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    039 दक्षिण केलिए उतर की दिशा में बढ़ना
    2017-08-01 19:51:55 cri

    गंधे का शोचनीय अन्त 黔驴技穷

    "गंधे का शोचनीय अन्त"कहानी को चीनी भाषा में"छ्यान ल्य्वु ची छोंग"(qián lǘ jì qióng) कहा जाता है।

    प्राचीन में दक्षिण पश्मिमी चीन के क्वेईचोउ प्रांत में कोई गंधा नहीं था। एक साल एक व्यापारी दूसरी जगह से एक गंधे को वहां ले आया।

    क्वेईचोउ में पहाड़ ज्यादा थे, वहां गंधा किसी काम का नहीं आ सकता था। इसलिए गंधा पहाड़ की तलहटी में स्वतंत्र छोड़ा दिया। पहाड़ी तलहटी में गंधा बड़े चाव से घास चरा रहा था।

    एक दिन, पहाड़ पर एक बाघ आया। क्वेइचोउ के बाघ ने कभी भी गंधे को नहीं देखा। उसे मालूम नहीं था कि गंधा जितना बड़ा जानवर क्या है?सो अचानक उसे देखकर बाघ एकदम घबरा गया। वह समझता था कि यह कोई देवता होगा। बाघ तुरंत पेड़ों की ओट में जा छिपा और रह-रह कर गंधे की ओर झांकता रहा था कि गंधा अखिर क्या कर सकता है।

    एक दिन गुजरा गया। बाघ को गंधे में किसी असामान्य विशेषता का पता नहीं लगा। तीसरा दिन आया, बाघ दबे पांव पेड़ों की छांह से बाहर निकला और गंधे के थोड़े नज़दीक जा पहुंचा। उसके दिल में गंधे की असलियत जानने की इच्छा हुई। थोड़े कुछ कदम आगे बढ़ने पर गंधे ने ज़ोर की हुंकार मारी, इस प्रकार की भयानक आवाज़ से डरकर बाघ पीछे मुड़कर भागने लगा। एक ही सांस में बाघ बेहद दूर भाग जाने के बाद रुक गया। उसने देथा कि गंधे की ओर से कोई भी हरकत नहीं हुई, तो बाघ फिर बड़ी सावधानी से गंधा के निकट लौट आया।

    धीरे-धीरे बाघ गंधे की हुंकार सुनने का आदि हो गया। उसका डर काफ़ी हद तक गायब हो गया। फिर वह हिम्मत जुटा कर गंधा के और पास जा पहुंचा। शुरू-शुरू में बाघ ने अपने पंजों से गंधे को छेड़ने की कोशिश की, फिर गंधे को शरीर से टक्कर मारने की कोशिश की। इससे गंधे को बड़ा क्रोध आया। उसने अपने पिछले पांव से बाघ को लात मारी। बाघ बड़ी आसानी से गंधे की लात से बच गया और बहुत खुश हो गया:"वाह, इस विशाल जानवर में कुछ खास शक्ति नहीं है।"

    इसी क्षण भूख से पूरी तरह पीड़ित बाघ भयानक हुंकार मारकर झट से गंधा पर टूट पड़ा। उसने गंधा के गले को तेज़ दांतों से फाड़कर उसे जान से मार डाला और भर पेट खाया। इसके बाद बाघ बड़े संतोष के साथ पहाड़ में चल गया।

    "गंधे का शोचनीय अन्त"यानी चीनी भाषा में"छ्यान ल्य्वु ची छोंग"(qián lǘ jì qióng) नाम की नीति कथा में गंधे को इसलिए अपनी जान गंवानी पड़ी थी, क्योंकि उसकी अपनी रक्षा के लिए कोई भी क्षमता नहीं थी। देखने में गंधे की काया बहुत विशाल थी, पर वह मात्र बाहरी रूप था, दरअसल दूसरे जानवरों से संघर्ष करने के लिए असली शक्ति की ज़रूरत थी।

    "छ्यान ल्य्वु ची छोंग"(qián lǘ jì qióng) नाम की कहानी एक और रूप है, जिसे हिन्दी में"गदहे की करतूत"कहा जाता है, इसमें गदहा और शेर प्रमुख पात्र है। कहानी इस प्रकार है:

