श्री कादिका चालम सी.आर.आई की तमिल सेवा में बहुत लंबे समय तक काम करते रहे हैं। सन् 1983 में वे पहली बार पइचिंग आए, और सन् 2004 अपने देश वापस गए। वे चीन में 20 साल तक ठहरे। उन्होंने अपनी निगाहों से इन 20 सालों में चीन में हुए परिवर्तन को देखा है। उन्होंने कहा कि मैं ने चीन के विकास को देखा है। उन के लिए यह एक बहुत गौरव की बात है। 20 साल पहले चीन में कोई भी चीज़ खरीदने के लिए विशेष टिकट की जरूरत पड़ती थी। लेकिन अब चीन की दुकानों में सभी चीज़ें प्राप्त की जा सकती हैं। सन् 1999 में वे तीसरी बार चीन आए। उन की याद में शहरों में बहुत ऊंची इमारतों का निर्माण किया गया। उन का वेतन भी सौ य्वान से लगभग दस हजार य्वान हो गया।
80 के दशक के आरंभ में चीन में खुलेद्वार की नीति लागू की गयी। मुझे याद है कि उस समय चीन में कुछ भी खरीदना बहुत मुश्किल था। मैं नए मकान के लिए परदे खरीदना चाहता था पर नहीं खरीद सका। खाने-पीने की चीजें भी कम थीं।
सन् 2003 में श्री राजाराम ने ऑल इंडिया रेडियो से पेइचिंग आकर अपना नया जीवन शुरू किया। चीन की स्थिति उन के विचार में अलग थी। यहां विकसित पश्चिमी तकनीक है और विभिन्न जीवन शैलियां हैं। श्री राजाराम ने कहा कि चीनी लोगों की सच्चाई चीन के विभिन्न देशों के साथ आदान-प्रदान करने की बुनियाद है।
जब मैं पहली बार चीन आया, चीन की नयी सरकार सत्तारूढ हो रही थी। उस समय रेल लाईन का तेजी से विकास हुआ। मैं ने अपने दोस्त के साथ रेल गाड़ी से यात्रा की। पेइचिंग से शांगहाई तक रेल से सिर्फ 10 घंटे लगे। बहुत से विदेशी कारोबारी चीन में आते हैं और बहुत चीनी कारोबार भी विश्व में गए हैं। भारत में भी हम चीन के लेनोवो व हाएर आदि कारोबारों को देख सकते हैं।
पेइचिंग में रहने वाले श्री माईकल और उन की पत्नी सुश्री फ्रास्कल श्री चालम और श्री राजाराम से ज्यादा सौभाग्यशाली हैं। जब वे पेइचिंग आए, पेइचिंग की स्थिति बहुत अच्छी हो गयी थी। उन्होंने सबवे से पेइचिंग ऑलंपिक देखा और राष्ट्रीय थियेटर भी देखा।
गाना गाते हुए श्री माईकल और उन की पत्नी सुश्री फ्रास्कल ने एक नया दिन का जीवन शुरू किया। वे दो साल से पेइचिंग में हैं। वे चीनी खाना पसंद करते हैं और पड़ोसियों को दोस्त बनाते हैं।
काम करने के अलावा श्री माईकल और सुश्री फ्रास्कल यात्रा करना भी पसंद करते हैं। उन्होंने पेइचिंग में सब जगहों की यात्रा की है और चीन के विभिन्न शहर थ्यान चिंग, शांग हाई, सि आन और क्वी जो आदि शहरों में भी गए हैं। उन की चीनी भाषा अच्छी नहीं है, लेकिन यह समस्या उन के जीवन में बाधा नहीं है। सुश्री फ्रास्कल चीनी चीजों को भी बहुत पसंद करती हैं। उन्होंने कहा
चीन के शॉपिंग सेंटर में सब चीजें मिलती हैं। मैं ने शांगहाई, शी आन और पेइचिंग से रिश्तेदारों व दोस्तों के लिए बहुत उपहार खरीदे हैं।
सुश्री फ्रास्कल भारत के कन्याकुमारी में एक मीडिल स्कूल में अध्यापिका थीं। दो साल पहले वे अपने पति के साथ भारत से चीन आयीं। सन् 2008 में उन्होंने चीन में भी अध्यापिका बनने का मौका पा लिया। वे चीनी मीडिया विश्वविद्यालय के विदेशी भाषा कालेज में एक अध्यापिका बन गई हैं। वे चीन में अपने जीवन को बहुत पसंद करती हैं।
इन सालों में बहुत भारतीय दोस्त श्री माईकल और सुश्री फ्रास्कल की तरह काम करने के लिए चीन आए हैं। श्री माईकल ने प्रसन्नता से कहा कि अब चीन में भारतीय लोगों के लिए विकास के बहुत मौके हैं।
अब भारतीय दोस्तों के लिए चीन में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत मौके हैं। लोग चीन में आकर अपना सपना पूरा कर सकेंगे। मुझे विश्वास है कि ज्यादा भारतीय लोग भारत में स्थित चीनी दूतावास में वीजा लेने के लिए जाएंगे।
अब चीन भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अपने आप को परिचय देने की कोशिश कर रहा है। श्री माईकल ने यह भी कहा
मेरी मातृभूमि तमिलनाडु में एक कन्फुशियस कालेज स्थापित किया जाएगा। चीन विश्व में चीनी भाषा का परिचय देने की कोशिश कर रहा है। विश्व लोग चीन में आयोजित ऑलंपिक से बहुत प्रभावित हुए हैं। अब वित्तीय संकट के मुकाबले के लिए चीन भी अन्य देशों के साथ सहयोग कर रहा है।