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हूपए प्रांत की छांगयांग दक्षिण संगीत धुन चीन की एक गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत
2009-10-26 16:12:20

छांगयांग दक्षिण संगीत धुन चीन के हूपए प्रांत के दक्षिण पश्चिम इलाके के छांगयांग थू जाति स्वायत्त काउंटी के छिंगच्यांग नदी किनारे क्षेत्रों में बहुत ही लोकप्रिय एक स्थानीय संगीत कला है। उसकी ऊंची आवाज व महकती धुन से निकली सुन्दर व सुरीली मनोहर भाव बहुत ही भरपूर है जो वहां के लोगों की जुबान में खुश्बूदार फूल के नाम से जानी जाती है।

छांगयांग क्षेत्र हूपए प्रांत के इ छांग थू जाति का बहुल क्षेत्र है, यह जगह चीन के दो प्राचीन परम्परागत संस्कृतियों के उदगम स्थान पा व छू संस्कृति के संगम का स्थल है। इ छांग लोक कला ने तो इन दो परम्परागत संस्कृतियों का बड़े शानदार से मिलन किया है। छांगयांग थू जाति दक्षिण धुन चीन के प्राचीन मिंग व छिंग राजवंश की लोक धुनों के आधार पर उत्पन्न व विकसित होने वाली एक बहुत ही पुरानी संगीत कला है. छिंग राजवंश के काल में यह संगीत धुन इस थू जाति के इलाके में फैलने लगी और थू जाति व हान जाति की विभिन्न संस्कृतियों की सबसे सौन्दर्य धुन से बनी इस संगीत को एक नया रूप दिया गया है, तब से यह संगीत कला थू जाति इलाके में उभरने लगी और आज तक अधिकाधिक बढ़ती जा रही है। छांगयांग थू जाति स्वायत्त काउंटी की जातीय लोक परम्परागत सांस्कृतिक संरक्षण केन्द्र के अध्ययनकर्ता ताए चंग छिन ने जानकारी देते हुए कहा:

छांगयांग दक्षिण संगीत धुन पूरे हूपए इलाके की अपेक्षाकृत एक बहुत ही प्राचीन स्थानीय लोक कला है, अनेक पीढ़ी के कलाकारों के इस धुन को रचने व इस संगीत से मेल रखने वाले संगीत यंत्रों का रूपांतरण किया गया है, लगभग छिंग व मिंग राजवंश के काल में यानी आज से करीब दो सौ साल पहले यह संगीत कला छांगयांग में उभरने लगी थी।

हालांकि पेशावर कलाकार के अभाव के कारण, आज की छांगयांग संगीत कला की यह धुन मुख्य तौर से जनता के बीच फैलने लगी, और दोस्तों के बीच गुनगुनाने या पिता द्वारा बेटे को इस कला की माहिरता देने आदि तरीकों से पीढ़ी दर पीढ़ी उक्त प्राचीन संगीत इस इलाके में फैलने के साथ उभरती भी रही है। आज भी थू जाति अपने अनेक त्यौहारों , शादी विवाह, जन्म दिन जयंती तथा श्रम के अवकाश जैसे पुन्य समय में एक साथ इकटठे होकर हाथ में चीनी गिटार लिए इस धुन की ताल पर गाते हैं और पूरे माहौल को हर्षोल्लास की एक ऊंची मंजिल तक पहुंचा देते हैं। दक्षिण संगीत धुन कला का गृहस्थान होने के रूप में छांगयांग चीछयो इलाका, हर दिन की सूनी रात को अनेक घरों व जगहों में इस धुन की महकती व झलकती धुन आकाश में झूमती व गूंजती सुनायी देती है, पूरा कस्बा रात्रि की इस सुरीली धुन में खो जाता है और लोगों के मन में आन्नद की लहर लेकर आता है।

छांगयांग संगीत कला की खूबी यह है कि वह बड़ी सुन्दरता से धुन व स्वर को एक साथ मिला लेता है और संगीत यंत्रों की मदद से सुरीली व मधुर धुन बनकर लोगों को जिन्दगी का आन्नद प्रदान करता है। आइये सुनते इस संगीत कला की एक धुन , इस धुन का नाम है वसंत बहार के बाद आया सावन का मौसम, जिसे सुनकर आप एक अनोखा सा अहसास महसूस कर सकते हैं।

