चीन का सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश सिर्फ वेवुर जाति का ही नहीं , बल्कि अनेक जातियों की जन्मभूमि है । उन में चीन की प्रमुख हान जाति के अलावा दूसरी अल्पसंख्यक जातियां जैसे ह्वेइ जाति , हज़ाकी जाति और मैन जाति भी शामिल हैं । शीपो जाति भी प्राचीन काल से सिंच्यांग में रहने वाली जातियों में से एक है । शीपो जाति के बारे में सर्वप्रथम यह बताना जरुरी है कि इस की विशेषता है सामन संगीत ।
सामन शब्द का मतलब है अभिचारी । यह शब्द हजार वर्ष से भी पहले के सुंग राजवंश से चला आ रहा है । सामन धर्म उत्तरी चीन की जातियों का एक मूल धर्म माना जाता है । सुना जाता कि शीपो जाति ने 16वीं शताब्दी के प्राचीन काल से ही सामन धर्म पर विश्वास करना शुरू कर दिया था । शायद प्राचीन काल में शीपो जाति के ओझा समारोहों में झाड़-फूंक करते हुए रोगियों का इलाज करते थे और भविष्यवाणी करते थे । शोपो जाति के लोगों को विश्वास था कि सामन को भगवान ने भेजा है । शीपो जाति के अभिचारक अभिचार करते समय मुंह से जो संगीत निकालते थे , वही सामन संगीत है । सामन संगीत का प्राचीन काल से आज तक विकास होता आया है , इस तरह वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों का जीवित जीवाश्म माना जाता है ।
सामन संगीत सुनते ही लोगों को आम तौर पर आश्चर्य महसूस होता है । सामन संगीत में ज़मीन और जान की आवाज़ सुनाई देती है । लोक-गीतों और लोक रीति-रिवाज़ के अनुसंधान में लगे शीपो जाति के विशेषज्ञ , सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के संगीतकार संघ के उपाध्यक्ष श्री थूंग चि-शेंग ने कहा ,
सामन की पूजा और लोक रीति-रस्मों की गतिविधियों में आदिकाल के मानव की संस्कृति और भावना दिखाई पड़ती है । सामन संगीत खुद भी ऐसा ही है । सामन संगीत में नृत्य और गीत भी हैं । संस्कृति की दृष्टि से वह धर्म , लोक रीति-रिवाज़ और कला का सारांश है ।
सामन संगीत दो सौ साल पहले सिंच्यांग के छाबूचाल क्षेत्र में पहुंचा। छाबूचाल क्षेत्र में रहने वाले शीपो जाति के लोग आज भी इस सामन संगीत को गाते हैं । और सामन संगीत के साथ बहुत सी परंपरागत रस्मों का भी विकास हुआ है । शीपो जाति के लोक रीति-रिवाज़ का अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञ , श्री थूंग-गा छींगफू ने कहा ,
सामन में नृत्य , गायन और बैंड सब शामिल हैं । सिंच्यांग में रहने वाली शीपो जाति के रीति-रिवाज़ों में आज तक चाकूओं से बांध कर सीढ़ी पर नाचना , झाड़-फूंक करना और सामन गीत-संगीत सुनाने जैसी आदिकालीन रस्में सुरक्षित हैं , जिनसे सामन संस्कृति का अनुसंधान करने के लिए समृद्ध सामग्री मुहैय्या है ।
सामन संगीत में गहरी जातीय विशेषता है । सामन प्रदर्शन में विशेष लय और अत्याभिनय काफी आश्चर्यजनक है । श्री थूंग-गा छींगफू ने कहा ,
नर्तक सामन नाचते समय ढोल की ताल पर कूदते हैं । सामन नृत्य जोशभरा और वीरतापूर्ण है । सामन नृत्य में गहरी भावना और साहस प्रतिबंबित होता है । सामन नर्तक नाचते हुए भूतों को भगाने की क्रियाएं भी दिखाते हैं ।
ढोल की सामन गीत-संगीत में विशेष भूमिका है । सामन गीत-संगीत में ढोल सिर्फ संगीत उपकरण नहीं , पर मानव देव के साथ संपर्क रखने का विशेष औजार है । इसलिए सामन गीत-संगीत हमेशा ढोल बजाने के हो हल्ले के साथ जुड़ता है । इसमें मानव , देव और प्रकृति के साथ आदान-प्रदान करने की संवेदना निहित है ।
