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    चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान में लगे चीनी प्रोफेसर चिन तींगहान
    2014-09-10 13:27:27 cri


    चीन में भारत संबंधी अनुसंधान करने वाले लोगों में चिन तींगहान एक जाना-पहचाना नाम हैं। युवावस्था से अब तक वे हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति का अध्ययन करते रहे हैं। 80 वर्ष से अधिक की उम्र में भी वे भारतीय संस्कृति का प्रसार और चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में जुटे हैं।

    चिन तींगहान वर्ष 1955 में पेइचिंग विश्वविद्यालय की पूर्वी भाषा व संस्कृति विभाग से स्नातक हुए। इसके बाद वे पेइचिंग विश्वविद्यालय में शिक्षक बने और हिन्दी पढ़ाने लगे। कुछ साल के बाद वे चीनी सामाजिक व वैज्ञानिक अकादमी में अकादमीशियन बने। पढ़ाने के अलावा प्रोफेसर चिन तींगहान ने कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। उन्होंने स्वतंत्र रूप से हिन्दी-चीनी शब्दकोश, हिन्दी का आधारभूत पाठ्य कार्यक्रम आदि पुस्तकों का अनुवाद किया। साथ ही उन्होंने दूसरे प्रोफेसरों के साथ विश्वविख्यात रामचरितमानस का अनुवाद भी पूरा किया। जिससे वे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में जाने माने हिन्दी भाषी साहित्य का अनुसंधान करने वाले प्रसिद्ध विद्वान बने। उन्होंने कई बार भारत के दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्व के अन्य मशहूर विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य किया। 13वें व 16वें अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन वे कार्यकारिणी अध्यक्ष थे और 10वें अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी के अध्यक्ष भी थे। वर्ष 1993 में भारतीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने प्रोफेसर चिन तींगहान को विश्व हिन्दी मानद पुरस्कार दिया। हिन्दी भाषा की पढ़ाई व अनुसंधान और चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उल्लेखनीय योगदान के चलते वर्ष 2001 में भारतीय राष्ट्रपति के आर नारायणन ने चिन तींगहान को हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा पुरस्कार---जॉर्ज ग्रीसन पुरस्कार प्रदान दिया। यह विश्व हिन्दी भाषा के अनुसंधान में सबसे बड़ा पुरस्कार है और हर साल केवल एक विदेशी को प्रदान दिया जाता है। अब तक चीन की ओर से वे ही यह पुरस्कार हासिल कर पाए हैं। भारतीय केंद्रीय हिन्दी अनुसंधान संस्थान प्रोफेसर तींगहान को हालिया विश्व में हिन्दी भाषा का अध्ययन करने वाले सबसे मशहूर विद्वानों में से एक मानता है। हालांकि चिन तींगहान की उम्र 80 से ज़्यादा हो चुकी है, फिर भी वे चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए अथक प्रयास में लगे हैं।

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