Web  hindi.cri.cn
स्थानीय ओपेरा की एक चमकती सांस्कृतिक विरासतःसूचओ ओपेरा
2010-01-11 11:19:59

सूचओ ओपेरा चीन के च्यांगसू और चेच्यांग प्रांतो की एक किस्म की अनोखी संस्कृति कला है। 1941 में कोफंग सूचओ ओपेरा मंडली शांगहाए में स्थापित हुई। सूचओ ओपेरा आम तौर पर परम्परागत थाएफिंग धुन, सितार धुन और सूचओ की विशेष छाए धुन आदि दसेक धुनों की एक मिश्रित कला है। इस में चीनी वाईलन , इस ओपेरा संगीत संयंत्र मुख्य साधन है, इस के सिवाए बारीक बेम्बू से बजायी जाने वाली धुन भी इस में इस्तेमाल की जाती है। संगीत की धुन में दक्षिण चीन के अनोखे स्वर व मधुरता सुनने को मिलते हैं, इस ओपेरा की विख्यात प्रस्तुतियों में सफेद खरगोश व बाग की कली विशेष है। आज हम आप को दो पीढ़ी के सूचओ ओपेरा के कलाकारों से इस कला की कहानी सुनते हैं।

अभी आप ने सूचओ ओपेरा की कलाकार वांग फांग की आवाज में नशे से घर आने की एक धुन सुनी। उनके सुरीले व मीठे स्वर व सूचओ की मधुर धुन ने उन्हे चीन में चीनी ओपेरा कला का सर्वोच्च पुरूस्कार यानी चमेली फूल पुरूस्कार दिलाया। सुश्री वांग फांग आज इतनी सफल कलाकार बनी हैं, उसका सेहरा उनके गुरू सुश्री च्यांग वी फांग को बांधा जाता है। च्यांग वी फांग सूचओ ओपेरा की पहली महिला यानी सूचओ ओपेरा की फर्स्ट लेडी गुरू के नाम से जानी जाती है, उनकी रचना में नशे में घर आने के मुख्य कलाकार श्री छिंग चुंग रहे हैं। उन्होने इस पुरूष रोल को इतनी माहिरता से सजाया है कि किसी भी महिला के लिए एक बेहद कठिन कला कहलायी जा सकती है। उनकी शिष्य वांग फांग ने इस की जानकारी देते हुए कहा

उनका स्वर इतना मधुर है और उनके गले की आवाज इतनी मनमोहक व रोमान्टिक है कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। उनका पात्र पूरे ओपेरा की कहानी व कलाकार से इतनी अच्छी तरह मेल रखता है कि दर्शक अपनी उंगली दांत तले दबा देते हैं। आज तक भी इस माहिर कला को किसी भी एक महिला इसकी नकल या उसको सीख सकने में सफल नहीं रही है। उन्होने अपनी पूरी कोशिशों से मुझे अपनी सबसे मशहूर ओपेरा नशे में घर आने की धुन सिखाया है, मैंने उनकी स्वर चोटी तक पहुंचने पर भी कड़ी मेहनत की है, आज तक भी उनकी भावना मेरे दिल में भारी प्रभाव डालती आयी है।

गुरू च्यांग वी फांग सूचओ ओपेरा की पहली पीढ़ी की कलाकार हैं, 12 साल की उम्र में उन्होने एक कला मंडली में शामिल होकर इस कला को सीखना शुरू किया और तब से वे सूचओ ओपेरा की धुन में खो गयी। इस से पहले सूचओ ओपेरा केवल एक छोटी सी कला के रूप में कुछ दर्शकों के बीच सुनायी जाती थी। इस कला में नयी जान फूंकने के लिए उन्होने अन्य प्रांत के ओपेरा की खूबियों को बड़ी कलात्मक रूप से सूचओ ओपेरा कला में जा मिलाया, जो आज एक नयी सूचओ ओपेरा कला के रूप में स्टेज में जा पहुंची है।

गुरू च्यांग वी फांग ने बहुत पहले से ही सूचओ ओपेरा पर भारी रूचि दिखलायी थी और तब से उन्होने इस अनोखी व अदभुत क्षेत्रीय ओपेरा के पुराने शास्त्रों का अध्ययन भी करना शुरू कर दिया। हालांकि समाज दिन प्रतिदिन तरक्की कर रहा है, सो सूचओ ओपेरा की कला भी युग की धारा से मेल खाए बिना नहीं रह सकती है। और तो और दर्शकों के ओपेरा सुनने की मांग में प्रगति को देखते हुए, सूचओ ओपेरा में नयी धुनों व नए संगीत संयंत्रों में प्रचुरता लाना अनिवार्य बन गया है। केवल छोटे मंच में बैठे , गोद में सितार या वाइलिन लिए अकेले व युगल स्वर में गाना , दर्शकों को शायद बोर कर सकता है और इस से कलाकार के अभिनय में परिसीमन लग सकता है। इस लिए उनके दिमाग में एक विचार उभरा, क्यों न सूचओ ओपेरा को भी अन्य स्थानीय ओपेरा की तरह बड़े स्टेज में लाया जाए और कलाकारों के नृत्यों व संगीत संयंत्रों की विविधता से मिलाकर उस को नया रूप दिया जाए तो कितना अच्छा होगा। उन्होने अपने इस विचार को बुजुर्ग कलाकारों के बीच रखा ही था कि उन्हे उनका एक स्वर में समर्थन मिला। गुरू च्यांग वी फांग की सबसे घनिष्ठ सखी, 89 वर्षीय सूचओ ओपेरा की मशहूर कलाकार ने भी अपनी याद ताजा करते हुए कहा