वसंत बहार के बाद आया सावन और फिर इस के बाद आने वाला शरद मौसम। इस धुन से लगता है मानो आप ल्यूलिंग नदी की धारा में एक छोटी सी नौका में बैठे हैं, और पतवार नौके के आगे खड़ा अपनी नौका को एक मनोरम जगह में ले जा रहा हो।

रोजमर्रा के जीवन में छांगयांग संगीत धुन आम तौर पर बैठ कर गायी जाती है, और अकसर इसे एक आदमी गाता है और खुद अपना संगीत यंत्र बजाता है, गायक व गायिका अपने असली वातावरण व वास्तविक माहौल के हिसाब से धुन के स्वरों को बदल सकते हैं और उसे युगल गीत संगीत का रूप भी दे सकते हैं। संगीत धुन के साथ नाच भी वातावरण को प्रफुल्लित कर देता है, पूरा माहौल हर्षोल्लास की लहर में डूब जाता है। आइये महसूस करते है इस संगीत का अन्दाज , इस गीत के स्वर इस प्रकार हैं – तालाब से पकड़ी ताजा मच्छी व उस के साथ मदिरा की महकती खुश्बू, जिन्दगी के सभी गम को भूला देती है। शीतल पवन बदन को छूती खुशियां लेकर आती हैं, गगन में झूमता चमकीला चन्द्रमा नदीं की लहरों में अपनी खूबसूरती को अधिक निखारता है, इस मधुर व मनोरम वातावरण में कोई क्यों न खो जाए और अपनी सारी जिन्दगी की भूलों को भुलाकर जीभर कर जीवन का आन्नद उठाए।

इस दक्षिण धुन संगीत ने थू जाति के वातावरण को इतनी अच्छी तरह निखारा है कि कोई भी इस जगह की महकती हरियाली व नदी की कलकल आवाज को सुनने खुद ब खुद अपने को भूल जाता है, और अपने जिन्दगी के कुछ आन्नदभरे क्षण यहां मौजों से गुजार लेता है। इस संगीत धुन के बोल इतने लम्बे तो नहीं हैं लेकिन इस से निकला जो आन्नद मिलता है वह जीवन में नयी मधुरता पहुंचाती है और जीने का हौसला बढ़ाती है तथा जिन्दगी के आन्नद में चार चांद लगाती है। थू जाति इस धुन के साथ बरसों से जीती आ रही है और हर मुश्किलों को काट कर हर समय एक नयी राह को तैयार करती आयी है, आज यह धुन थू जाति के लोगों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है और जीने की एक सांस बन गयी है जिस के बिना जीना मुनासिब होगा। इस से देखा जा सकता है इस धुन में कितनी शक्ति है और वह आज भी इस से कहीं ज्यादा शक्तिशाली व अनिवार्य बन गयी है।

अलबत्ता छांगयांग दक्षिण धुन संगीत में यह जादू है और इस की विविधता भी प्रशंसीय हैं, इस संगीत में हल्की चंचलता है तो इस के साथ तीव्र भावना व दुखदर्द मिलन-जुदाई भी है और साहस व उत्साह को बुलन्द करने की खुशियां भी है। इस संगीत में संगीत वाद्यों की भूमिका को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता है। तीन तार वाला सितार इस संगीत धुन का मुख्य संगीत वाद्य होता है, इस से निकली महकती आवाज व झूमती धुन, लोगों के गाने को नया अहसास देती है और दिल में एक आन्नदभरी भावना लेकर आती है, इस प्रकार इस संगीत धुन को गाने वाला संगीत वाद्य की रंग बिरंगी मधुर धुनों के साथ जीभर कर आन्नद उठा सकता है। आइये सुनते एक मर्मस्पर्शी संगीत की धुन बोल इस प्रकार हैं – शरद पतझड़ मौसम लेकर आता है और हरे भरे पत्तों को अपनी टहनियों से उड़ा देता है, उधर दूर एक जगह में महकती खुश्बू वाला नन्हे सेब का पेड़ शरद के मौसम में भी अपनी महक देना नहीं भूलता, शरद की हवा हालांकि तीव्र होती है, पर उसकी पवन में लहराती हरियाली कहीं अधिक सौदर्य फैलाती है और लोगों को मंत्रमुग्ध करती है, हर गम के साथ एक खुशी भी होती है, यही है प्राकृति का नियम।

आज यह प्राचीन दक्षिण धुन अपनी महकती आवाज को चारों तरफ फैला रही है और दुनिया के लोगों को जीने का साहस दिलाती है, हमारा जीवन इसी धुन की तरह हमेशा सदाबहार रहेगा।

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