दक्षिण चीन के हाईनान प्रांत में बसी छोटी-सी बस्ती लुंगछवान में 19 सेंटेनेरियन्स (शतायु) रहते हैं। वहाँ रहने वाले सबसे वृद्ध व्यक्ति की आयु 109 वर्ष हैं। वे सब एक सदी से यहाँ रह रहे हैं और अपने लंबे जीवन की कुछ रोमांचक कहानियाँ आज हमारे साथ बाँटना चाहते हैं। हम आज दु लिजुन की कहानी की मदद से इस कार्यक्रम में उन में से कुछ लोगों से भेंट करेंगे और उनसे उनकी दीर्घायु के रहस्य उजागर करने के लिए कहेंगे।
जिन क्षेत्रों में एक लाख में से 7.5 प्रतिश्त तक लोगों की आयु 100 वर्ष या उससे अधिक है वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा दीर्घायु क्षेत्र के रूप में परिभाषित है। लुंगछवान, जहाँ के लोग इस अनुपात को वर्षों पहले पार कर चुके हैं, उसे भाग्यशाली बस्ती के नाम से संबोधित करना गलत नहीं होगा।
लुंगछवान बस्ती, दक्षिण चीन के हनान प्रांत की राजधानी हाईकू की पूर्वी दिशा में स्थित है और वहाँ सड़क के मार्ग से आधे घंटे में पहुँचा जा सकता है। सुबह के ग्यारह बजे हैं और हम छेन वांग शि हमारी प्रथम सेंटेनेरियन (शतायु) से साक्षात्कार करेंगे। वे एक गज ज़मीन पर लगभग 10 स्कवेयर मीटर की साफ-सुथरी झोपड़ी में रहती हैं।
छेन इस बस्ती में बहुत प्रसिद्ध हैं क्योंकि उनके लंबे कान महात्मा बुद्ध के कानों की भांति दिखते हैं। उनके कई बच्चे, पोते-पोतियाँ और नाति-नातियाँ हैं। इसलिए जब उनका जन्मदिन होता है, तो उनकी जन्मदिन पार्टी बहुत विशाल होती है और कई लोग उपस्थित होते हैं।
उनके पोते छेन ईंगशेंग ने हमें अनुवाद करके बताया कि "उनकी दादीजी आज हमें अपने घर में देखकर बहुत खुश हैं। दादीजी ने हमारे आने से कुछ क्षण पूर्व अपने घर का काम समाप्त किया और अपनी झोपड़ी भी साफ की। हालांकि वे 102 वर्ष की हैं लेकिन आज भी रोज़मर्रा के काम जैसे कपड़े धोना, खाना पकाना, अपना कमरा साफ करना, नहाना इत्यादि वे स्वयं करती हैं। वे अब भी प्रतिदिन अपने बाल धोती हैं।"
छेन वांग शि के गाँव में उनकी पीढ़ी के लगभग सभी गाँव वासियों का निधन हो चुका था। यहाँ तक कि छेन के आठ बच्चों में से दो का निधन हो चुका है और उनके सबसे छोटे बेटे छेन रुफू की आयु 65 साल है। उन्होंने हमें बताया कि "उनकी माताजी का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। 14 वर्ष की कम आयु में उनका विवाह हो गया था और वे आठ बच्चों की माँ बनीं। जब हमारे पिताजी का देहांत हुआ तब वे केवल 30 साल की थीं और उन्होंने अकेले ही पूरे परिवार का पालन-पोषण किया।
मेरी बहन की थोड़ी सहायता लेकर माताजी ने नौ एकड़ ज़मीन पर सेम, तिल,आलू तथा अन्य फसलों की खेती की। जिससे घर का खर्चा चलता था। उनकी कड़ी मेहनत का अंत यहीं नहीं हुआ। उन्होंने सूअरबाड़ा खोला, कुछ समय बाद वहाँ से होने वाली आमदनी उनके दो बेटों की कालेज फीस का स्रोत बनी।
लेकिन आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और छेन अपने परिवार के लिए एक नई और बड़ी कुटीर बनाने में सक्षम हुईं।"
छेन रुफू का कहना है कि हालांकि उनकी माँ ने औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की है, लेकिन फिर भी उन्होंने उन्हें और उनके भाई बहनों को कुछ महत्वपूर्ण सिखाया वह था- खुले दिमाग का होना यानि सकारात्मक सोच रखना।
उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि सदा लोगों के साथ मिलजुल कर रहो, उनके साथ कभी झगड़ा मत करो। अगर किसी परिस्थिति में तुम सही भी हो और दूसरे गलत तब भी सहनशील रहो। उन्होंने कहा कि तुम्हें दूसरों को अपनी गलतियों का एहसास करने के लिए तथा उस पर पुनर्विचार करने के लिए उन्हें समय देना चाहिए।"
छेन रुफू ने हमें बताया कि उनकी माताजी का यह मानना है कि व्यक्ति का भाग्य उसके विचारों पर निर्भर करता है। जिसके विचार जितने ऊँचे वह उतना भाग्यशाली। प्रत्येक व्यक्ति को क्षमाशील होना चाहिए और खुले विचारों वाला होना चाहिए।