सिंच्यांग के ई-ली शहर की झा कांऊटी के लोक गीत-नृत्य मंडल में श्री हू क्वांग छींग जाने माने अभिनेता हैं , जो सामन गीत-संगीत की आवाज में सामन नाचते हैं । अभिनय करते समय उन की आंखों और हरकतें में इतने प्राचीन तत्व हैं कि लोग उन्हें एक सामन ही समझते हैं ।
सामन नृत्य में इस के अनुकूल कपड़े , टोपी आदि पहननी चाहिये , साथ ही उन की कमर के इर्दगिर्द छोटी घंटियों की सजावट भी होती है , और हाथ में ढोल और लकड़ी भी होती है । नर्तक सामन संगीत के साथ ढोल भी बजाते हैं ।
सामन गीत-संगीत का अनुसंधान करना शीपो जाति की संस्कृति और कला के विकास इतिहास का सारांश करने के लिए महत्वपूर्ण है । आज श्री हू क्वांग छींग समेत बहुत से कलाकारों ने सामन संगीत का विकास कर प्राचीन सामन संगीत को नया कलात्मक रुप दिया है ।
इधर चीन में शीपो जाति के बारे में कुछ जानकारियां प्रस्तुत हैं ।
शीपो जाति की जनसंख्या दो लाख है , जो मुख्य तौर पर पश्चिमी चीन के सिंच्यांग और पूर्वोत्तर चीन के ल्याओनींग और चिलीन प्रांतों में बिखरी हुई है। एक छोटी जाति के लोगों के देश के अलग-अलग भागों में रहने का कारण यह है कि प्राचीन काल के छींग राजवंश ने सीमवर्ती क्षेत्रों की रक्षा के लिए पूर्वोत्तर से शीपो के पांच हजार लोगों को पश्चिमी चीन के सिंच्यांग तक स्थानांतरित किया था । आज पूर्वोत्तर चीन में रह रहे शीपो जाति के लोगों की अपनी विशेष बोली और हस्तलिपि नहीं है । और उन के रीति-रिवाज़ भी दूसरी जातियों से मिलते- जुलते हैं । पर सिंच्यांग में रहे शीपो जाति के लोगों की आज तक अपनी विशेष ज़ुबान सुरक्षित है । शीपो जाति के लोग प्राचीन काल में शिकारी , मछुआगिरी और कृषि में लगे हुए थे , आज उन की आधुनिक समाज में भागीदारी होने लगी है ।
सिंच्यांग के शीपो जाति के लोगों के पूर्वज दो सौ साल पहले महाराजा के आदेश से पूर्वोत्तर चीन से स्थानांतरित किए गये थे । उन्हें इस बात का गौरव है कि इधर दो सौ सालों में उन में एक भी वापस नहीं भागा । सिंच्यांग में उन की जड़ें बिखरी हुईं हैं । शीपो जाति का एशिया के उत्तर में रह रही प्राचीन जातियों के साथ जैसे थूंग-कू-सी जाति के साथ घनिष्ठ संबंध है । शीपो जाति की बोली चीनी हान जाति की भाषा से मिलती जुलती है , और शीपो जाति के लोग आम तौर पर हान भाषा समेत अनेक भाषाएं बोल सकते हैं । शीपो जाति के पूर्वज शिकारी और मछुआगिरी करते थे , आज भी उन में कभी-कभी श्रेष्ठ तीरंदाज़ उभर रहे हैं । लेकिन आज बहुत से शीपो जाति के युवकों ने वाणिज्य , शिल्प-कला और सरकारी नौकरी का काम चुना है । शीपो जाति के लोग दूसरों की ही तरह आटा,चावल,चाय,घी और विभिन्न पशुओं का मांस भी खाते हैं । उन के रहन-सहन के रिवाज़ भी युग के परिवर्तन से मेल खाते हैं ।
शीपो जाति के लोग चीनी परंपरागत पंचांग के मुताबिक प्रति वर्ष चौथे माह की 18वीं तारीख को स्थानांतरण दिवस मनाते हैं , क्योंकि दो सौ साल पहले इसी दिन छींग राजवंश के महाराजा ने शीपो जाति के पूर्वजों को देश की पश्चिमी सीमा की रक्षा के लिए वहां पहुंचने का आदेश दिया था। शीपो जाति के लोग बुद्धिमान साबित हुए हैं । सिंच्यांग के शीपो जाति के लोग अपनी ज़ुबान बोलने के अलावा हान , वेवुर और हाजिकस्तानी आदि भाषाएं भी बोल सकते हैं । और उन में कुछ को विलुप्त हो चुकीं भाषाएं भी आती हैं । पेइचिंग के कुकूंग महल में हान भाषा में लिखित फाइलों के अनुसंधानकर्ताओं में कुछ शीपो जाति के भी हैं ।