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ह्वानसांग और उनकी अमर रचना महा थांग राजवंश काल में पश्चिम की तीर्थयात्रा का वृतांत
2014-09-10 14:54:02 cri


ह्वानसांग का जन्म सन 600 में उत्तरी चीन के हनान प्रांत की येश काऊंटी में हुआ। वह चीन के थांग राजवंश काल के एक सुप्रसिद्ध बौद्ध आचार्य थे। चीन के बौद्ध धर्म के इतिहास में उन्होंने अतीत और भविष्य को साथ जोड़ कर अपना अत्यन्त महत्वूपर्ण स्थान बना लिया था। बौद्ध धर्म के विस्तृत अध्ययन के लिए वे भारत में 17 वर्षों तक रहे।

स्वदेश लौटने के बाद उन के द्वारा लिख वाये गये और उन के शिष्य प्यैची द्वारा संकलित "महा थांग राजवंश काल में पश्चिम की तीर्थ यात्रा का वृत्तांत" में भारत और मध्य एशिया के उन 110 राज्यों, जिन की ह्वानसांग ने यात्रा की थी और श्रुत अट्ठाईस राज्यों का श्रेणीबद्ध रुप से विवरण दिया गया। प्राचीन भारत के ऐतिहासिक अभिलेखों का अभाव होने के कारण यह यात्रा वृत्तांत अपनी व्यापक विष्य वस्तुओं का सुस्पष्ट वर्णन और सही विवरण से मध्य एशिया, अफगानिस्थान पाकिस्तान तथा भारत के प्राचीन इतिहास और भूगोल के अध्ययन के लिए सब से महत्वूप्रण प्रत्यक्ष संदर्भ सामग्री बन गया है।

ह्वानसांग ने बौद्ध सूत्रों के अनुवाद को बड़ा महत्व दिया था। बिना अत्युक्ति के कहा जा सकता है कि अनुवाद के इतिहास में वे प्रथम विभूति भी थे और अंतिम विभूति भी। उन्हीं के तत्वावधान में बौद्ध सूत्रों के 1335 खंडों का चीनी में अनुवाद किया गया। चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्दान के इतिहास में ह्वानसांग सर्वश्रेष्ठ दूत थे। भारत में प्रवास के दौरान वे महायान के प्रचार के सुप्रसिद्ध आचार्य बन गये औऱ स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने जिस फाश्यांगजूंग यानी धर्म लक्षण शाखा की स्थापना की, वह लोयांग तथा शीएन में दसियों वर्षों तक प्रचलित रही।

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