140915taoxingzhi
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सन उन्नीस सौ छत्तीस और अड़तीस में श्री थाओ शिंग जी ने क्रमशः दो बार भारत की यात्रा की। अपनी दूसरी यात्रा के दौरान, उन्हें भारतीय जनता के महान नेता महात्मा गांधी सुप्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर और राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सुबाशचन्द्र बोस से मुलाकात हुई। यह वर्ष उन्नीस सौ सत्ताईस के बाद चीन और भारत के राष्ट्रवादी सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के बीच प्रथम सम्पर्क था।
श्री थाओ शिंग जी चीन के सुप्रसिद्ध लोक शिक्षा शास्त्री औऱ सामाजिक कार्यकर्त्ता थे। वे लोक शिक्षा व ग्रामीण शिक्षा के पक्षधर थे। अपने आदर्श पर अमल करते हुए उन्होंने श्याओ ज्वांग नार्मल स्कूल कायम किया औऱ शांगहाई व दक्षिण पश्चिमी चीन के चिंग छिंग शहर में प्रयोगात्मक शिक्षा अड्डे स्थित किये थे। इस तरह उन्हें समूचे चीन की जनगण से प्रेम औऱ स्नेह प्राप्त हुए। थाओ शिंग जी एक देशभक्त सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। सात जुलाई उन्नीस सौ सैंतीस में जापानी आक्रमणकारियों द्वारा चीन के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने से पहले ही उस देशोद्धार आन्दोलन में भाग लिया था। जिस का सूत्रपात डाक्टर सुन यात सेन की मैदम सोंग छिंग लिंग ने किया। इस आन्दोलन का मकसद च्यान काई थक से जापानी आक्रमण के खिलाफ प्रतिरोध करनेकी मांग करना था। इस तरह वे प्रतिरोध आन्दोलन के एक जाने माने नेता बन गये।
युरोप में विश्व में नव शिक्षा सम्मेलन में भाग लेने के बाद स्वदेश लौटने के रास्ते में उन्होंने भारत की यात्रा की। उन्होंने एक भारतीय मित्र के नाम अपने पत्र में साफ साफ कहा कि भारत की यात्रा करने का मकसद केवल यह नहीं है कि जापानी आक्रमण के विरोध का प्रचार किया जाए, बल्कि यह भी मकसद है कि भारत के प्रति समझ में इजाफा किया जाए और वहां की जनता के जीवन और राष्ट्रीय आन्दोलन की स्थिति की जानकारी प्राप्त की जाए।
अन्य दो भारतीय मित्रों के नाम पत्र में उन्होंने कहा, आप के देश की यात्रा का उद्देश्य अध्ययन करना है। मेरी आशा है कि आप के किसानों, मजदूरों, शिक्षकों तथा आप लोगों के नेताओं से सीखूंगा। उन्होंने आगे चल कर अपने पत्र में कहा, अगर समय हो और संभावना हो तो मैं आफ के देश की जनता को चीन की स्थिति का परिचय देने को तौयार हूं। चीन में संघर्ष से भारतीय जनता को अवगत कराना, श्री थाओ शइन जी का अन्य एक उद्देश्य था।
वर्ष बाइस जुलाई उन्नीस सौ छत्तीस में श्री थाओ शिन जी ने समुद्र मार्ग से सिंगापुर हो कर भारत गया था। इस यात्रा की तफसील अब मालूम नहीं है, वे केवल चार पांच दिन तक भारत में ठहरे थे, पर हमें उन के द्वारा लिखी गई पांच कविताएं अब उपलब्ध है। जिन में भारतीय किसानों और अछूतों की दर्दनाक हालत और साहूकारों के क्रूर शाषण का चित्रण किया गया था।