चीन में 56 जातियों के लोग रहते हैं , जिन की अपनी शानदार व रंगबिरंगी संस्कृतियां हैं । देश में विभिन्न जातियों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान जारी है । आज के इस कार्यक्रम में हम आप को शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश में रह रहे खलखजी जाति की संस्कृति का अध्ययन करने वाले , हान जातीय विशेषज्ञ --- ह ची हूंग की कहानी
महाकाव्य मानस में खलखजी जाति के इतिहास की जानकारियां मिलती हैं । चीन की दूसरी अल्पसंख्यक जातियों में भी जैसे तिब्बती जाति में महाकाव्य केसर मिलता है , मंगोलियाई जाति में महाकाव्य जांगीयर मिलता है । मानस इन के साथ-साथ चीनी अल्पसंख्यक जातियों के तीन प्रमुख महाकाव्यों में से एक माना जाता है । हान जातीय विशेषज्ञ --- ह ची हूंग की आपबीती महाकाव्य मानस के साथ जुड़ी हुई है ।
वर्ष 1961 में 16 वर्षीय ह ची हूंग भीतरी चीन के शानसी प्रांत से उत्तर-पश्चिमी चीन के शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के खजलसू खलखज़ी स्वायत्त शासन क्षेत्र गये । खलखज़ी जातीय लोग आम तौर पर इस क्षेत्र में रहते हैं , और इन के कुछ और लोग स्वायत्त प्रदेश के ई-ली , था-छंग , आखसू और खाशी आदि क्षेत्रों में भी रहते हैं । ह ची हूंग एक हान जातीय लड़का था , पर उन्हें खलखजी जातीय जीवन ने बहुत आकर्षित किया । ह ची हूंग रोज दिन में खलखजी मजदूरों के साथ सुनसान जंगल में लकड़ी काटने का काम किया करता था , और रात को इन के तंबुओं में खलखजी जाति के इतिहास और लोक कहानियां सुनता था ।
हमारे खजलसू क्षेत्र में सांस्कृति का बहुत समृद्ध भंडार मौजूद है । मैं हमेशा खलखजी लोगों के साथ रहता हूं , और मेरा जीवन भी इन के साथ जुड़ा हुआ है । क्यों कि मैं यहां रहता हूं , रोज़ इन के साथ बातचीत करता हूं , इन की शादी , अंत्यष्टि जैसी गतिविधियों में भी भाग लेता हूं । रोजाना जीवन में जो दिखता है , सब को अपने लेखन-कार्य में शामिल किया जा सकता है ।
खलखजी लोगों के साथ रह रहे ह ची हूंग इस जाति की परंपरागत संस्कृति से आकर्षित हुए। जब भी समय मिलता , तभी वे खाद्य पदार्थ और पानी लेकर खलखजी क्षेत्रों में घूमने चले जाते और इस जाति की ऐतिहासिक कथाओं , पुरा काल की कविताओं तथा ऐतिहासिक सूत्रों की कहानियां इक्कठी करने का काम करते । खलखजी दोस्तों के साथ घूमते हुए ह ची हूंग ने अनेक बार मानस का नाम सुना था ।
मानस खलखजी जाति का पुराना महाकाव्य है , जो आठ अंकों और दो करोड़ शब्दों से गठित है । महाकाव्य में खलखजी जाति के मानस वंश की आठ पीढ़ियों द्वारा विदेशी आक्रमणों का मुकाबला किए जाने तथा खलखजी जाति के रोजाना जीवन के बारे में रंगबिरंगी कहानियां वर्णित हैं । खलखजी के गायक पीढ़ी दर पीढ़ी इस का प्रसार कर रहे हैं , और उन्हों ने इस महाकाव्य का निरंतर सुधार भी किया है । आज यह विश्वमशहूर महाकाव्यों की तरह एक महाकाव्य है । मानस की चर्चा करते हुए ह ची हूंग ने कहा , खलखजी लोग मानस को बहुत मानते हैं । मानस पहले एक छोटी लोक-कथा थी , पर लोक गायकों के समान प्रयासों से इस का पैमाना बढ़ता रहा है । जाने माने गायक जूसूप मामाई आठ अंकों के दो लाख वाक्यों का मानस गा सकते हैं , इन सभी को गाने के लिए कई माह का समय चाहिये। जूसूप मामाई की तरह दूसरे अनेक गायक भी हैं , जो पूर्ण रूप से मानस गा सकते हैं ।
सन 1960 के दशक में चीन के सिंच्याग वेवुर स्वायत्त प्रदेश सरकार ने मानस कला का अनुसंधान किया था , तभी खलखजी जाति के 70 गायकों का पता चला , जो तीन हजार वाक्य मानस के गा सकते थे । इससे यह जाहिर है कि मानस खलखजी जाति के तमाम गायकों द्वारा संयुक्त रूप से रचित किया गया महाकाव्य है ।
सन 1984 में ह ची हूंग ने खजलसू सरकार के तहत स्थानीय इतिहास संशोधन विभाग में संपादक का काम करना शुरू किया । वहां उन्हों ने पूरा मानस गा सकने वाले एक मात्र गायक जूसूप मामाई को जाना ।
मानस चाचा जी के यहां जा रहे थे । यह खबर जानकर चाचा जी घासमैदान पर शिकार करते हुए मानस का इन्तजार कर रहे हैं ।
