हाल ही में हांगकांग के फिल्म निर्देशक यूएन वू पिंग ने पेइचिंग में अपनी थ्री डी कुंगफू फिल्म 'ट्रू लेजेंड'का ग्लोबल प्रेमियर रखा। भीड़ में से अचानक पतले-दुबले परन्तु गठीले शरीर वाले एक व्यक्ति जिसके चेहरे पर हल्की-सी दाढ़ी थी और जामुनी रंग का जामा पहना था, मंच पर इस रोबदार तरीके से आ गया मानो फिल्म का नायक हो।
लियू सूईबिन ने गुचिन संगीत पर सदियों पुरानी चिंगचेंग मार्शल आर्ट समुदाय पर आधारित मुट्ठी बंद पानी के कुंगफू करतब जब दिखाए तो पेइचिंग टेलिविजन स्टूडियो में उपस्थित दर्शकों की आँखें फटी की फटी रह गईं।
सिचुआन प्रांत की सुन्दर पहाड़ियों पर स्थित चिंगचेंग कंगफू शाखा के लियू जो झांगमन यानि सर्वोच्च अधिकारी के नाम से प्रचलित हैं ने बताया कि "चिंगचेंग कुंगफू सदियों पुरानी कला है किन्तु यह शाओलिन या वुदांग कला जितनी प्रसिद्ध नहीं है।"
सन् 2008 में संस्कृति मंत्रालय द्वारा 45 साल के कुंगफू गुरु को चिंगचेंग कुंगफू कला एवं संस्कृति के 'मुख्य धारक और प्रचारक'के रूप से सम्मानित किया। परन्तु उनका मानना है कि "इस कभी न खत्म होने वाली कला और परंपरा का प्रचार करना या इसे सहेज के रखना इतना सरल नहीं है।"
वे कुछ प्रसिद्ध कुंगफू उपन्यासों तथा उन पर आधारित फिल्मों का आभार मानते हैं वरना लोगों का यह मानना था कि चिंगचेंग कुंगफू घातक है तथा इसका अभ्यास करने वाले पापी व हिसंक होते हैं।
लियू ने यह भी बताया कि उपन्यासों में जितना लिखा गया है चिंगचेंग कंगफू निःसंदेह उतनी शक्तिशाली या जादुई कला नहीं है। उन्होंने यह कला सछवान की राजधानी चेंगदू के समीप बसे एक छोटे से शहर तूचीआंगयान में अपने दादाजी लियू यूचंग से अपनी किशोरावस्था में सीखी थी। परन्तु उनकी कुंगफू में अधिक जिज्ञासा व रुचि जगाने का श्रेय वे जेट लि और ब्रूस ली की कुंगफू फिल्मों को देते हैं।
लियू ने कहा "मुझे आज भी याद है कि सन् 1980 के मध्य से करोड़ों युवा चीनी कुंगफू की ओर आकर्षित होने लगे।"बाज़ारों में कुंगफू पत्रिकाओं की माँग अचानक इतनी बढ़ गई कि सन् 1986 में कुंगफू विश्व पत्रिका की तीन करोड़ प्रतियाँ हाथों-हाथ बिक गईं। कंगफू अनुसंधान तथा प्रशिक्षण केन्द्र देश के कोने-कोने में खुल गए थे। शोधकर्ताओं ने बुजूर्ग कुंगफू गुरुओं से चीनी कुंगफू पर आधारित पुस्तकों एवं आलेखों पर काम करना प्रारम्भ कर दिया था।
लियू ने चोंगचिंग में अपनी डाक्टरी पढ़ाई के दौरान मुक्केबाजी, कुश्ती, कराटे तथा चीनी शैली की फ्री स्पेरिंग सीखी और कई राष्ट्रीय एवं जिला कुंगफू प्रतियोगिताएँ जीतीं।
वे पहाड़ों में बसे सुनसान क्षेत्र में 'बिवू'नामक कुंगफू प्रतियोगिता जो कुंगफू प्रेमियों के बीच बहुत प्रसिद्ध है, में भाग लेने गए थे।
लियू ने बताया कि "इन कुश्तियों में उन्हें कई चोटें भी लगती थीं लेकिन यह सब उनके लिए बहुत रोमांचक था। ऐसा करते हुए वे अपने आप को किसी कुंगफू फिल्म के नायक जैसा अनुभव करते थे। हालांकि, इन कुश्तियों के लिए न तो उन्हें कोई इनाम या प्रमाण-पत्र मिलता था, न ही मीडिया द्वारा कोई फोटो या रिपोर्ट लिखी जाती थी।" लियू ने 700 कुश्तियों से अधिक में भाग लिया और देश-विदेश के लगभग कई अभ्यासकर्ताओं को हराया भी।
अपनी इस जीत के बाद उन्होंने जाना कि पारंपरिक चीनी 'वूशू' कुंगफू के नाम से अधिक प्रसिद्ध है उसे सीखना आवश्यक है। कड़ी मेहनत के पश्चात उन्होंने पारंपरिक कुंगफू का ज्ञान भी प्राप्त किया।
सन् 1990 में उन्होंने 81 वर्षिय सोंग दज़ाओ नामक गुरू से भेंट की। उनसे मिलकर लियू को लगा कि वे कमज़ोर व वृद्ध हैं इसलिए वे उन पर वार नहीं करेंगे उनका ऐसा सोचना गलत साबित हुआ जब सोंग ने उन के गले पर वार किया और अपनी ताकत का नमूना पेश किया।
