दोस्तो , चीन एक कृषि प्रधानता वाला देश है , 70 करोड़ से अधिक लोग गांवों में बसे हुए हैं । इधर सालों में चीन सरकार ने साल ब साल कृषि व गांवों के विकास में ज्यादा पूंजी लगायी है , जिस से चीन के कृषि व ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तरक्की हुई है । खासकर मौजूदा विश्व वित्तीय संकट के मुकाबले में कृषि व गांवों ने चीनी आर्थिक स्थिरता को बनाये रखने में अहम भूमिका निभायी है और वित्तीय संकट के मुकाबले के लिये मजबूत नीव डाल दी है ।
2004 से लेकर अब तक चीन सरकार ने हर वर्ष में जो प्रथम सरकारी दस्तावेज जारी किया है , वह अवश्य ही कृषि व ग्रामीण विकास से संबंधित है , इस से जाहिर है कि चीन सरकार ने कृषि , गांवों और किसानों को कितना महत्व दिया है । इतना ही नहीं , इधर सालों में केंद्रीय वित्त ने कृषि व ग्रामीण क्षेत्रों में जो पूंजी लगायी है , वह भी साल ब साल बढ़ती गयी है , 2003 और 2004 में यह पूंजी तीन खरब य्वान से बढ़कर 2008 में पांच खरब 90 अरब य्वान तक हो गयी , जबकि 2009 में यह पूंजी एकदम सात खरब दस अरब य्वान से अधिक हो गयी । इस पूंजी में सरकार द्वारा किसानों को प्रदत्त भत्ता , कृषि उत्पादन में धनराशि , ग्रामीण चिकित्सा व स्वास्थ्य जैसे सार्वजनिक सामाजिक कार्यों और ग्रामीण बुनियादी आधारभूत संस्थापनों के निर्माण में लगी पूंजी भी शामिल है ।
2009 में विश्व वित्तीय संकट के लगातार विस्तार की पृष्ठभूमि में चीन की कृषि पैदावार में शानदार फसलें काटी गयी हैं , जो लगातार 6 वर्षों तक नया रिकार्ड बना रहा । किसानों की आय भी अनुमान से अच्छी है , प्रति किसान के हिस्से में औसत शुद्ध आय पांच हजार य्वान से अधिक होगी , जो 6 प्रतिशत बढ़ेगी । चीनी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति को पिंग शंग ने कहा कि यह शानदार उपलब्धि इधर सालों में सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजी बढाये जाने से प्राप्त हुई है , जिस से चीजों के दामों को स्थिर बनाने में अहम भूमिका निभाई गयी है और वित्तीय संकट के मुकाबने के लिये अनुकूल स्थिति भी तैयार ह़ुई है ।
मेरा विचार है कि कृषि व ग्रामीम आर्थिक विकास से वित्तीय संकट के मुकाबले के लिये मजबूत नीव डाली गयी है और अत्यंत महत्वपूर्ण गारंटी प्रदान की गयी है । यदि लगातार 6 सालों तक शानदार फसलों व अन्य कृषि उपजों में वृद्धि न हुई होती , तो हमारे बाजारी दाम और कृषि उपजों की सप्लाई इतनी अच्छी नहीं होती , उल्टे अत्यंत गम्भीर चुनौतियों का सामना करना ही पड़ेगा।
चीनी जन विश्वविद्यालय के कृषि व ग्रामीण विकास कालेज के प्रधान प्रोफेसर वन थ्येन चुन ने कहा कि कृषि व गांवों की भूमिका चीनी आर्थिक स्थिरता व आधार मजबूत बनाने के लिये निहायत जरूरी मात्र नहीं है । 2009 के शुरु में चीन में करीब ढाई करोड़ किसान मजदूर वित्तीय संकट की वजह से बेरोजगार हो गये , यदि किसी दूसरे देश में यह स्थिति प्रकाश में आयी , तो संभवतः सामाजिक उपद्रव पैदा हो सकता , पर चीन में कोई दिक्कत नहीं आयी , इस का श्रेय गांवों को जाना ही होगा ।
जब आर्थिक संकट से भूमंडलीय उद्यम प्रभावित हुए हैं , तो हालांकि हमारे देश में कुछ कारोबार मंदी में फंस गये हैं या दिवालिया हुए हैं , पर किसान मजदूर फिर भी अपने गांव वापस लौट सकते हैं । क्योंकि वे ग्रामीण क्षेत्रों में दूसरे रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं ।
कुछ समय से पहले संपन्न केंद्रीय ग्रामीम कार्य सम्मेलन में चीन सरकार ने कृषि , गांव व किसान सवाल को महत्व देना जारी रखने का इरादा व्यक्त किया और 2010 में वे ग्रामीण कार्य के पांच प्रमुख मुद्दे पेश किये हैं , जिन में प्रमुख कृषि उपजों की आपूर्ति की गारंटी , किसानों के रोजगार का विस्तार और ग्रामीण सार्वजनिक कार्य का विकास आदि विषय शामिल हैं।
चीनी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति को पिंग शंग ने कहा कि कृषि , गांव व किसान सवाल की आधारभूत भूमिका को सदा के लिये नजरअंदान नहीं किया जा सकता , इसी संदर्भ में पूंजी बढाना और तेज विकास करना आवश्यक है ।
वित्तीय संकट लद जाता है , पर कृषि आधार की अवहेलना सदा के लिये नहीं की जा सकती . क्योंकि हमारे सन्साधन , तकनीक स्तर व आधारभूत संस्थापन हमारे भावी विकास के अनुरुप नहीं हैं । यदि कृषि में कुछ गड़बड़ी पैदा होगी , तो इस से हमारे समाज व राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ेगा , वह अवश्य ही वित्तीय संकट से कहीं अधिक गम्भीर ही होगा ।