चीन के च्यांगसू प्रांत के ऊसी शहर का उपनगर हुएसान इलाका दक्षिण चीन की एक दो हजार साल पुरानी बस्ती है। यहां पर निर्मित हुएसान की चिकनी मिटटी से बनी लघु मूर्ति कला का इतिहास कोई एक हजार साल पुराना है, उसकी अदभुत कला विशेषता, उल्लेखनीय जातीय रंग रूप व दक्षिण चीन की गहरी स्थानीय खूबियां व सुन्दरता, देश विदेश में लोगों को बहुत पसंद है। 20 मई 2006 में इस पुरानी सांस्कृतिक विरासत को चीन के राज्य परिषद ने राष्ट्रीय की प्रथम श्रेणी की सांस्कृतिक विरासत कला की नामसूची में भर्ती कर दिया है।
ऊसी शहर के हाथ से निर्मित चिकनी मिटटी मूर्ति कला की जरूरी सामग्रियों की मांग बहुत ही कड़ी है, मूर्ति की चिकनी मिटटी वहां के एक निश्चित धान खेत से एक मीटर गहराई से खोदी हल्की काली मिटटी के सिवा किसी अन्य जगह की मिटटी का प्रयोग नहीं किया जाता है। मूर्ति की परम्परागत कला तकनीक बहुत ही जटिल है, इस में मिटटी को गूंदना, घसीटना, दबाना, पटकना व काटना आदि तकनीकें कला शामिल हैं। रंगीन मूर्ति के लिए तो कलाकारों को चन्द रंगों को मिटटी में मिलाने की तकनीक पूरे मूर्ति निर्मित का भारी पल्ला होता है, तभी तो कहा जाता है कि तीस प्रतिशत मेहनत होती मूर्ति निर्मित करने की , जबकि मूर्ति को रंग में डालने की तकनीक माहिरता 70 प्रतिशत होती है।
2007 में ऊसी म्युनिसिपल सरकार ने ऊसी हुएसान चिकनी मिटटी मूर्ति कला वारिस व सहायता उपाय नियम जारी किया, इस के लिए सरकार ने 4 लाख य्वान की पूंजी जुटाई है, जिसे ऊसी शहर के लोक कला संग्राहलय के नियुक्त राष्ट्रीय वारिस वांग मू तुंग, वी श्यांग ल्येन, ल्यो छन इंग व वांग लान स्येन माहिर कलाकार हुएसान मृत्तिका मूर्ति कला की नयी पीढ़ी के हस्तशिल्पी कलाकारों के प्रशिक्षण के लिए प्रयोग करेंगे । औसत उम्र 23 वर्षीय नौ युवा शिष्यों को 100 से अधिक कड़ी परीक्षा के बाद चयन किया गया, जो वर्तमान ऊसी शहर के हुएसान चिकनी मिटटी लघु मूर्ति कला के प्रथम वारिस के रूप में चुने गए सर्वश्रेष्ठ शिष्य हैं।
छाओ ची वए इस साल 26 साल उम्र की एक कन्या शिष्य हैं, तीन साल पहले वे ऊसी मार्केटिंग पेशावर क्लास से उत्तीर्ण हुई थीं, पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद ही वे सीधे मृत्तिका मूर्ति कला की दुनिया में भर्ती हो गयीं। अन्य शिष्यों की तुलना में छाओ ची वए कला पेन्टिंग की पेशावर शिक्षा में कमजोर लड़की थीं, इस पेशावर कला शिक्षा में भाग लेने का मकसद केवल उसे मृत्तिका मूर्ति कला से लगाव है। उसने हमें बताया केवल इस हस्तशिल्पी पर दिलचस्पी थी, बहुत पहले से ही मुझे हस्तशिल्प कला व परम्परागत जातीय कला पर बड़ी रूची रही है, अखबार में मैंने मूर्ति कला परीक्षा दाखिला की सूचना देखी, तो मैंने अपना नाम भर दिया। ज्यादा नहीं सोचा, सिर्फ इस कला पर भारी दिलचस्पी थी।
हुएसान मृत्तिका मूर्ति कला को दो किस्मों में बांटा जाता है, उनके पहले किस्म में बौद्ध भगवान का रूप मूर्तियां का मुख्य भाग होता हैं, जिन्हे बौद्ध अनुयायियों के पूजा पाठ में प्रयोग किया जाता है, उनका अन्य किस्म मानव रूप व विविध पशु-पक्षियों का रूप मुख्य होता है, जिन्हे बच्चों के खिलौने के रूप में प्रयोग किया जाता है। आम तौर पर उनकी लम्बाई तीन से सात सेन्टीमीटर रहती है, मूर्ति की कला का रूप सादा होता और वे वीर भावात्मक दर्शाती है, पूर्ण रंग रूप आम जीवन से ऊंचा होता है, रंग चमकीले होते हैं पर उन्हे ज्यादा रंगों से नहीं बल्कि एक खास रंग से ही सुसज्जित किया जाता है , मूर्ति की तीव्र खूबसूरती में दक्षिण चीन की विशेष कला की चमक देखने को मिलती है। चिकनी मिटटी की लघु मूर्ति कला का एक सबसे बेहतरीन नमूना एक नन्हा लड़का व एक नन्ही लड़की है, मूर्ति का नाम रखा है खुशी से झूमती मृत्तिका मूर्ति। दो नन्हे बच्चों के लहराते बाल, उनके मुखड़े पर महकती मुस्कराहट, बाहों में एक अजीब जानवर को गोद में लिए, नंगे पैर बैठे बच्चों की कुछ शरारती व कुछ चंचल अदाए, जो भी उन्हें देखता है पसंद के मारे नहीं रह जाता ।
