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कजाक जाति के परिवार की सैर
2010-01-26 09:24:50

चीन के पश्चिमी भाग सिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश में विशाल घास का मैदान है। यहीं पर पहाङों और विशाल घास के मैदान के बीच स्थित एक छोटे से गाँव में पक्षियों का कलरव, गायों और भेङों के झुंड में प्रकृत्ति की अनुपम सौंदर्य नजर आता है। आजकल यह प्राकृतिक सौंदर्य, शहर के लोगों को अपनी और बरबस आकर्षित करती है, जिससे इसमें कुछ आधुनिक छटाएँ भी आ गई है। आज हम आपको सिनचियांग के सिन युएन प्रिफ्केचर के नालाथ के एक कजाक जाति के परिवार की सैर करायेंगे।

कजाक जाति के शानशिबे पहले ही अपने पुराने झोपङी से रंग-बिरंगे टाईल वाले छतदार घर में प्रवेश कर चुके हैं। इनका रंग-बिरंगा चमकीला पर सुंदर लैंडस्केप वाला घर बहुत दूर से दिखाई पङ जाता है। घर के अंदर लाल परदा, कारपेट, विभिन्न वस्तुओं से कजाक जाति की विशेषताएँ झलकती है। लेकिन, आधुनिक वस्तुएँ टेलीविजन, टेलीफोन आदी लोगों को और अधिक आकर्षित करती हैं।

घर में इनका हाथ बँटाने वाली इनकी बहू ने हमें बताया, हमलोग घर में 28 चैनलों पर टीवी देख सकते हैं और बिना तार वाले सेटेलाईट कार्यक्रम भी देख सकते हैं। अब जीवन बहुत आसान हो गया है, दस साल पहले हमारे पानी और बिजली भी नहीं थी। यह घर भी हमने खुद बनाया है, इसे भी सात साल हो गये हैं। सरकार हमारी बहुत सहायता करती है, मुसिबतों के समय सरकार हमेशा सहायता करने को तत्पर रहती है। मकान के निर्माण के समय सिमेंट, छङ आदी सभी सरकार के द्वारा मुफ्त में दिया जाता है।

शानशिबे जी इस साल 84 वर्ष के हो गये हैं। जवानी के दिनों में, सेना में भी भर्ती हुए थे और जापानी आक्रमण-विरोधि युद्ध में शामिल हुए थे। वर्तमान में शानशिबे जी सिनचियांग में नालाथ जिला के आला शान गाँव में निवास कर रहे हैं। वर्ष 2001 में, स्थानिय सरकार ने इनके अदभुत योगदान के लिए, मकान का निर्माण करायी और प्रत्येक महिने मासिक जीवन भत्ता भी दती है। एक साल के बाद, इन्होनें एक और मकान अपने निचली पीढी के लिए बनवाया जिससे वे लोग भी उनके साथ अपना जीवन बसर कर सकें।

शानशिबे जी युवावस्था में खानाबदोश कजाक जाति के तरह थे। उस समय उनलोगों के पास न बर्तन थे न ही चुल्हा, उनके दादा जी लोग पत्थर पर ही खाना बनाते थे और रंग-बिरंगी तंबुओं के साथ विशाल मैदान में घुमते रहते थे। उस समय, उनलोगों का जीवन जानवरों के मांस और दूध पर ही निर्भर था और ठंढ से बचने के लिए जानवरों के चमङे से बने कपङे का प्रयोग करते थे। शानशिबे जी कहते हैं, उस समय किसी को पता नहीं था कि कब स्थिर जीवन शुरू करेंगे और उससे भी ज्यादा भविष्य के बारे में तो कोई भी नहीं सोचता था। सभी को एक ही चिंता रहती थी कि कैसे भोजन का प्रबंध हो और ठंढ से बचा जाए।

