श्री ल्यो हुंग वू चीन के प्रसिद्ध अफ्रीकी सवाल के अनुसंधान विशेषज्ञ है,उन्हे अफ्रीका के अनुसंधान कार्य में लगे करीब 20 साल हो चुके हैं और उन्होने अफ्रीकी संस्कृति अध्ययन, दाफुर सवाल अध्ययन आदि दसेक पुस्तकें प्रकाशित की हैं, उन्होने अफ्रीका के 20 से अधिक देशों की भी यात्रा की हैं, अफ्रीका इतिहास और संस्कृति पर उनका गहरा अनुसंधान रहा है। ध्यानाकर्षित बात यह है कि कुछ समय पहले मिश्र के शर्म अल शेख में आयोजित चीन-अफ्रीका सहयोग मंच की चौथी मंत्री स्तरीय बैठक में उनकी अफ्रीका पर लिखी एक पुस्तक को बैठक में आदान प्रदान के लिए सौंपी गयी।
श्री ल्यो हुंग वू का जन्म 1958 में दक्षिण पश्चिम चीन के युननान प्रांत के सी स्वांग पानना प्रिफेक्चर में हुआ था, यूनिवर्सिटि में पढ़ने के समय से ही उन्हे विश्व इतिहास और मध्य पूर्व विषय पर गहरी रूचि रही। अफ्रीका में पढ़ने के अनुभव व अफ्रीका के प्रति उनके प्यार ने उन्हे आखिर अफ्रीका के अनुसंधान के मार्ग पर ले चला। उन्होने हमें बताया(आवाज1) कहने के लिए यह एक संयोगवश बात है, लेकिन असल में यह एक अनिवार्य घटना भी है। 1990 में मैं पहली बार अफ्रीका में पढ़ने आया और मौके पर नाइजीरिया के लागोस विश्वविद्यालय में अतिथि स्कोलर के रूप में अपना अध्ययन शुरू किया। उस समय अफ्रीका में जाकर पढ़ने वाले लोग बहुत ही कम थे, लगभग कोई वहां जाना नहीं चाहता था। लेकिन मुझे अफ्रीका बहुत ही आकर्षित जगह लगी, इसलिए मैं वहां चला गया। यह एक सौभाग्य की बात है, इसे एक अनिवार्य घटना भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह मेरे बचपन के जीवन से संबंध रखता है। मैं छुटपन से ही चीन के सीमांत क्षेत्र में पला बड़ा हुआ हूं, वहां की प्राकृति से मुझे बड़ा लगाव है, मुझे अल्प संख्यक जातियों की संस्कृति व कला बेहद पसंद है, और अफ्रीका बिल्कुल ऐसी ही जगह है, वहां की प्राकृति, पर्यावरण, संस्कृति तथा कला ने मुझे बहुत हीं आकर्षित किया, मुझे अफ्रीका की संस्कृति व इतिहास के अनुसंधान पर गहरा लगाव है, तो अफ्रीका जाना मेरे लिए बिल्कुल स्वाभाविक है।
1991 में श्री ल्यो हुंग वू नाइजीरिया से स्वदेश लौटे और उन्होने युन्नान यूनिवर्सिटी में अफ्रीका अनुसंधान अध्ययन विषय खोला, अफ्रीका अनुसंधान व अध्ययन तब से इस यूनिवर्सिटी के विश्व इतिहास का एक कोर्स बन गया। चीन में अफ्रीका अनुसंधान कार्य को गति देने व सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण करने के लिए श्री ल्यो हुंग बिंग ने विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय व चेच्यांग यूनिवर्सिटी के समर्थन तहत सितम्बर 2007 में चेच्यांग नार्मल कालेज में पहला अफ्रीका अनुसंधान प्रतिष्ठान खोला। दो साल के प्रयासों तले, इस अनुसंधान प्रतिष्ठान का पैमाना विस्तृत हुआ और वह चीन में सबसे प्रसिद्ध अफ्रीका अनुसंधान की संस्था बन गयी। इस के अलावा, अफ्रीका अनुसंधान पुस्तकालय, अफ्रीका कला संग्राहलय की भी स्थापना हुई, विदेश मंत्रालय के समर्थन में वहां चीन-अफ्रीका सहयोग मंच अनुसंधान केन्द्र की भी स्थापना की गयी।