सन् 1991 में लियू ने 80 वर्षिय पेंग युआनज़ी नामक एक और गुरु से भेंट की जो सछवान में 'फास्टेस्ट फिस्ट'सबसे तेज़ मुक्केबाज़ के नाम से प्रसिद्ध थे। लियू ने बताया कि, "मुझे आज भी याद है जब पेंग ने अपने शयनकक्ष में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए मुझे आमंत्रित किया तो पलक झपकते ही मैंने अपने आप को हवा में उड़ते हुए अलमारी से टकराते हुए धरती पर अधमरी हालत में पाया।"
लियू होश में आते ही पेंग गुरु के पैरों में गिर पड़े और उनसे निवेदन करने लगे कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें। इसके पश्चात पारंपरिक 'वूशू'के बारे में उनके विचार सदा के लिए बदल गए।
इसके बाद कुछ वर्षों तक सछवान में रहकर उन्होंने 100 से भी अधिक गुरुओं से कुंगफू की विभिन्न शैलियाँ सीखीं और उनकी ये उपलब्धियाँ उन्हें चिंगचेंग शाखा की ओर ले आईं।
सन् 1995 में तूचीआंगयान पीपल्स हस्पताल में एनसथेटिस्ट का कार्य त्याग कर लियू ने चिंगचेंग पहाड़ों पर देश का प्रथम चिंगचेंग कुंगफू प्रशिक्षण केन्द्र का संचालन प्रारंभ किया।
सन् 2008 में आए भूकंप से केन्द्र को भारी क्षति पहुँची और वह ढह गया। लियू ने बताया उस समय वे अपने शिष्यों के साथ कुंगफू का अभ्यास कर रहे थे।
उन्होंने अपने 500 शिष्य स्वंयसेवक बनाकर वनचुआन क्षेत्र में घायलों को चिंगचेंग ताओइस्त स्वास्थ रक्षा के तरीके सीखाने के लिए भेजा।
लियू ने कहा कि कुंगफू केवल फिल्मों में मार-धाड़ या ताकत प्रदर्शन की कला नहीं है। वे यह भी कहते हैं कि लोगों को पारंपरिक चीनी कुंगफू की महत्वता का पूरा ज्ञान नहीं है इसलिए वे ताइकोन्डो, जूडो और कराटे सीखने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं।
सन् 1980 में सछवान में 20 से भी कम युवा चिंगचेंग कुंगफू सीख रहे थे। यह सब लियू के अथक प्रयासों का फल है कि उन्होंने चिंगचेंग कुंगफू की कला को आगे बढ़ाया। वे अब तक 23 देशों के 60,000 शिष्यों को प्रशिक्षण दे चुके हैं।
कई शिष्य देश-विदेश से शाओलिन कुंगफू सीखने हिनान जिले में आते हैं परन्तु लियू ने पाया कि स्थानीय शिष्यों को चिंगचेंग कुंगफू सीखने के लिए केन्द्र तक लाना कठिन है। इसके विपरीत हर वर्ष छुट्टियों में सौ से भी अधिक विदेशी विद्यार्थी चिंगचेंग पहाड़ों पर उनसे यह कला सीखने आते हैं।
लियू चिंगचेंग कुंगफू के प्राचीन नियमों पर कायम रहते हैं और उनका मानना है कि, "कुंगफू के कठिन एवं दुर्लभ तकनीक केवल कुछ विशेष विद्यार्थियों को ही सीखने चाहिए।" लियू अपने विद्यार्थियों को यह कला सिखाने से पूर्व उनकी शारीरिक ताकत और नैतिकता का कठोर इम्तहान लेते हैं और इसके पश्चात जो विद्यार्थी इस परीक्षा में खरे उतरते हैं उन्हें शपथ ग्रहण करनी पड़ती है कि वे चिंगचेंग कुंगफू को आने वाली पीढ़ियों को सिखाएँगे।
हालांकि लियू का यह भी मानना है कि, यदि हमारी विद्यार्थियों से यह अपेक्षा है तो चिंगचेंग गुरुओं को भी अपनी रुपरेखा उसी प्रकार रखनी होगी।
सन् 2002 में लियू ने चिंगचेंग कुंगफू 'पी कोंग चुआन'कौशल का प्रयोग करके एक मीटर की दूरी से छः जलती मोमबत्तियों को बुझाकर गिनिस वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाया।
अब लियू अपनी मुट्ठियों की तेज़ गति से 12 जलती मोमबत्तियों को 1.6 मीटर की दूरी से चंद सेकेंड में बुझा सकते हैं।
उन्होंने हमें समझाते हुए कहा कि, यह किसी तरह की कलाबाजी नहीं है। एक कुशल अभ्यासकर्ता अपने शत्रु पर एक साथ छः बार वार करके चंद सेकेंड में उसे ढेर कर सकता है।
लियू कहते हैं कि कुंगफू सीखने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप हिंसक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति हैं। एक कुशल एवं सच्चे कुंगफू गुरु के लिए केवल युद्ध में लड़ने के लिए घातक कौशल होने के अतिरिक्त और भी अधिक गुणी होने की आवश्कता है।
लियू ने बताया कि उनके छात्र जो छः वर्ष के बच्चों से लेकर 81 वर्ष के वृद्ध हैं उनके लिए ताओ ते चिंग ताओस्ति ग्रंथ, चिंगचेंग कुंगफू का इतिहास और चिंगचेंग पहाड़ों के ताओस्ति रीति-रिवाज का ज्ञान होना अनिवार्य है।