लालू आर्द्रभूमि का दृश्य
प्राचीन पठारीय शहर ल्हासा स्थित लालू आर्द्रभूमि दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई और सबसे बड़े क्षेत्रफल वाली शहरी प्राकृतिक दलदल भूमि है, जिसका कुल क्षेत्रफल 12.2 वर्ग किमी. है। सर्दियों में ऑक्सीजन कम है, लेकिन लालू आर्द्रभूमि प्रवासी उत्तरी तिब्बत में पक्षियों का वास ही नहीं, बल्कि ऑक्सीजन की आपूर्ति का स्रोत भी है। इसे ल्हासा का फेफड़ा माना जाता है। चराई खेत से राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र तक लालू आर्द्रभूमि में क्या परिवर्तन आया और ल्हासा पर क्या प्रभाव पड़ा ?
शहरों से घिरे लालू आर्द्रभूमि में मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य कैसे स्थापित होगा, यह स्थानीय पर्यावरण संरक्षण विभाग की सबसे बड़ी चुनौती है। तत्काल में तिब्बत पर्यावरण संरक्षण विभाग के प्रधान रहे चांग योंगत्से को 1998 में लालू आर्द्रभूमि का पहला दौरा अब तक याद है। उन्होंने कहा:"उस समय लालू आर्द्रभूमि के आसपास के लोग अपने घोड़े ले जाकर पर्यटन सेवा करते थे। आर्द्रभूमि के उत्तर पहाड़ पर लोग पत्थर का खनन करते थे। हमने आर्द्रबूमि के भीतर सभी तरह के विकास काम बंद करने का कदम उठाया।"
जुलाई 2005 में राज्य परिषद की अनुमति से लालू आर्द्रभूमि राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में तब्दील हुई, जिनमें से 6.6 वर्ग किमी. वाले मूल इलाके का बंद प्रबंधन किया जाता है, फिर बफ़र इलाका और फिर प्रायोगिक ज़ोन। इस कदम से शहर में आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी व्यवस्था की अखंडता और स्वतंत्रता की कारगर रूप से गारंटी की गई और आर्द्रभूमि के वन्य जीवों के लिये एक सुरक्षा वातावरण तैयार किया गया। ल्हासा के पर्यावरण संरक्षण ब्यूरो की उप प्रधान हे क्वीछिन ने संवाददाता को बताया कि लालू आर्द्रभूमि राष्ट्रीय लुप्तप्राय जंगली काली गर्दन वाले क्रेन का अहम वास है। उन्होंने कहा:"अतीत में लालू आर्द्रभूमि एक प्राकृतिक चरागाह थी, लोग यहां जानवरों को चराते थे। बाड़ लगाने के बाद यहां घास बहुत अच्छी तरह उगी। सर्दियों में यहां आने वाले काले क्रेनों, बतखों और बार-हेडेड गूज़ों की संख्या पांच या छह हजारों तक पहुंचती है।"