बुजुर्ग जूसूप मामाई खलखजी जाति में एक मात्र गायक हैं , जो महाकाव्य मानस के सभी आठ अंक गा सकते हैं । जूसूप मामाई को जानने के बाद ह ची हूंग का जीवन मानस के साथ और घनिष्ठ रूप से जुड़ गया । तभी से अभी तक के बीसेक वर्षों में ह ची हूंग ने अपने सहपाठियों के साथ मानस के संशोधन में निरंतर प्रयास किया है । वर्ष 2005 में ह ची हूंग ने रिटायर होने के बाद अपना सारा समय चीनी गैर-भौगोलिक संस्कृति विरासत महाकाव्य मानस का चीनी भाषा में अनुवाद करने में लगाना शुरू किया । महाकाव्य मानस के अनुसंधान कार्य में ह ची हूंग विशेषज्ञ हैं ।
शिनच्यांग स्वायत्त प्रदेश के लोक कला संघ के मानस अनुसंधान शाला के प्रधान , खलखजी जाति के इसाखबेक ने कहा कि श्री ह ची हूंग बहुत आदरणीय बुजुर्ग हैं , उन्हों ने अपना सारा जीवन मानस और खलखजी जातीय संस्कृति के अध्ययन में लगा दिया है ।
गत वर्ष के नवम्बर और दिसंबर माह में हम ने मानस संबंधी बैठक में भाग लिया । मौके पर श्री ह ची हूंग को खलखजी जाति के लौकिक साहित्य के संदर्भ में शैक्षणिक प्राधिकारी का खिताब दिया गया । बैठक में श्री ह ची हूंग का जन्मदिन मनाने के लिए हम ने केक आदि भी खरीदा । श्री ह ची हूंग ने अपने जन्मदिन के अवसर पर यह उम्मीद भी जतायी कि चीनी भाषा के मानस का शीघ्र ही प्रकाशन किया जाए । उन की बात सुनकर हम सब प्रभावित हुए ।
श्री हू ची हूंग सिर्फ मानस नहीं , खलखजी संस्कृति के अध्ययनकर्ता भी हैं । वर्ष 2007 तक खलखजी जाति तथा खजलसू स्वायत्त प्रदेश के बारे में प्रकाशित सभी 76 पुस्तकों में से 57 श्री ह ची हूंग के हाथ से निकली हैं , जो खलखजी जाति तथा खजलसू क्षेत्र के इतिहास , संस्कृति , प्रकृति , भौगोलिक जानकारी , समाज तथा चीन-चिरकिजस्थान संबंधों से संबंधित हैं । श्री ह ची हूंग खजलसू जानकारियों के अध्ययन के बारे में दिग्गज कहे जाते हैं । उन के द्वारा संपादित' चीन की खलखजी जाति का कोश ' खलखजी जाति के अध्ययन के संदर्भ में सब से मूल्यवान सामग्री माना जाता है । शिनच्यांग स्वायत्त प्रदेश के लोक कलाकार संघ के अध्यक्ष श्री मा श्यूंग फू ने कहा ,
श्री ह ची हूंग 60 वर्षीय बुजुर्ग हैं , फिर अक्सर खजलसू और ऊरुमुछी आदि आते जाते रहते हैं । उन के प्रयासों के जरिये ही शिनच्यांग की मूल्यवान लोक संस्कृति का संरक्षण हो पाया है ।
आज महाकाव्य मानस को चीनी राष्ट्रीय गैर-भौगोलिक सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल किया गया है , और इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत मानव की मौखिक तथा गैर-भौगोलिक विरासत की प्रतिनिधित्व नामसूची में शामिल करने के लिए नामांकित किया गया है । इसी कार्य में ह ची हूं अथक प्रयास कर महाकाव्य मानस के संरक्षण और विकास के लिए नये मार्ग तलाशने की कोशिश कर रहे हैं । उन्हों ने कहा , हम महाकाव्य मानस को खोने नहीं देंगे । आज हम ग्रामीण क्षेत्रों और स्कूलों में मानस पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं । उन में कुछ लोग मानस के प्रमुख अंक गा सकते हैं । हमारी योजना है कि मानस की कहानी पर फिल्म बनाई जाए और नाटक रचे जाएं । और मानस के कुछ अंकों को नाटय-संगीत के रूप में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाए ।
श्री ह ची हूंग हान जाति के हैं , पर वे जिंदगी भर खलखजी जाति के संस्कृति के अध्ययन के साथ जुड़े रहे हैं । लोगों ने ह ची हूंग के कमरे में ढ़ेर सारी सामग्री देखकर कहा कि ह ची हूंग के बिना खजलसू में संस्कृति का अनुसंधान करना असंभव होगा । पर श्री ह ची हूंग ने कहा , मेरी सभी उपलब्धियां खलखजी जातीय देशबंधुओं की मदद का परिणाम हैं । मैं 16 साल की उम्र में शिनच्यांग आया था । तब खलखजी जाति ने मुझे अपनी गोद में ले लिया था और मुझे अपने में से एक माना था । यह नहीं कहता है कि मेरे बिना खजलसू में संस्कृति का अनुसंधान करना असंभव है। क्यों कि मेरे अलावा भी दूसरे लोग यही काम कर करते । लेकिन खजलसू के बिना मेरा सारा जीवन बेकार है । (श्याओयांग)