चीनी पाठकों के बीच टैगोर का नाम जाना पहचाना है। 1913 में टैगोर अंग्रेजी कवि संग्रह "गीतांजलि" से एशिया में प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता बने। 1924 में उन्होंने आमंत्रण पर चीन की यात्रा की और चीनी साहित्यकार जगत के कवियों का गर्म स्वागत किया गया। स्वदेश वापस लौटने के बाद टैगोर ने भारतीय अंतर्राष्ट्रीय इंस्टिट्यूट में एक चीनी अकादमी की स्थापना की, जो बाद में चीन-भारत सांस्कृतिक आवाजाही इतिहास में एक मील पत्थर की बात सिद्ध हुई। 70 की उम्र में टैगोर के संपूर्ण कृति संग्रह के प्रमुख जिम्मेदारी प्रोफेसर पेई खानयुआन ने इस संग्रह के एक तिहाई भाग का अनुवाद किया। उन्होंने कहा कि टैगोर की महान आकृति से गहरे रूप से प्रभावित होने से उन्होंने 30 सालों के लिए इस काम में लग्न रहते हैं। उन के विचार में विश्व में किसी भी एक विश्व स्तरीय कवि नहीं हैं जो टैगोर की तरह चीन से प्रेम करते थे। उन्होंने चीन के बारे में अनेक कृतियां लिखीं और एक चीनी अकादमी की स्थापना भी की, जिससे चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान में अवमूल्य धरोहर छोड़ाया गया है। टैगोर की कृतियों को चीनी में अनुवाद करना बंगाली भाषा सीखने वाले चीनियों का अनिर्वार्य कर्त्तव्य है। चीन में साहित्यकार या साहित्यप्रेमी हमारे द्वारा अनुवादिक कृतियों से टैगोर के साहित्य को समझ सकेंगे।
टैगोर की 155 वीं वर्षगांठ पर उनके संपूर्ण कृति संग्रह का प्रकाशन
2016-05-16 15:15:38 cri