भी बढ़ने लगा, जब जब उन्हे शूटिंग से फुरसत मिलती तो वे अजनबी जड़ मूर्ति कला में डूब जाते थे और इतने मोहित हो जाते थे कि अक्सर अपने को खो बैठते थे।

अपनी रचना की उचित वृक्ष जड़ों की तलाश के लिए वे थाएयेन शहर के अनेक इमारत निर्माण स्थलों में दौड़ धूप करने में कभी नहीं कतराते । बेटे वू छिंग ली ने अपने पिता का उस समय का परिचय देते हुए कहा कि जहां सड़के बनायी जा रही हों, जहां नए मकान बनाए जा रहे हों, मेरे पिता जी अवश्य वहां देखने को मिलेंगे। उन्होने इस का जिक्र करते हुए कहा चाहे बगीचा हो या सड़क निर्माण स्थल , वे वहां वृक्ष जड़ ढूंढने निकल पड़ते थें, कभी तो वे अपने हाथों से जड़ों को मिटटी के नीचे से खींच कर निकालते थें। जहां कहीं भी वृक्षों की जड़ें होती थीं , वे उसे वहां खींच कर ले आती थीं , जैसे कि इस जगह में कोई स्वादिष्ट पकवान की खुश्बू आ रही हो व कोई मजेदार खाने की चींजे मिलने वाली हों।

भौगोलिक स्थिति की वजह से उत्तरी इलाकों में वृक्षों की जड़े इतनी भरपूर नहीं होती जितनी कि दक्षिण चीन में होती हैं। अपनी पसंद की वृक्ष जड़ें ढूंढने के लिए वे बार बार कई हजार किलीमीटर का रास्ता तय कर दक्षिण चीन के उचित जगहों में जाकर वृक्षों की जड़ों की तलाश करते हैं। अक्सर बहुत सी बातें कर मुंह सूखने और बराबर दौड़ धूप के बाद थकान से चूर होने पर, वे बड़ी मुश्किल से अपनी पसंद की वृक्ष जड़ों को घर ले आते थें। एक बार क्वांगशी प्रांत में एक विशेष वृक्ष जड़ को पाने के लिए पैसों की लेन देन के बाद उनके जेब में थोड़ा सा पैसा ही बचा, वे कई दिनों तक भूख सहने पर मजबूर रहे। बड़ी मुश्किल से जड़ों की प्राप्ति के बाद, उनके आगे कला रचना का दौर उनकी अन्य एक नयी समस्या बनी खड़ी होती थी। श्री वू चिंग फंग ने कहा मैं एक तेज मिजाज का व्यक्ति हूं, जड़ के मिलते मैं खुशी से फूला नहीं समाता और चाहता हूं झटपट उसे अपनी रचना का रूप दे दूं। जड़ की चमड़ी उतारकर उसे अपने दिमाग में बने रूप देने की जल्दबाजी से तो कभी कभी जड़ का असली रूप नष्ट हो जाता है, मैं बहुत दुखी होता हूं। वाकई यह मेरी कला की माहिरता के लिए दी जाने वाली कीमत ही है। एक साल की जनवरी में इतनी ठंड पड़ी थी कि शाम को अपना काम खतम करने के बाद, मेरे दोनों कान ठंड से सूज गए थे।

1993 से श्री वू चिंग फंग ने विधिवत रूप से जड़ कला की अदभुत दुनिया में कदम रखना शुरू किया। तब से इस कला ने उनका मन मोह लिया और वे उस से छुटकारा पा नहीं सकें। जड़ मूर्ति कला एक बहुत ही कठोर कार्य है, आखिर इस कठोरता का फल मीठा निकला। पिछली शताब्दी के नब्बे वाले दशक में उनकी जड़ मूर्ति व ब्रश कला से निर्मित डैगन व सोया ड्रैगन के नामक रचनाओं को अलग अलग तौर से दसवें व ग्यारहवें विश्व चीनी कला सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय कला का स्वर्ण पुरूस्कार हासिल हुआ। अन्य रचना लम्बी उम्र नाम की रचना को 1997 में चीनी जड़ मूर्ति कला मेले का स्वर्ण पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। विशेषकर उनकी कला में हरेक वृक्षों की बारीक जड़ों में कोई टूट फूट न होना तथा हरेक वृक्ष जड़ मूर्तियों पर ब्रश से लिखे एक एक या दो दो चीनी शब्दों का मिलन, जड़ मूर्ति कला की सौन्दर्यता में चार चांद लगाते हैं। इतनी बारीक जड़ों में मूर्ति कला के साथ ब्रश राइटिंग को एक साथ समाना वाकई एक जटिल व कठोर कला है, जिसे अब तक चीन की जड़ कला का अतुल्य बेमिसाल एतिहासिक कला का दर्जा दिया गया है। इस गौरव को पाने की खुशी पर उन्होने कहा मैंने एक कला की दुकान से वृक्ष जड़ों से निर्मित आशीर्वाद शब्द देखा तो मैं अचम्भे में रहा गया। वाकई यह बेमिसाल कला है, लेकिन एक खामी यह है कि शब्दों को एक एक करके जोड़ा गया था, मैंने दिल में ठान ली कि मैं आशीर्वाद शब्द को पूरे एक ही जड़ से उतार कर ही रहूंगा, यह एक अत्यन्त कठोर व बारीक काम है, लेकिन मैं इस में आखिर सफल रहा।

पिछले 17 सालों में अपने जी जान की कठोर मेहनत व खून पसीना बहाने की बदौलत , फिलहाल श्री वू चिंग फंग ने वृक्ष जड़ों से किस्म किस्म की 300 से अधिक मूर्ति रचनाएं निर्मित करने में सफलता हासिल कर ली हैं। जड़ मूर्ति कला चीन की एक अनोखी व अदभुत संस्कृति कला के रूप में दुनिया की कला का एक बहुमूल्य खजाना है।

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