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आइये हम हंसकर खुशी मन से मौत का सामना करें
2010-09-20 10:44:57

खुशी और मौत देखने में दो अलग अलग चीजें हैं। लोग आम तौर पर खुशहाली और आन्नदमय की घड़ी में मौत को अनेक तरीकों से दूर रखते हैं, और आशा करते हैं वह कभी न आए, और चाहते हैं कि इस तरह खुशहाली हमेशा बनी रहे। लेकिन लेखक पी शू मिन ने अपनी कलम में खुशहाली और मौत को एक साथ बांध के रखा है। उनकी रचनाओं में एक मानसिक चिकित्सा को बड़ी धीरज से लोगों को जीवन में खुशहाली ढूंढने में मदद देनी चाहिए। एक चिकित्सक की जिम्मेदारी बनती है कि वे लोगों को मौत को हल्के दिल से सामना करने की तकनीक सिखाएं, लेखक को तो बड़ी होशयारी व बारीकता से लोगों को जीवन की सौन्दर्यता व आशा की किरणें दर्शाने में अपनी माहिरता कर प्रदर्शन करना चाहिए। चिकित्सक, लेखक और मानसिक परामर्श शिक्षक जैसे तीन पेशों की माहिरता पाने और फिर उक्त इन तीन क्षेत्रों में अलग अलग तौर से संतोषजनक सफलताएं हासिल करने वाली विलक्षण प्रतिभाशाली लेखक पी शू मिन ने आखिर साहित्य की जुबान में इन तीन ज्ञानों को एक सूत्र में बाधंकर लोगों को एक नया अहसास दिलाया है।

लेखक पी शू मिन के एक एक शब्दों में बारीकता होने के साथ धैर्य की झलक भी देखने को मिलते हैं , लेखक होने के नाते वे वस्तुओं की सही पहचान को तीव्रता से हासिल कर लेती है। देखने में मामूली हल्की सी एक दो बातें उनकी तीखी नजरों में एकाएक इतनी भरपूर भावना का रूप लेती है और पाठकों को लम्बे समय तक इन बातों को दिमाग में मंडराने की सोच में डाल देती थी। इस तरह की तीखी व तीव्र आंखे, उनके पिछले 22 सालों में चिकित्सक के अनुभवों की ही देन हैं। यहां तक कि लोगों ने उन्हे साहित्य दुनिया में सफेद यूनीफार्म पहनी डाक्टर की संज्ञा दी हैं , और कहा कि उसने एक चिकित्सक के रूप में ममता व दयालु को अपने साहित्य में डोल दिया है। इस पर चर्चा करते हुए लेखक पी शू मिन ने कहा मुझे कभी लगता है कि मैं जिन्दगी भर काम में लगी हुई हूं, चाहे चिकित्सक का काम हो या मानसिक चिकित्सक का हो या तो लेखक का काम। मेरे लिए ये एक काम के बराबर है, केवल उनके काम के तरीके अलग हैं। मुझे लगता है कि एक आदमी की जिन्दगी कितनी छोटी, कितनी कमजोर पर कितनी मूल्यावान और अजनबी होती है। हरेक आदमी की सीमित यात्रा के दौर में मैं आशा करती हूं कि लोगों की जिन्दगी अधिकाधिक खुशियों से भरी रहे। जब जब मजबूरी में हमें जो दुख व कठिनाईयों को सहना पड़ता है, उस समय हम हमेशा प्यार भरी सहायता की तमन्ना व आशा बनाए रखते हैं। और यहीं आशा जीवन के अन्त दिनों में हमें पछतावे से दूर रख सकती है। मैंने जो कुछ किया है उसका मकसद मेरे लिए महान है।

जीवन के दौर में जन्म, बिमारी , बुढापापन व मौत एक अनिवार्य हिस्सा हैं, इन दौर पर ध्यान देना , विशेषकर मौत को गौर से देखना, लोगों को मौत की मौजूदगी पर ध्यान देने न कि उसे नजरअन्दाज करने का हौसला बढ़ाने में लोगों को जागरूक करना , यह ही लेखक पी शू मिन की रचनाओं की खूबी हैं। परन्तु उनकी कलम में मौत एक खौफनाक चीज नहीं है, वे मौत जैसे विषय पर लोगों को अपने करीब आने की खुशी भरी भावना का पूरा एहसास दिलाती है। एक चिकित्सक के रूप में उनका मकसद लोगों की आम खुशियों की विशालता के रूप को पूरी तरह दर्शाना है, जिन्दगी के पूरे दौर में सच्चा व हार्दिक प्यार की दिशा दिखाना , दुखी भरी घड़ी में साहस की उमंगे उभारना, जिस से लोगों के तनमन को शान्ति व भरोसा मिल सकें।