वर्तमान इस अफ्रीका अनुसंधान केन्द्र ने विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वैदेशिक संपर्क मंत्रालय के अफ्रीका विषयों के अध्ययन व अनुसंधान का कार्य का बोझ लिया है। श्री ल्यो हुंग बिंग द्वारा संपादित अंग्रेजी संस्करण की पुस्तक -- चीन-अफ्रीका सहयोग – ने पिछले पचास सालो में चीन के स्कोलरों के चीन-अफ्रीका संबंध अध्ययन का निचोड़ किया और इस अध्ययन ग्रंथ को चीन सरकार की ओर से नवम्बर 2009 में मिश्र के शर्म अल शेख में आयोजित चीन-अफ्रीका सहयोग मंच की चौथी मंत्री स्तरीय बैठक में आदान प्रदान के लिए सौंपी गयी, जिस में अफ्रीकी जनता के प्रति चीनी जनता की मैत्रीपूर्ण स्नेहपूर्ण भावना प्रतिबिंबित की है।
श्री ल्यो हुंग बिंग चीन के प्रसिद्ध अफ्रीकी सवाल के विशेषज्ञ होने के नाते, अनेक बार अफ्रीका की यात्रा की हैं, और अफ्रीका में बहुत से मित्र बनाए हैं, उनके अफ्रीका के प्रति ऊंची संलग्न ने बहुत से अफ्रीकियों को बेहद प्रभावित किया है। वह चीन-अफ्रीका जनता मैत्री संघ द्वारा घोषित सबसे प्रभावित दस चीनी व्यक्ति की उपाधि से भी सम्मानित किए गए हैं, इस पर टिप्पणी करते हुए उन्होने कहा(आवाज2) अफ्रीकी महाद्वीप दुनिया को प्रभावित कर सकती है। एक व्यक्तिगत आदमी होने पर यदि मेरे काम ने अफ्रीकी लोगों को प्रभावित किया है तो यह मेरे लिए अत्यन्त गौरव है। मैंने एक साधारण चीनी के रूप में पिछले 30 सालों में अनेक पीढ़ी के बुद्धिजीवियों का प्रतिनिध कर बहुत सी कठिनाईयों को जूझकर अफ्रीका के विविध सौन्दर्य रूप को प्रदर्शित करने के साथ उसके मूल्य को भी ढूंढ निकाला है, यह विश्व सभ्यता के दौर में एक योगदान ही है, जिसे मैंने अपनी आम जनता को इसका प्रचार कर प्रचुर जानकारियां दी हैं। इस तरह चीन और अफ्रीका इन दो प्राचीन सभ्यता वाले देशों की दूरी को कम कर दोनों के बीच आवाजाही व संपर्क को बढ़ावा दिया है।
श्री ल्यो हुंग बिंग का मानना है कि पिछले 50 सालों में चीन और अफ्रीका की जनता की मैत्रीपूर्ण भावना बढ़ती रही है, चीन और अफ्रीका आपस में एक दूसरे का समर्थन करते आए हैं, अफ्रीका ने चीन के लिए बहुत से दिल को छू देने वाले कार्य किए हैं। इस साल की गर्मी में पूर्वी चीन के हांगचओ शहर में आयोजित अफ्रीका के चीनी भाषा प्रशिक्षण क्लास में, प्रोफेसर ल्यो ने अपने स्वंय के अनुभवों से मिश्र व दक्षिण अफ्रीका आदि 30 से अधिक देशों के अफ्रीकी चीनी भाषा के शिक्षकों को अपनी एक बीती कहानी सुनायी(आवाज3) मैंने अपनी पहली यात्रा अफ्रीका के विश्वविद्यालय की पढ़ाई से शुरू की थी, आप लोगों ने ही मुझे व मेरे साथियों को अफ्रीकी संस्कृति के मूल्य व महत्व से अवगत कराया था, इस पहलु में आप मेरे शिक्षक हैं। अफ्रीकी जनता ने ही चीनी लोगों की प्रथम पीढ़ी के अरबी स्कोलरों को प्रशिक्षित किया था, इस अर्थ से हम सब अफ्रीकी लोगों के विद्यार्थी हैं। अफ्रीकी लोग चीनी लोगों के सीखने के मिसाल हैं।
अफ्रीकी महाद्वीप की अपनी अनोखी शैली है, किसी भी व्यक्ति को इसे समझने के लिए पहले उसके अनोखे पर्यावरण व संस्कृति पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए। बहुत से चीनियों ने श्री ल्यो हुंग बिंग की पुस्तकों से अफ्रीका की जानकारी हासिल की हैं और बाद में अफ्रीका को पसंद करने लगे। किस तरह अफ्रीकी सवाल के अध्ययन को जारी रखा जाए, इस पर अपना विचार व्यक्त करते हुए श्री ल्यो हुंग बिन ने कहा(आवाज4) अफ्रीका के अनुसंधान पहलु में मैंने तीन बात पर जोर दिया। एक बात यह है कि अफ्रीका को अपने दिल में रखना, दूसरी बात है चीन की विशेषता पर ध्यान दिया जाए , तीसरी बात है कि विश्व दृष्टिकोण होना, मैं आशा करता हूं कि उक्त तीन बातों के आधार पर मैं चीनी विशेषता वाले अफ्रीकी विषय का निर्माण कर सकने में अधिक सफल रहूंगा।