रेल डिब्बे में पर्यटक नाचते हुए
ला-शि रेलमार्ग समुद्र तल से 3600 से 4000 मीटर की ऊंचाई वाले पठार पर स्थित है। जहां ऑक्सीजन बहुत कम है और पारिस्थितिक स्थिति भी कमज़ोर। रेल मार्ग तीन बार यालुचांगबु नदी को पार करता है। रेलवे-पुल के निर्माण में कितनी कठिनाइयां मौजूद थीं?शायद हम इसकी कल्पना भी नहीं कर पाते।
253 किलोमीटर की दूरी वाली इस रेल लाइन पर पुल, सुरंग की लंबाई 115.7 किलोमीटर लंबी है। जो पूरे रेलमार्ग का 45.7 प्रतिशत हिस्सा है। समुद्र तल से बड़ी ऊंचाई पर स्थित होने और भौगोलिक स्थिति जटिल होने की वजह से ला-शि रेल मार्ग के निर्माण में प्रति मीटर की कीमत 50 हज़ार युआन लगी थी। यह वर्तमान चीन में पठारीय क्षेत्र में निर्मित सबसे महंगा रेलवे मार्ग है। इस रेल लाइन यातायात के शुरु होने से पता चलता है कि अति जटिल पठारीय भौगोलिक स्थिति में चीन ने रेलवे निर्माण की परिपक्व तकनीक हासिल की है।
ला-शि रेलवे का यातायात शुरु होने के बाद बेशुमार चीनी और विदेशी पर्यटक तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से शिकाज़े आ रहे हैं।
शिकाज़े में तिब्बती बौद्ध धर्म के पंचेन लामा का निवास स्थान यानी जाशिलुन्बु मठ स्थित है। यहां चुमुलांगमा पर्वत, पठारीय पवित्र झील यांगचो योंगत्सो, तिब्बती बौद्ध धर्म के पाइच्यु मठ और सागा मठ बहुत मशहूर पर्यटन स्थल उपलब्ध हैं।
शिकाज़े का पर्यटन संसाधन प्रचुर है। लेकिन पहले यहां यातायात की स्थिति असुविधापूर्ण थी। रेल मार्ग का यातायात शुरु होने से स्थिति में सुधार हुआ है। शिकाज़े शहर के पर्यटन विभाग के उप प्रधान जाशी त्सेरिंग ने जानकारी देते हुए कहा:
"यातायात तिब्बत के पर्यटन विकास को सीमित करता है। यात्रा के दौरान पर्यटकों का अधिक समय यात्रा करने में लगता था। ल्हासा से शिकाज़े तक का ला-शि रेल-मार्ग का यातायात शुरु होने से हमारे आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। इससे हमें प्रत्यक्ष आर्थिक मुनाफ़ा होगा। इस रेल-मार्ग का प्रचालन बहुत सार्थक है।"