लेखक पी शू मिन ने असल में 17 साल की उम्र में ही अपनी कऱूणा, आशावादी, ममता भरी धैर्यता व शान्त व्यक्तित्व को सुदृढ़ता से निर्मित कर लिया था। उस साल वे मिलीटरी वर्दी में तिब्बत के आली इलाके में भेजी पहले जत्थे की महिला सैनिक थीं। यह हिमालय, कांगती व खाछीखुनलुन पर्वतों का संगम स्थल था, वहां की समुद्र सतह 5000 मीटर से ऊंची थीं। पठार व पर्वतमाला की विशालता व गंभीरता से जुड़े इस वातावरण में उन्होने अपने साथियों को मौत और जिन्दगी से जूझते देखा, मौत व जिन्दगी के संग्राम ने पी शू मिन के मन को हिला डाला, जिस से अपनी छोटी सी उम्र में ही उन्हे मौत का नजदीकी से अहसास होने लगा और जिन्दगी की महत्वता व मूल्यवान की समझ को बढ़ावा मिला। उन्होने हमें बताया तिब्बत में मैंने पाया कि मौत करोड़ो साल से बनी आ रही चीज हैं, जबकि मैं सब से ज्यादा एक सौ साल ही जीवित रह सकती हूं, आंखो के आगे खड़े इन बर्फो से ढके पहाड़ों की बराबरी मैं कितनी छोटी हूं। हालांकि मैं एक नर्स होने के नाते , मैंने अनेक बार साथियों की जवान लाशों का निपटारा करने में भाग लिया था , मैं भी सोचती रहती थी कि मौत भी एक दिन इसी तरह मेरे सामने आएगी। मैंने उस समय से ही ठान ली कि मैं अपने जीवन को अपने सोच से गुजारूंगी, हर समय खुश रहूंगी, हमेशा मौज की जिन्दगी में रहूंगी और जितना हो सके दूसरों की मदद करती रहूंगी। मैंने 17 साल की उम्र में इस विचारधारा को अपना लिया और अब तक मैंने इस में कोई परिवर्तन नहीं आने दिया।

लेखक पी शू मिन का जन्म अक्टूबर 1952 में सिन्चयांग के ईनिंग में हुआ था। एक साल की उम्र में अपनी मां के साथ वे पेइचिंग में रहने आ गयी। 1969 में वे तिब्बत की आली में सेना में भर्ती हुई और सेना की एक नर्स बनी। आली में तीन साल सेना में भर्ती होने के अनुभव, भविष्य में सुश्री पी शू मिन की साहित्य रचनाओं के अटूट स्रोत बने। उन्होने अपनी आंखो से अपने सबसे नजदीकी साथी की मौत देखी और अपने हाथों से उसे दफनाया, यह उनकी एक दुखद याद के रूप में उनके मन में हमेशा के लिए जा बसी। लेकिन दुखद के सिवा अपने साथियों के साथ खुशी व मौज के दिनों की याद भी अब भी उनके दिमाग में ताजा है।तिब्बत में गुजारे दिनों की यादों का हरेक पल उनके दिल में एक एक कहानी की तरह जब चाहे निकल आती हैं। अपने पिता के प्रोत्साहन में 34 साल की उम्र में सुश्री पी शू मिन ने एक सप्ताह के समय में अपनी पहली मध्य लम्बी उपन्यास खुनलुन पर्वत की पुकार को पूरा कर लिया। उपन्यास में अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान होने वाले जवानों की दिल हिला देने वाली कहानियों ने पाठकों को बहुत प्रोत्साहित किया और इस उपन्यास को साहित्य जगत की मान्यता भी मिली। तब से सुश्री पी शू मिन ने लेखक का मार्ग शुरू कर दिया।

लेखक की हैसियत से उन्होने तीन शब्दों में लेख रचना का निचोड़ कर कहा वे हैं सच बोलना, खुशी में हिस्सा लेना और बेहतरीन व सुन्दरता में संलग्न रहना। उनके ख्याल में लेखक यदि खुद भी यकीन न करने वाली चीजे लिखेगा तो उसकी नैतिकता में शंका पैदा हो सकती है। पी शू मिन का उपन्यास लिखने का मकसद लोगों के साथ खुशी में हिस्सा लेना है , इस हिस्से में सुख, दुख,क्रोध खुशी सम्मलित हैं। उपन्यास में पाठकों को अपनी राय का हिस्सेदार बनाकर उनकी मदद कर सकें, ये उनके लिए अपनी खुशी के समान है। अलबत्ता अधिकाधिक लोगों को अपने उपन्यास से कुछ मदद मिलने के लिए उन्हे अपने उपन्यास को बेहतरीन व सुन्दरता में ले जाने की अथक कोशिश करने की जरूरत है। उन्होने इस पर अपना विचार प्रकट करते हुए कहा दुनिया में कहां ऐसी चीज हैं जिस में खूबीयां हो खामियां न हो, या खामिया हों खूबीयां न हो। लेकिन जितना हो सके मैं अपने उपन्यास को अधिक बेहतरीन बनाने की पूरी कोशिशों में लगी रहती हूं। जीवन समय बहुत ही छोटा और कम होता है, इस लिए अपनी जिन्दगी को अधिक लोगों के साथ जोड़ना, यह भी एक बहुत ही दिल लुभाने वाली प्रोत्साहित दिशा है। हम अपने को अच्छे से अच्छा बनने की कोशिश में लगे रहते हैं, अगर हो सके तो हमें अच्छे की ऊंचाई तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।

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