श्री त्साई का चित्र 'हजार ड्रैगन' 56 मीटर लम्बा और एक मीटर चौड़ा है । इस पर प्राचीन काल के 2008 पुराने चीनी शब्द लिखे हुए हैं । ये दो हजार शब्द अलग-अलग हैं , पर उन का एक ही अर्थ है --- ड्रैगन । यह चित्र श्री त्साई छी-छींग ने साढ़े तीन साल के भीतर अपने बांए हाथ से बनाया है । 2008 शब्द लिखने का मतलब है पेइचिंग वर्ष 2008 ऑलंपियाड और 56 मीटर लम्बाई चीन की 56 जातियों की प्रतीक है ।
48 वर्षीय श्री त्साई छी-छींग सिर्फ 70 सेंटीमीटर लम्बे और 20 किलो वजन के हैं । उन की दो टांगें भी अपाहिज़ हैं , दायीं बांह बाएं हाथ के आधे भाग के बराबर है , और उन का दाईं बाहं भी गंभीरता से सिकुड़ी हुई है । वह जन्म से ही इस तरह की अपाहिज़ बीमारी के शिकार हैं । श्री त्साई छी-छींग के बड़े भाई ने कहा, त्साई छी-छींग की बीमारी बहुत छुटपन से ही शुरू हो गई थी ।
त्साई छी-छींग के सभी बांहें, टांगें जन्म से ही साधारण नहीं थीं । बचपन से ही वे बहुत कमजोर थे । उन का बचपन विपत्तियों में ही बीता । और किसी भी छोटी सी चोट से ही उन की हड्डियां टूटने का खतरा रहता था । एक बार जब मेरा एक सहपाठी पलंग पर बैठा ,तो असवाधानी से पलंग पर बैठे हुए मेरे भाई पर ही बैठ गया, । मेरे भाई की घुटने की हड्डी एकदम टूट गई ।
श्री त्साई छी-छींग का मर्ज़ सिंच्यांग में बहुत कम दिखाई पड़ता है । कुछ लोगों ने उन के मां-बाप को यह समझाया कि इस विकलांग शिशु को न पालें । पर मां-पाप ने यह जाना कि लड़के का शरीर ही तो अपाहिज है, दिमाग नहीं । इसलिए हमें अवश्य इस की जान की सुरक्षा करनी चाहिए । जब वह छोटा था तो सहारा ले कर खड़ा हो जाता था, फिर समय बीतने के साथ-साथ दिन ब दिन उस की हालत बिगड़ती गई । श्री त्साई छी-छींग ने अपनी दुखभरी आपबीती का सिंहावलोकन करते हुए कहा ,
जब मैं बहुत छोटा था , तब मैं बड़े भाई की पीठ पर सवार होकर बाहर जाता था , तब मेरे कानों में कुछ तानों की आवाज़ें सुनाई पड़ती थीं । कुछ ने यह बात भी कही कि मेरे जैसे विकलांग कुछ भी नहीं कर सकते , सिर्फ परिवार पर बोझ हैं । ऐसी बातें सुनने के बाद मेरा दिल कितना दुखी होता था,मैं बता नहीं सकता । घर वापस आने के बाद किसी के साथ बातचीत न कर मैं कोने में खामोश बैठ जाता । मां पूछती , तुम कैसे हो , कोई तकलीफ है? मैं चुप रहता , आंखों से आंसू बहने लगते। उस दिन को मैं जिंदगी भर याद रखूंगा ।
बीमारी के कारण त्साई छी-छींग स्कूल नहीं जा सका । जब वह देखता कि भाई-बहन बैग लेकर स्कूल जा रहे हैं , तब त्साई छी-छींग का दिल ईर्ष्या और दुख से भर जाता । मां-बाप ने त्साई छी-छींग का इलाज करने के लिए उसे जगह-जगह के बड़े अस्पतालों में दिखाया, और बार-बार उसे यम के हाथों से वापस छीना ।
एक दिन बड़े भाई ने त्साई छी-छींग को एक रूसी उपन्यास 'इस्पात की कैसी बनावट'दिया । उपन्यास में विकलांग वीर की कहानी पढ़कर त्साई छी-छींग को बहुत प्रेरणा मिली । उस ने सोचा कि एक दिन मैं भी एक वीर आदमी बनूंगा । मां-बाप ने भी त्साई छी-छींग का हौंसला बढ़ाना जारी रखा ।
श्री त्साई छी-छींग ने कहा , उस समय माता-पिता ने मुझे घर में आत्म-शिक्षा लेने को प्रेरित किया । उन्हों ने मेरे लिए बहुत सी पाठ्य पुस्तकें और चित्र खरीद कर दिए । पिता जी ने मुझे जीवन का तत्व-ज्ञान बताया ।