शानशिबे जी सेना से रिटायर होने के बाद, गाँव के कार्यालय में काम करते हुए तीस साल हो गये हैं। इन तीस सालों में गाँव में हुए परिवर्तन से वे काफी संतुष्ट हैं। उन के अनुसार, तीस साल पहले, सरकार को मजदूर की आवश्यकता कम पङती थी, बाहर जाकर काम करने पर भी पैसा कमाना मुश्किल था, परिवार को चलाना काफी कठिन था। तीस साल बाद, अगर आप मेहनती हैं तो फल मिलता है, दूसरे शब्दों में , आप जो चाहते हैं कर सकते हैं। तीस साल पहले, अनाज की कमी थी, आदमी की छोटी-छोटी जरूरतें भी पूरी करनी मुश्किल लगती थी, लेकिन आज तीस साल बाद, असंभव परिवर्तन हुआ है, सभी लोग काफी संतुष्ट हैं। इसके बदले में विभिन्न जाति के लोग एक जुटता के साथ सदभावपूर्ण वातावरण के निर्माण में सरकार की सहायता कर रहे हैं।

कुछ साल पहले, स्थानीय सरकार ने विभिन्न खानाबदोश जाति को स्थानीय जीवन बिताने के लिए 25000 युवान की सहायता दी, इसके अलावा घर और मकान की व्यवस्था और निर्माण में भी सहायता की। वे कहते हैं कि, स्थिर जीवन शुरू करने के बाद उनके जीने के ढंग में भी परिवर्तन हुआ है। अब सभी के पास ऋतुओं के अनुसार खेती करने के लिए जमीन उपलब्ध है। हमलोग इसी जमीन में खेती और पशु पालन करते हैं। खानाबदोश लोगों का पहले के घुमंतु जीवन का रूपांतरण आधुनिक स्थिर जीवन में हो गया है। अब लोग अपने खेत में ही अनाज पैदा करते हैं, कुछ लोग व्यापार भी करते हैं और पैसा अपने परिवार में खर्च करते हैं। लोग बहुत खुशहाल हो गये हैं।

शानशिबे जी की पाँच बेटे और पाँच बेटियाँ हैं। सभी बेटियों की शादी हो चुकी है, बेटे बाहर काम करते हैं। शानशिबे जी अपनी पत्नी, छोटे बेटे और बहू तथा तीन पोते के साथ रह रहे हैं। शानशिबे जी के साक्षात्कर के समय, इनकी पत्नी और बहू खिङकी के पिछे से हमारी बातें सुन रही थीं और बीच-बीच में हँस भी रही थीं। शानशिबे जी बङे गर्व से कहते हैं, मैं भी पाँच भाई और बहनें हैं और मेरी भी इसी तरह से दस संताने हैं। अभी के समय में बहुत परिवर्तन है। यातायात बहुत आसान है, रेडियो, टेलीविजन से चारो दिशाओं की जानकारी मिलती है। मेरा सबसे पसंदिदा शौक किताब पढना है, देश की स्थिति की जानकारी प्राप्त करना है, लेकिन अब उम्र ज्यादा होने के कारण दृष्टि अच्छी नहीं रही लेकिन गाँव के बच्चे हमेशा हमें खबर पढकर देश की जानकारी देते रहते हैं।

चीनी व्यक्ति दूसरों को अपनी आमदनी के बारे में बताने से संकोच करते हैं लेकिन शानशिबे जी ने हमें बहुत गर्व से बताये कि, उनके पास 100 भेङ, 20 गाय और 20 घोङे हैं। ये सभी पशु सिनचियांग के असली नस्ल के हैं जिससे शानशिबे जी की सालाना आमदनी पचास हजार युवान तक होती है।

शानशिबे जी से बातचीत के दौरान, बच्चे घर में खेल रहे थे, वे कहते हैं कि बच्चे सभी स्कूल जाते हैं। स्कूल घर के नजदीक ही है, जिसका निर्माण बाहरी दान की राशी से हुआ है। उनकी आशा है कि, बच्चे बङे होकर शहर जाएँ और देखें। वे कहते हैं, उनकी बङी ईच्छा है देश की राजधानी पेइचींग देखने की। उस समय, खेती-बारी और सबकुछ बच्चों की देख-रेख में छोङकर पत्नी के साथ सैर पर दुनिया देखने के लिए जाना है।

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