    जहां तक पता चलता है कि दक्षिण पश्चिमी चीन के क्वेईचो प्रांत में पहले एक भी गदहा नहीं था।

    एक सौदागर दूसरे प्रदेश से एक गदहा खरीद कर लाया, गदहा काफी मोटा ताजा यानी पक्का गदहा था।

    नाव में चढ़ा कर सौदागर उसे क्वेईचो प्रांत के पहाड़ी क्षेत्र में ले आया, उसे मौज से चारा खाने के लिए सौदागर ने गदहा वहीं छोड़ दिया।

    गदहा मौज से चरता फिरता था, उसे कोई कुछ नहीं कहता था। एक दिन अचानक उसपर शेर की निगाह पड़ गई।

    शेर के पुरखों ने भी कभी गदहा नहीं देखा था, उसका नाम भी नहीं सुना था। आज अचानक इस बड़े मोटे ताजे जानवर को देख कर शेर सचमुच ही घबरा गया। पुरखों के मुंह से उसने ड्रैगन की कहानी सुनी थी। बहुत सोच विचार कर उसने तय किया कि यह ज़रूर ही कोई ड्रैगन होगा।

    शेर ने मन ही मन सोचा:"अरे बापरे, यह कैसा डरावना जानवर है। इसके दोनों कान कितने लम्बे हैं। कहीं मेरी ओर नज़र पड़ गई, तो जान बचानी मुश्किल होगी। उसका मिजाज अच्छा मालूम नहीं पड़ रहा है। धीरे धारे खिसक जाना ही अच्छा है।"

    शेर जल्दी जल्दी एक जंगल में घुस गया। लेकिन उसका कुतुहट दूर नहीं हुआ। आड़ में छिपकर वह जब तब झांक कर उस जानवर को देखने लगा। सिर उठाकर अचानक गदहा रेखने लगा और हुंकार करने लगा।

    "ओफ, कितनी भयंकर आवाज थी, उसकी हुंकार सुनकर चोरों दिशाएं मानो कांप उठीं।"शेर का कलेजा भी कांपने लगा।"इस जानवर को ज़रूर मेरा पता चल गया है। शायद मुझे खाने के लिए ही दहाड़ रहा है।"

    डर के मारे शेर का कलेजा सूख गया। घनी झाड़ियों मे बैठा वह थर-थर कांपने लगा।

    बहुत देर के बाद शेर का कांपना बन्द हुआ। अधखुली आंखों से उसने देख कि गदहा चुपचाप हरी-हरी घास चर रहा है।

    शेर की जान में जी आयी। कुतुहल से वह कुछ नजदीक आ गया।

    नहीं, वह तो इतना खूंखार जानवर नहीं है। शेर ने जंगल के किनारे बैठकर अंगड़ाई ली। वह बड़े ध्यान से गदहे का हाल चाल देखने लगा।

    गदहे का दिमाग अचानक गर्म हो गया, कान खड़े कर और दुम उठाकर बड़े जोर से चीपों-चीपों करने लगा।

    "अरे, देखने में यह गदहा बड़ा बेवकूफ लगता है। मैदान खाली है, कहीं कुछ भी नहीं है,फिर भी ज़रा इसका गुस्सा देखो, खामखा इतना गुस्सा क्यों है? " जरा बेफिक्र होकर शेर ने फिर अंगड़ाई ली।

    गदहे ने फिर अपनी मूर्ति धारण की, बड़े जोर से चीपों-चीपों की आवाज़ से आसमान कंपाता हुए दुलत्तियां चलाने लगा। ऐं, इस जानवर को तनिक भी अकल नहीं है। सांस छोड़ते हुए शेर ने अपने मन में कहा:"अकल बिलकुल मोटी है। और दौड़ भी देखता हूं कि खुले आसमान में दुलत्तियां झाड़ने तक ही।"

    शेर और भी कुछ नजदीक आ गया और इसके बाद मौका देखकर शेर गदहे पर टूट पड़ा और बड़े मज़े में मारकर अपना पेट भरने लगा।

    गदहे ऐसे ही होते हैं, खामखा दिमाग का पारा चढ़ाना और चिल्लाना ही उनकी आदात है और जब खुशी हुई तो वे दुलत्तियां झाड़ने लगते हैं। वह शक्तिशाली जानवरों के सामने ज़रा भी नहीं टिक सकते ।


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