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चीन और विश्व कोरस के साथ का बन्धन
2010-08-31 13:11:42

विश्व की छठी कोरस प्रतियोगिता हाल ही में चीन के साओसिंग शहर में आयोजित हुई, साओसिंग शहर चीन के ओपेरा घर के नाम से एक जानी मानी जगह है और इस शहर का इतिहास कोई 2500 साल पुराना है , अलबत्ता उसका संस्कृति भंडार भरपूर है। हाल ही में विश्व के 80 से अधिक देशों व क्षेत्रों से आए 20 हजार से अधिक कलाकार अपनी कला मंडलियों को लेकर इस भव्य कोरस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। कलाकारों ने इस भव्य आयोजन को दूसरे देशों की संस्कृति की खूबी से सीखने व अपनी जातीय संगीत का प्रसार करने का अच्छा अवसर माना है।

विश्व कोरस प्रतियोगिता विश्व कोरस ओलम्पिक के नाम से भी जाना जाता है, जर्मन स्थित अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान प्रदान कोष इस कोरस की आयोजन संस्था है, कोरस यानी समूह गान हर दो साल में एक बार आयोजित किया जाता है।वास्तव में विश्व कोरस में भाग लेना और उसका आन्नद उठाना ये चीनी लोगों के लिए दूसरा अवसर है, इस से पहले 2006 में चीन के श्यामन में विश्व का चौथा विश्व कोरस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था।

चीन की केन्द्रीय संगीत यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर, श्यामन आएये संगीत मंडली की कला सुपरवाइजर चंग श्याओ इन ने कहा कि कोरस चीन की अपनी कला शैली नहीं है, पश्चिम से चीन में प्रसार हुए उसे एक सौ साल हो चुके हैं, यह एक समूह गान कला हैं , जिस में अनेक स्वरों की कला का बेहतरीन समंजस्य इस कला की अदभुत्ता है, कलाकारों को समूह गान के दौरान एक दूसरे के स्वरों के बीच बेहतरीन ताल मेल बिठाना बहुत ही जरूरी है। इस बार के विश्व कोरस प्रतियोगिता की कला सुपरवाइजर होने के नाते,सुश्री चंग श्याओ इन को बड़ी चिन्ता थी कि इस बार एक छोटे से शहर में आयोजन होने से क्या वे 20 हजार लोगों की भागीदारी वाली प्रतियोगिता को संभाल सकेगा या नहीं। उन्होने इस पर चर्चा करते हुए कहा साओ सिंग एक छोटा सांस्कृतिक प्राचीन शहर है, बीस साल पहले मैं यहां सैर करने आयी थी, मुझे यहां की गहरी जातीय संस्कृति ने बहुत ही प्रभावित किया। इस बार विश्व आधुनिक कोरस कला का मिलन इस छोटे शहर में होने जा रहा है, क्या साओसिंग इसे संभाल सकेगा या नहीं, मुझे थोड़ी चिन्ता रही थी। लेकिन यहां आने के बाद, मैं आश्चर्य चकित रही कि साओ सिंग ने इस का बहुत ही बेहतरीन संगठन किया है, ये एक केवल सत्कार का सवाल ही नहीं है बल्कि साओसिंग जनता इस कला को स्वीकार कर सकेगी या नहीं और इस नयी आधुनिक कला से संपर्क कर सकेगी या नहीं, और तो और वे अपनी प्राचीनतम शान को सही स्थान पर बरकरार रख सकेगी या नहीं। गौरतलब है कि साओसिंग ने इस सुअवसर को लेकर लोगों की चिन्ता को दूर कर दिया है। साओसिंग ने बहुत ही बढ़िया काम किया है और अपनी प्राचीन संस्कृति में चार चांद लगाए हैं।

असल में साओसिंग ने अपनी प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास के दौर में अनेक सांस्कृतिक, राजनीतिक व वैज्ञानिक जैसे आसाधारण व्यक्तियो को इस धरती पर जन्म दिया था।परन्तु इतना भव्य वैश्विक आयोजन उसके के लिए पहला अवसर है। बहुत से नागरिकों ने कहा कि उन्होने इस से पहले इतने विदेशियों को अपने शहर में नहीं देखा था। इस बार के विश्व कोरस प्रतियोगिता आयोजन कमेटी के अधिकार फान ची लिंग ने कहा कि उन्होने इस बार के आयोजन के लिए दो सालों की तैयारी की हैं, अधिकतर साओसिंग निवासियों के लिए यह अपनी दृष्टि को खोलने का एक अच्छा मौका है और विश्व से सीखने का एक सुअवसर भी। इस से हमारे प्राचीन शहर में नयी आधुनिक उमंग का उभार होगा। उन्होने हमें बताया हमने इस बार के विश्व कोरस प्रतियोगिता को साओसिंग शहर की स्थापना के 2500 की सालगिराह से जोड़ा है, यह प्राचीन संस्कृति को आधुनिक संस्कृति के मिलन का एक मिसाल बनाने का हमारा एक प्रयास भी है, अपनी परम्परा में पले बढ़े होने से स्थिर व अन्तर्मुखी व्यक्तित्व से ओतप्रोत साओसिंगवासियां आज एक ऊंची उमंग, आधुनिक शैली व फैशनेबुल संस्कृति से सीधा संपर्क कर रहे हैं। साओसिंग में कोरस कला अपेक्षाकृत कमजोर हैं, इस बार की विश्व कोरस प्रतियोगिता के बाद, साओसिंग शहर को इस क्षेत्र में तरक्की करने में मदद मिलेगी।

