गाजाडामा दूरबीन से मृगों की स्थिति देखते हुए
"गश्त लगाते समय मैं अकसर तिब्बती मृग देखता हूं, खासकर अक्टूबर और नवंबर के महीने में। उस दौरान मैं जब उनके करीब जाता हूं, वे डरकर भागते नहीं हैं। लेकिन अब गर्मियों का मौसम है, नवजात तिब्बती मृग अपनी मां के साथ पहली बार यहां आए हैं, उन्होंने मनुष्य और गाड़ी नहीं देखी थी, इसलिए हम नज़दीक नहीं जा सकते।"
झांगथांग घास का मैदान चीन में पांच परंपरागत ग्रामीण क्षेत्रों में से एक है। वहां चरवाहों का चरागाह राष्ट्रीय नेचर रिजर्व क्षेत्र से बहुत करीब है, इसलिए स्थानीय चरवाहों को जंगली जानवरों का संरक्षण करने की जानकारी देना भी गाजाडामा का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
"क्योंकि यहां के चरवाहें कंटीले तारों से अपने चरागाह के चारो तरफ घेरा बनाते है, लेकिन इससे जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचता है। वे उसमें फंस जाते हैं। मैं उन्हें बताता हूं कि यहां राष्ट्रीय नेचर रिजर्व क्षेत्र है, कंटीले तारों से घेरा नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि इससे तिब्बती मृगों के प्रवासन और प्रजनन को नुकसान पहुंचता है। अगर कोई तिब्बती मृग फंसा हुआ नजर आता है, तो मैं उन चरवाहों से दरवाज़ा खुलवाकर मुक्त करवाता हूं। आम समय में चरवाहों के पशु और जंगली जानवर एक साथ रहते हैं। लेकिन तिब्बती मृगों के प्रजनन समय में बहुत घास की ज़रूरत होती है, तो मैं चरवाहों को यहां जानवर चराने से रोक देता हूं।"
हर साल सर्दियों के मौसम में गाजाडामा सबसे ज्यादा व्यस्त रहता है। जहां वह गश्त लगाता है, वहां तिब्बती मृग प्रजनन करते हैं। उस समय तापमान माइनस दस डिग्री से भी कम होता है। रोज़ संध्याकाल से पहले वह घर से निकलता है और मैदान के भीतर जाकर गश्त लगाता है। दोपहर के समय वह पत्थरों का चुल्हा बनाकर साधा भोजन पकाता है। उसके पास आराम करने का समय बहुत कम है।
वह रोज़ाना अकेले घास के मैदान में गश्त लगाना और निगरानी करता है। उसने कहा कि उसे इस कठिन काम को करने की आदत पड़ गई है।
"मुझे अकेपालन का एहसास नहीं होता है। अब मेरे जैसे जंगली जानवरों के रक्षकों के प्रति देश की नीति बहुत अच्छी है। मैं इतने सालों से यह काम करता आ रहा हूं। मुझे यह काम करने की आदत-सी हो गई है। मेरी अब उम्र बढ़ने लगी है, और मेरा स्वास्थ्य भी पहले की तरह अच्छा नहीं रहता है, फिर भी मुझे किसी भी तरह की चिंता नहीं है।"
इन दशकों में गाजाडामा और अन्य दो रक्षकों के प्रयास से इस घास के मैदान में जंगली जानवरों की संख्या में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है। इसे देखते हुए उसका सीना गर्व से फूल जाता है।
"जंगली जानवरों का रक्षक बनने के बाद मुझे लगा कि मैं जंगली जानवरों का संरक्षण करने वाला एक दूत हूं। लेकिन जंगली जानवरों का संरक्षण करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है। मैं अकसर पास के चरवाहों से कहता हूं कि हम एक साथ जंगली जानवरों का संरक्षण करेंगे। आपको पता होगा, जब मैं जंगली जानवरों का रक्षक बना था, उस समय इस क्षेत्र में सिर्फ 60 तिब्बती मृग थे, लेकिन अब वानिकी विभाग के समर्थन और हमारे रक्षकों के प्रयासों से, यहां तिब्बती मृगों की संख्या 3 हज़ार से भी अधिक हो गई है।