अपनी शान्तिभंग होने से बचने के लिए सुनसान वृक्षों की झुरमुट में जाकर या अपनी पसंद की शान्ति भरी जगह में जाकर गहराई से किसी विषय पर सोच विचार करना या एक पुस्तक पढ़ना, प्राचीन काल से ही बहुत से चीनी साहित्यकारों के जीवन की विचारधारा बनी रही है। आधुनिक चीन के साहित्य मंच में भी एक ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होने साहित्य को सदा बहार बनाने के लिए, हमेशा शहर और गांव के बीच आते जाते रहे हैं, और साहित्य की जड़ की खोज में जुटे रहे हैं, उनका नाम है हान साओ कुंग। 2001 में चीन के जाने माने आलोचक व सिद्धांतकार द्वारा नामांकित चीन के आधुनिक 50 सर्वश्रेष्ठ लेखकों के चयन के दौर में लेखक हान साओ कुंग बहुमत वोटों से इस नामांकित की दूसरे स्थान पर रहे हैं ।
उनकी रचना स्वदेश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय है, इस के साथ उनकी रचनाओं को अंग्रेजी, फ्रांस और जर्मन आदि भाषाओं में अनुवाद कर प्रकाशित भी किया जा चुका है। केवल फ्रांस में उनकी छह रचनाओं को अनुवाद कर प्रकाशित किया जा चुका है , अप्रेल 2002 में फ्रांस संस्कृति मंत्रालय ने उन्हे फ्रांसीसी संस्कृति नाइट मेडल से सम्मानित किया। उनकी रचनाओं में समाज और मानव के प्रति जो गहरा व अदभुत दृष्टिकोण दर्शाया है , उस ने विचार व संस्कृति जगत यहां तक कि व्यापक पाठकों में सकारत्मक प्रतिक्रियाएं हासिल की हैं। पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक में लेखक हान साओ कुंग ने अपने एक मार्गदर्शक प्रबंध – साहित्य की जड़ – में कहा था कि साहित्य की अपनी एक जड़ होती है, और साहित्य की इस जड़ को राष्ट्रीय परम्परागत संस्कृति की मिटटी में उगाना चाहिए। इस विचार ने साहित्य जगत में संस्कृति जड़ की खोज की एक नयी लहर उछाल दी , इस विचारधारा से प्रभावित होकर भारी जत्थे में लेखक परम्परागत विचारधारा, राष्ट्रीय संस्कृति मानसिक के दोहन को भारी ध्यान देते हुए अपनी रचनाओं में साहित्य जड़ की खोज के लिए निकल पड़े। लेखक हान साओ कुंग का मानना है कि चीन की सभ्यता विश्व में बहुत कम देखी जाने वाली कभी न टूटी , न कभी लुप्त होने वाली विचित्र सभ्यता है, यह हमारा सौभाग्य है कि चीन की परम्परागत संस्कृति चीन के गांवों में भारी मात्रा में जैसे के तैसे सुरक्षित है, एक सभ्यता मिसाल के रूप में गांव लेखकों के लिए अपनी रचनाओं में सृजनात्मक भावना पैदा करने की एक प्राकृतिक स्रोत है। उन्होने कहा हम एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, अलबत्ता चीन के ग्रामीण समाज में देशी संस्कृति जीन का विश्लेषण और उसकी परिस्थिति का परीक्षण करना, सचमुच लेखकों का एक जरूरी काम है। तभी तो पाठक हमारी रचनाओं को बड़ी शौक से पढ़ने की रूचि दिखाने के साथ साथ वे हमारी किताबों में ताजा माहौल व नवीन अनुभव का भी एहसास कर सकते हैं, यह चीन की संस्कृति की एक अन्य खूबी है। लेखक हान साओ कुंग ने 1985 में प्रकाशित -- पिता जी प्रिय पिता जी -- नाम के अपने एक मध्यम उपन्यास में साहित्य जड़ की खोज का एक बेहतरीन मिसाल पेश किया है। उन्होने प्रतीकात्मक और पहेलियों की नजर से एक आदिम चीथओ कबिले के एतिहासिक परिवर्तन के जीते जागते वर्णन में दुनिया की ओर बन्द , रूकी , मूर्खता व पिछड़ेपन से भरी जातीय सांस्कृतिक विचारधारा को खुल्मखुल्ला दर्शाकर परम्परागत संस्कृति के प्रति गहरा प्रायश्चित व उत्सक आलोचनात्मक भावना को प्रदर्शित किया है, इस में प्रस्तुत गहरी दर्शनशास्त्र विचारधारा ने संस्कृति जगत पर भारी प्रभाव छोड़ा है। लेखक के जड़ की खोज की भावना उसके बीते बचपन से संबंध रखती है। पिछली शताब्दी के 60 व 70 वाले दशक में चीन में संस्कृति आन्दोलन ने पूरे चीन को भारी हलचल में डाल दिया था, नेता के एक आदेश पर करोड़ों युवा शहरों को छोड़कर गांव में श्रम व जीवन बिताने निकल गए। 