पिता जी के शिक्षण और प्रोत्साहन से त्साई छी-छींग में जीने का साहस उत्पन्न हुआ । फिर उसने बहुत मेहनत से चित्रकला सीखना शुरू किया । त्साई छी-छींग का कलात्मक अध्ययन 6 साल की उम्र से ही शुरू हो गया था । क्योंकि उस का सिर्फ बायां हाथ स्वस्थ है , इसलिए सभी कामकाज उसे इसी हाथ से करने पड़ते हैं । टांग अच्छी न रहने के कारण उसे बैठकर चित्र बनाना पड़ता है। कभी कभी वह बीस घंटों तक अविचल रूप से बैठा रहता । अध्यापक न होने के कारण त्साई छी-छींग को आत्म-शिक्षा लेनी पड़ी । और वह अक्सर बिना खाए-पिए चित्रकला में लगा रहता । अथक प्रयासों का परिणाम निकला । बीस साल की उम्र में त्साई छी-छींग ने अपनी कई चित्र श्रृंखलाएं प्रकाशित कीं और स्कूलों के लिए तीन हजार से अधिक लालटेन के चित्र बनाए। श्री त्साई छी-छींग अपनी टांगों पर खड़ा हुआ , उन की हालचाल देखकर मां-बाप को भी कितनी खुशी हुई । माता जी सुश्री छाओ ह्वान च्वन ने कहा ,
मुझे लगा था कि मेरा बेटा अंततः समाज के लिए उपयोगी आदमी बन सकेगा । उस की सफलता देखकर मुझे बहुत खुशी हुई । अब मैं भी उस की सहायक हूं । मैं रोज़ आसपास रहकर उस की मदद कर रही हूं ।
श्री त्साई छी-छींग का सिर्फ एक स्वस्थ बायं हाथ है , पर उन्हों ने इसी हाथ से अपना सुन्दर व शानदार जीवन चित्रित किया है । उन्हों ने निमंत्रण पर अनेक स्कूलों में अपनी आपबीती का परिचय दिया । उन की कहानी से छात्रों को प्रेरणा मिली है । श्री त्साई छी-छींग के चित्रों को अक्सर चित्र-प्रदर्शनी में शामिल किया जाता है । वर्ष 2004 में उन की रचना 'दीर्घ आयु' को शांघाई बृहत मनोरंजन पार्क द्वारा सौंपा गया महा चिनिस पुरस्कार मिला , यह पहली बार था कि किसी विकलांग को ऐसा पुरस्कार मिला । उन की सफलता की खुशी मनाने के लिए सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के विकलांग संघ ने धूमधाम से एक समारोह आयोजित किया । उस दिन श्री त्साई छी-छींग को जिदंगी में सब से अधिक प्रसन्नता महसूस हुई । उन के एक विकलांग मित्र श्री ली च्यांग थूंग ने बताया ,
विकलांग होकर श्री त्साई छी-छींग ने इतनी महान उपलब्धि हासिल की है , यह देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई है । उन की कहानी से यह सीख मिलती है कि विकलांग भी अपनी कोशिशों से विजय पा सकते हैं ।
उस के बाद श्री त्साई छी-छींग ने अपनी दूसरी रचना 'हजार ड्रैगन' के लिए तीन सालों का प्रयास किया । और इसे दूसरी बार शांघाई बृहत मनोरंजन पार्क द्वारा सौंपा गया विशेष चिनिस पुरस्कार सौंपा गया । विश्वमशहूर सिनेमा सितारा जैकी चेन ने भी श्री त्साई छी-छींग की रचना पर ध्यान दिया । उन्हों ने 'हजार ड्रैगन' पर अपने हस्ताक्षर किए ।
इस साल पेइचिंग ऑलंपिक के स्वागत में श्री त्साई छी-छींग ने विशेष तौर पर एक गीत ' सूर्य की किरणों को गोद में लेना' लिखा । गीत के बोल हैं , ' खड़े न रहने के बावजूद मैं प्रसन्नता से राह-चल रहा हूं , पंख न होने के बावजूद मैं आकाश में उड़ कर सूर्य की किरणों को गोद में ले लूंगा '।
श्री त्साई छी-छींग ने बताया कि फरवरी माह में मैं ने अपना यह गीत पैरा-ऑलंपिक की आयोजन कमेटी को भेजा , आशा है कि मेरा यह गीत प्रतिस्पर्द्धा में विजय पाएगा ।
आशा है कि सभी विकलांग लोग श्री त्साई छी-छींग की तरह अपने प्रयत्न से अपने जीवन का सुन्दर चित्र बना सकेंगे ।