पिछले तीन साल में मूर्ति कला शिक्षा दे रहे ऊसी शहर के हुएसान मूर्ति कला के वारिस कलाकार वी श्यांग ल्येन, वांग नान स्येन और ल्यो छन इंग ने अपनी इस अनोखी कला को बड़ी धैर्यता से हाथ में हाथ पकड़कर नयी पीढ़ी कलाकारों को सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, विशेषकर गुरू वांग मू तुंग ने कला पेन्टिंग सिद्धांत व मानव शारीरिक पेन्टिंग कला क्लास में इन तकनीकों को अपने शिष्यों से अवगत कराया है। हुएसान मृत्तिका मूर्ति कला के वारिस वांग नान स्येन ने इस पर जानकारी देते हुए कहा सभी तीन शिक्षक एक महीने में शिष्यों को एक एक हफ्ते का पाठ पढ़ाते हैं, तीन शिक्षक तीन हफते की क्लास लेते हैं , अन्य एक हफ्ते में शिक्षक वांग अपना नया पाठ सिखाते हैं। मूर्ति निर्मित कला, मानव शरीर के अनुपात को मूर्ति में ठीक तरह से बिठाने, हाथ से निर्मित हमारी मूर्ति कला में अनुपात का होना या न होना इतना जरूरी नहीं है, इस में अनुभव व हथकला की महसूसता, जैसे की रंग में कौन सा रंग मिलाने से एक मूर्ति कला को जीता जागता रूप दिया जाए, इस में कला अनुभव के साथ हथकला अनुभव भी एक माहिरता ही है, इस तरह की कला की महसूसता के लिए हमें बड़ी धैर्यता बर्तनी होती है, ताकि वे इस माहिरता को बड़ी बारीकता से समझ सकें।
2010 के आरंभ में नौ शिष्यों ने अपने तीन सालों में निर्मित 16 मूर्ति रचनाओं में से 6 रचनाओं को चुनकर अपनी अन्तिम उत्तीर्ण परीक्षा के लिए पेश की, इन मूर्तियों में हाथ की सफाई व कला, मूर्ति का रंग रूप व रचनाओं की अदा जैसे तीन भागों में उनकी परीक्षा का आकलन किया गया, इन रचनाओं को सभी छह मृत्तिका मूर्ति कला वारिस कलाकारों ने बड़ी जिम्मेदारी से शिष्यों के एक एक मूर्तियों को नम्बर दिए। इस पर चर्चा करते हुए चिकनी मिटटी लघु मूर्ति कला कारखाने के प्रबंधक सन ता सओ ने कहा बिल्कुल कहा जा सकता है कि इन सभी शिष्यों ने पूरी तरह इस कला की माहिरता हासिल कर ली है, उन्होने हमारे बुजुर्ग कलाकारों से मूर्ति कला की बुनियादी व उच्च कोटि की तकनीक कला को प्राप्त कर लिया है, वे आगे चलकर स्वंय अपनी रचनाओं का करिश्मा दिखा सकते हैं।
शिष्यों के लिए पूरी शिक्षा पूरा कर लेना केवल इस कला की शुरूआत ही है, उनके आगे रास्ता बहुत ही लम्बा है। कला कभी बूढ़ी नहीं होती जब तक जीना तब तक कला को सीखना उनका जीवन लक्ष्य बन गया है। शिष्य छाओ ची वए ने खुशी भरे स्वर में कहा बुजुर्ग शिक्षकों ने हमें इस कला में प्रवेश करने की कला सिखायी है, हमें आगे इस कला का किस तरह अधिक विकास करना है यह हमारी सबसे बड़ी परीक्षा होगी, हम अपने हाथों से इस कला को एक नयी खूबसूरती देंगे और कला की गहनता व खुदाई के लिए अध्ययन जारी रखने के साथ सच्चे जीवन के अनुभवों को भी एकत्र करेंगे, जीवन अनुभव तथा इस से उत्पन्न कला व रचना की कल्पना हमारे आगे विकास का लक्ष्य रहेगा। हम एक सर्वश्रेष्ठ मृत्तिका मूर्ति निर्माता व कलाकार बनने के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर करेंगे।