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    ह्वानसांग और उनकी अमर रचना महा थांग राजवंश काल में पश्चिम की तीर्थयात्रा का वृतांत
    2014-09-10 14:54:02 cri

    ह्वानसांग एक सक्रिये सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। सम्राट ताइजूंग मध्य व पश्चिम एशिया और भारत की उपजों औप प्रथाओं के विष्य में उन से अनेक प्रश्न किये।और उन्होंने तुरंत भी विस्तृत उत्तर दिये। सम्राट ताइजूंग ने उनसे एक पुस्तक लिखने तथा फिर गृहस्थ होकर राजकीय कामकाज निपटाने में योगदान देने का आग्रह किया। ह्वानसांग ने पुनः गृहस्थ होने से इन्कार कर दिया।

    ह्वानसांग ने सम्राट ताइजूंग की आज्ञानुसार, महा थांग राजवंश काल में पश्चिम की तीर्थ यात्रा का वृतांत लिखा। इस पुस्तक का, संस्कृति के इतिहास में अनुपम और अमूल्य स्थान है। यह पुस्तक भारत के प्राचीन यानी ईसा की सातवीं शताब्दी से पूर्व के इतिहास के संदर्भ में एक सर्वाधिक मूल्यवान कृति है। आज भी प्राचीन भारत का अध्ययन के लिए, इस रचना का सहरा लेना पड़ता है।

    इस रचना के कुल 12 खंड है। उसमें उन 110 राज्यों, जिन की ह्वानसांग ने यात्रा की थी और 28 अन्य राज्यों का विवरण किया गया है। ह्वानसांग ने जिन विशाल क्षेत्रों का वर्णन किया है, वे उत्तर पश्चिम चीन से पश्चिम में ईरान तक भूमध्य सागर के पूर्वी तट, दक्षिण में भारत प्रायद्वीप और श्रीलंका, उत्तर में मध्य एशिया के दक्षिण भाग व उत्तर अफगानिस्तान और पूर्व में हिन्द चीन प्रायद्वीप और इन्दोनेशिया तक फैले हुए है। उस काल में भारत कुल 80 राजयों में विभाजित था, उनमें से 75 राजयों का ह्वानसांग ने भ्रमण किया था।

    पिछले एक हजार वर्ष से अधिक समय में पुरातत्व के क्षेत्र में नई-नई खोजों और इतिहास के अध्ययन में निरंतर प्रगति के साथ-साथ ,ह्वानसांग के यात्रा वृत्तांत का महत्व सिद्ध होता गया है।

    पुरातन्वेताओं ने उन के उल्लेखों के अनुसार, राजगृह के खंडहरों, मृगदाव अजन्ता और नालन्दा में खुदाई की औऱ भारी उपलब्धियों प्राप्त की। भारत पर लिखी गई शायद ही ऐसी कोई कृति मिल सकती है, जिस में ह्वानसांग के यात्रा वृतांत से उद्धारण न लिया गया हो। हालांकि ह्वानसांग एक हजार वर्ष से पहले के महा पुरुष थे, फिर भी आज भी उन का नाम भारतीय औऱ चीनी जनता की जुबान पर है। वे चीन भारत मैत्री के एक जीवन्त प्रतीक बन चुके हैं।


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