कोरस यानी समूह गान प्रतियोगिता से अधिकाधिक लोगों को समूह गान की कला की सौन्दर्यता की पहचान होगी। इस बार की प्रतियोगिता में 20 से अधिक विविध ग्रुपों में 500 से अधिक स्टेज कार्यक्रम प्रदर्शित किए जाएंगे। इन में बाल गीत, मिस्र गीत, लोक संगीत, पोप संगीत, टविस्ट संगीत व चर्च संगीत आदि शामिल हैं, सभी भागीदार कला मंडली अपनी सबसे बेहतरीन कला शक्ति को दर्शाएंगी।

इन्डोनीशीया की जकार्ता स्काएलैंड कोरस मंडली में 38 गीतकार हैं, उनकी उम्र 50 से 70 साल तक की हैं, अपने इस बार की चीन यात्रा पर वे बहुत ही खुश हैं। मंडली के सदस्य दजान दजान सलीम ने हमें बताया हमारे कलाकारों की उम्र 50 से 70 साल तक की हैं, हालांकि उम्र थोड़ी बड़ी तो है पर हम अपने को बूढ़े नहीं समझते हैं। हम इस बार की प्रतियोगिता में हम युवाओं व बालकों के साथ एक स्टेज पर अपनी माहिरता का प्रदर्शन करेंगे। साओसिंग शहर में आने के बाद हम बहुत खुश हैं, यहां के निवासियों के हार्दिक सत्कार ने हमे बहुत ही प्रभावित किया है।

स्काएलैंड कोरस मंडली ने 2006 में श्यामन में आयोजित विश्व कोरस प्रतियोगिता में भाग लिया था। इस बार के विश्व कोरस प्रतियोगिता में सभी गाने इन्डोनेशीयाई लोक गीत हैं, मंडली का कहना है कि चीन में आकर अधिक से अधिक लोगों को अपने देश की जातीय कला से परिचत कराना हमारे लिए एक अच्छा मौका होगा।

इन्डोनीशिया-चीन आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सहयोग सोसाइटी चिनलो शाखा के अध्य़क्ष प्रियो हादीसुतान्तो 38 बाल कोरस मंडली का नेतृत्व कर रहे हैं, वे इस बाल कोरस मंडली के लिए पूंजी सहायता करते आए हैं, उनकी नजर में बालकों को इस मौके से अपनी आंखो को विशाल करना और नयी चीजें सीखना बहुत ही महत्वपूर्ण है, विशेषकर बाल मंडली के लिए। उन्होने इस पर चर्चा करते हुए कहा इस बार बाल कोरस मंडली को लेकर विश्व कोरस प्रतियोगिता में शामिल होना बच्चों के पालन के दौर में नयी शिक्षा पाने का एक अच्छा मौका है, और तो और सांस्कृतिक आदान प्रदान तरीकों से बच्चों को यह अहसास होगा कि कला व संस्कृति के बीच कोई सीमा नहीं है, ताकि वे विश्वास करें कि विश्व एक समुदाय है, एक परिवार हैं। इन्डोनीशीया और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान बहुत ही महत्वपूर्ण है, सांस्कृतिक आदान प्रदान के जरिए आपसी जानकारी और बढ़ेगी। दोनों देशों की संस्कृति का खजाना भरपूर हैं और दोनों एक बहुजातीय देश भी हैं। बच्चों को दुनिया की जानकारी का एक बेहतर अवसर मिलेगा, क्योंकि इस प्रतियोगिता में 80 से अधिक देशों व क्षेत्रों से आए 20 हजार से अधिक कलाकार भाग ले रहे हैं।

प्रतियोगिता के संगठन पक्ष, विश्व सांस्कृतिक आदान प्रदान कोष के अध्यक्ष गन्टर टिस ने हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार में कहा कि अधिक से अधिक लोग कोरस व संगीत के जरिए एक दूसरे को समझ सकें और मैत्री को आगे बढ़ा सकें , यह ही हमारी इस वैश्विक प्रतियोगिता का मकसद है। उन्होने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा भागीदारी एक सर्वोच्च गौरव हैं यह बात विश्व कोरस प्रतिगोगिता में कोई खाली शब्द नहीं हैं। इस बार की प्रतियोगिता पर लोगों ने ध्यान दिया होगा कि दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण लातिन अमरीका से आयी कोरस मंडलियों में बहुत से बालक हैं, वे इतनी दूर से और इतना पैसा खर्च कर यहां आए हैं, उनके के लिए उनके माता पिता व संगठनों ने पूंजी सहायता दी हैं, उनका मकसद ओलम्पिक खेल में एक नया रिकार्ड बनाना नहीं है, बल्कि इस भव्य कोरस में भाग लेकर दुनिया में अपनी नयी छवि व नयी पहचान बनानी है।

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