102 वर्षिय छेन वांग शि के सुखमय एवं सफल जीवन का रहस्य ऐसे ही सरल विचार हैं।
दोपहर हो चुकी है और हम 104 वर्षिय वांग यांगझी के घर उनसे मुलाकात करने आए हैं।
वांग कद के लंबे और बहुत अच्छे विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनके 78 वर्षिय पुत्र, वांग कायचुआन ने कहा कि, यदि उन्हें अपने पिताजी के बारे में कुछ कहना है तो दो शब्द ही काफी हैं और वे हैं
"मधुमक्खी पालक"
"काली मक्खियों और शहद की तलाश उन्हें कई पहाड़ों की चोटियों तक ले जाया करती थीं। लगातार दस वर्षों तक वे प्रतिदिन सुबह घर से जल्दी निकल जाते थे और देर रात घर लौटते थे।"
वांग यांगझी अपने कार्य में बहुत कुशल हैं। वे मधुमक्खियों की गुंजन तथा उनकी उड़ान को देखकर पहचान जाते हैं कि उन्हें कहाँ खोजना चाहिए। उनके पुत्र का अनुमान है कि उनके पिताजी की दीर्घायु का रहस्य कहीं-न-कहीं मधुमक्खियों से संबंधित है। मधुमक्खियाँ वृक्षों की कलियों से एक प्रकार का पदार्थ एकत्रित करती हैं जो मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। मधुमक्खियों ने वांग यांगझी को इतनी बार डसा है कि प्रोपोलिस नामक रसायन का प्रयोग उन्होंने अनेकों बार किया है जिसने उनकी प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ा दिया है।
वांग कायचुआन ने हमें बताया कि, "उनके पिताजी संगीत प्रशंसक भी हैं। उन्हें दो तारों वाला चीनी वाद्य 'अरहू' बजाना बेहद पसंद है। यह उनकी रुचि है लेकिन जब भी उन्हें कोई प्रदर्शन के लिए आमंत्रित करता है तो वे बड़े शौक से आमंत्रण स्वीकार करते हैं तथा इस प्रकार उन्हें अपने परिवार के लिए अतिरिक्त आय भी मिल जाती है।"
उनके बेटे ने बताया कि उनके पिताजी कुंगफू अभ्यास भी करते हैं। उन्होंने बचपन में कुंगफू सीखा था, जिसके कारण आज भी उनका शरीर ताकतवर है तथा नेत्र दृष्टि अच्छी है। आज भी सुई में धागा डालने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती है।
वांग कायचुआन ने कहा कि, "उनके पिताजी की लंबी उम्र का रहस्य संतुलित मात्रा में विविध प्रकार के भोजन करना है। वे अधिक मात्रा में भोजन नहीं खाते परंतु निश्चित रूप से वे विविध प्रकार के भोजन की माँग करते हैं। उनके भोजन में श्रिम्प चटनी, केकड़े की चटनी और मछली अवश्य होनी चाहिए। कभी-कभी वे काले जैतुन का अचार खाने की इच्छा भी व्यक्त करते हैं और वे ज्यादा मांस खाना पसंद नहीं करते।"
वांग यांगझी अब भी नियमित रूप से अपने खेतों में काम करते हैं। उन्होंने पूरी जिंदादिली से अपना जीवन जिया है शायद इसलिए समय भी उन पर मेहरबान है।
पिछले कुछ वर्षों में लुंगछवान बस्ती में सेंटेनेरियन्स (शतायु) का अनुपात बढ़ रहा है। स्थानीय नागरिक मामलों के ब्यूरो से वू रू का मानना है कि इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। "मेरा मानना है कि उन्हें प्राकृतिक वातावरण से लाभ मिला है,वायु की गुणवत्ता अच्छी है, खाना भी आर्गनिक यानि शुद्ध है। इन वरिष्ठ नागरिकों को काम करने में भी आनंद आता है, उनका सकारात्मक दृष्टिकोण और बच्चों के द्वारा भी उनकी अच्छी तरह देखभाल की जा रही है। यही कारण हैं इनके लंबे जीवन का।"
ये सभी वरिष्ठ नागरिक सरल एवं प्रकृति के करीब रहकर प्राकृतिक रूप से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जैसा कि स्थानीय लोगों का मानना है, "घर, तीन समय का भोजन, रिश्तेदार और पुराने मित्रों के साथ प्रतिदिन का मेलजोल" यही है दीर्घायु का रहस्य।
इस रोचक कहानी के लिए दु लिजुन आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम सब दीर्घ तथा गुणवत्ता जीवन जीने के लिए प्रयासरत हैं। यदि हमारे श्रोता भी बेहतर जीवन जीना चाहते हैं तो वे भी हमारे इन सेंटेनेरियन्स (शतायु) से अवश्य प्रेरणा ले सकते हैं।