1968 में ज्यूनियर मिडिल स्कूल से स्नातक होने के समय हालांकि वे केवल 15 साल की उम्र के ही थे, लेकिन पढ़े लिखे युवाओं को गांव में जाकर श्रम करने की पुकार ने उन्हे हूनान प्रांत के लए लो काउंटी में खेती करने के लिए भेज दिया गया। शहर से अचानक एक अजनबी गांव में आने से इस समय की युवा पीढ़ी की जवानी में प्रेम, नफरत, खुशी-गम, आंसू व दर्द ने उनके दिल में एक कभी न मिटाई जाने वाली यादगार बना डाली ।
इसी काल के अभूतपूर्व जीवन के आधार पर , उन्होने - सीवांग झोपड़ी व घास - नाम के उपन्यास की रचना की। इस की चर्चा करते हुए उन्होने कहा उस समय बहुत से युवाओं के मन में देश का निर्माण करने का जोश भरा हुआ था, आने वाली नयी पीढ़ी इस जोश भरी भावना के कारण को समझ नहीं सकती हैं, लेकिन वे एक सादगी से भरा जमाना था। झोपड़ी व घास जमीन, यह हमारी याद में कभी न भुलाई जाने वाली अटूट यादें हैं। जिस गांव में मुझे खेती करने के लिए भेजा गया था, वह एक कठोर जीवन था, हमने एक विरान जगह को खेती योग्य जमीन बना डाली थी, यह एक जीवन की याद है, तभी तो मैंने अपने उपन्यास में एक मामूली शब्द को बार बार दोहराया और उसे उपन्यास का शीर्षक रखा है, वे हैं - झोपड़ी व घास जमीन - लेखक हान साओ कुंग ने हमें बताया मुझे एक शब्द बहुत पसंद है, वह है ज्ञान व कर्म का मिलन, उदाहरण के लिए, मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, लेकिन मैं किताबी कीड़े जैसे इन्सान से नफरत करता हूं। मैं कर्मफल पर बहुत ध्यान देता हूं, पर हर समय व्यस्त रहने वाले कथित मेहनतकारी इन्सान , मुझे पसंद नहीं है। मेरे ख्याल में यदि अपने ज्ञान को कर्म के साथ अच्छी तरह जोड़ दिया जाए, तो यह एक अत्यन्त खुशी की बात होगी। लेखक हान साओ कुंग का ग्रामीण जीवन व गांव में खेती करने की यादें तथा आज के शहरों के जीवन अनुभवों ने उनके उपन्यास को सफलता की चोटी में पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, उनकी बीती जीवनी ने उनकी रचनाओं को प्रचुर जीती जागती जिन्दगी की एक विशाल पृष्ठभूमि प्रदान की है। आज भी वे खेती करने के शौक को बरकरार रखे हुए हैं, और पढ़ने के शौक को भी जैसे के तैसे बनाए रखा हैं, इस से उन्हे बड़ी तसल्ली मिलती है। उन्होने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा मैं आम तौर पर हर छह महीने एक बार गांव में और हर छह महीने शहर में रहता हूं, वर्ष 2000 से मैंने यह जीवन बिताना शुरू कर दिया था। मेरा मानना है कि यह मेरी भविष्य अभिलाषा की असली स्थिति है, इस तरह मैं शहर, गांव, समाज और प्राकृति के साथ बड़ी अच्छी तरह मेल बिठा सकता हूं। मैं लोगों के साथ संपर्क रखने में दिलचस्पी भी रखता हूं, लेकिन कभी कभी एक पेड़ के नीचे बैठे अकेलापन भी पसंद करता हूं, मेरे ख्याल में मुझे यह दो किस्म की जिन्दगी चाहिए। शहर और गांव के बीच संपर्क रखने के अन्तराल को बनाए रखना, और इस अन्तराल की दृष्टि से समाज को देखना और उसकी यादों को दोहराना , मेरे जीवन व उपन्यास का एक जरूरी अंग रह गया है।