मेरे जमाने में केवल एक छोटा मंच होता था, जहां हम एक या दो सखी संगीत संयंत्रो के साथ सूचओ ओपेरा गाते थे, लेकिन आज ये मेरी सखी च्यांग वी फांग की मेहनत से एक छोटे से मंच से निकलकर एक बड़े स्टेज में प्रवेश कर चुकी है।

गुरू च्यांग वी फांग ने दक्षिण चीन की कुछ लोगों द्वारा भुलाई गयी पुरानी धुनों को भी ताजा किया और उसे सूचओ ओपेरा में मिला डाला, जिस से उसकी आवाज में शुद्ध व गहरी दक्षिण चीन की महक व सुंगध मिलने लगी है। सुनने वाले एक दम पहचान जाते हैं कि यह सूचओ ओपेरा ही है।

इस के अलावा, च्यांग वी फांग ने अभिनय के पात्रों की विभिन्नता को ध्यान में रखकर बड़ी सावधानी से संगीत के धुनों से उनका मिलन किया, और अभिनय की व्यक्तिगत विशेषता व खूबियां को बड़ी बेहतरीन रूप से सजाया कि ओपेरा के संगीत संयंत्रो व धुनों में अन्य कलाकारों ने भी अपनी माहिरता भी प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी , इस तरह सूचओ ओपेरा आज की एक बिल्कुल नयी ,पर बिल्कुल दक्षिण चीन की पहचान वाला अनोखा ओपेरा बन गया है, और वे आज एक कुशल संगीतकार के रूप में पूरे चीन में प्रसिद्ध हो गयी हैं।

गुरू च्यांग वी फांग की सबसे अच्छी शिष्य होने के नाते वांग फांग ने भी अपनी कला माहिरता से अपने गुरू की शिक्षा को रोशन किया ।वांग फांग ने कहा कि गुरू च्यांग वी फांग अपने शिष्यों को अपने बच्चों की तरह सिखाती पढ़ाती हैं, अनेक शिष्यों ने उनकी कला माहिरता से न केवल कला का अध्ययन किया है बल्कि एक सर्वश्रेष्ठ व सृजनात्मक कलाकार बनने की कला भी सीखी हैं। उन्होने हमें बताया

मैंने जब इस मंडली में प्रवेश किया था तो गुरू च्यांग वी फांग कब की एक मशहूर ओपेरा कलाकार के नाम से चीन में जानी जाती थीं, वे हमारे सूचओ ओपेरा की एक आधारशिला हैं, हम सब उनका सम्मान करते हैं, लेकिन उन्होने कभी भी एक बड़ी उम्र व एक बड़े कलाकार की अदा से हमें निराश नहीं किया, वे हमेशा जीवन में जैसी रही हैं, वैसी ही स्टेज में रही हैं।

जनवरी 2008 में गुरू च्यांग वी फांग का सूचओ में निधन हो गया। उन्होने 87 वर्ष की आयु तक अपने पूरे जीवन को सूचओ ओपेरा से जोड़ रखा था, उनको श्रंद्धाजलि अर्पित करने वाले हाल में उनके ओपेरा की धुन आज भी लोगों को और उनके शिष्यों को उनकी मधुर आवाज व आदर्श जीवन की याद में डाल देती हैं। वे हमेशा लोगों के दिल में अमर रहेंगी।

संदर्भ आलेख
आप की राय लिखें
सूचनापट्ट
• वेबसाइट का नया संस्करण आएगा
• ऑनलाइन खेल :रेलगाड़ी से ल्हासा तक यात्रा
• दस सर्वश्रेष्ठ श्रोता क्लबों का चयन
विस्तृत>>
श्रोता क्लब
• विशेष पुरस्कार विजेता की चीन यात्रा (दूसरा भाग)
विस्तृत>>
मत सर्वेक्षण
निम्न लिखित भारतीय नृत्यों में से आप को कौन कौन सा पसंद है?
कत्थक
मणिपुरी
भरत नाट्यम
ओड़िसी
लोक नृत्य
बॉलिवूड डांस


  
Stop Play
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040